राजनैतिकशिक्षा

मई दिवस पर विषेश आलेख कोरोना काल में मजदूर हो गये मजबूर!

-डा. भरत मिश्र प्राची-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

देष में जब से कोरोनाकाल आया तब से सबसे बड़ी गाज आम मजदूरों पर पड़ी जिनके हाथ से रोजी – रोटी छीन गई। गत वर्श कोरोना वायरस की चपेट में जब देष का हर कोना – कोना समा गया तब इससे बचाव हेतु सभी जगह लॉकडाउन करना पड़ा। देष की चलती जिंदगी एक बार थम गई। उद्योग धंधे बंद हो गये। रेल, बस, टैक्सी, टेम्पू, रिक्षा सहित सभी तरह के यातायात के हर साधन बंद हो गये। सबसे ज्यादा परेषान हुये देष के दिहाड़ी मजदूर जिनके हर दिन की मजदूरी से घर के चुल्हें जला करते। मजदूर अपने – अपने घर को पैदल हीं लौटने लगे। जब वर्श के अंतराल में कोरोना का कहर कम हुआ एवं देष की गतिविधियां धीरे – धीरे पटरी पर वापिस लौटने लगी तो फिर से रोजी रोटी के तलाष में दूर प्रदेष अपने अपने घरों को लौटे लोग फिर से वापिस आने लगे। बाजार, मॉल, दुकान, उद्योग आदि खुलने से नई चहल पहल षुरू हो गई। घरों में दैनिक काम करने वाले भी काम करने लगे। एक बार फिर से देष के आम मजदूरों ने राहत की सांस ली। पर इस तरह राहत की सांस ज्यादा दिन मजदूरों नही ले सके। इस वर्श फिर से लोगों की लापरवाही के चलते कोरोना ने देष को नये तेवर के साथ जकड़ लिया जहां पहले से भी ज्यादा उसका प्रकोप बढ़ गया। देष के हर भाग में लॉकडाउन लग गया । पर इस लॉकडाउन में राज्य सरकारों ने फिलहाल पूर्व की भॉति पूर्ण रूप से सबकुछ बंद न कर आम मजदूरो को राहत देने का प्रयास अवष्य किया है फिर भी देष के आम मजदूरों में अपनी रोजी रोटी को लेकर अप्रत्याषित भय समा गया है। ंपूर्व के लॉकडाउन की विकट स्थितियों को देखते हुये देष भर में लॉकडाउन लगने से पूर्व हीं मजदूरों में फिर से अपने अपने गृह प्रदेष लौटने की होड़ सी मच गई। रेल बस पडाव इस तरह के भयभीत मजदूरो से भर गये। कोरोना वायरस संक्रमण फैलने का खतरा भी इन्हें यहां तक आने से नहीं रोक सका। फिर से दैनिक मजदूरों की मजदूरी पर कोरोना पसरने के भय की गाज गिरने लगी। अपने – अपने घरों में कामकाजी महिलाओं, पुरूशों को बुलाना बंद करने लगे लोग। घर से बाहर नहीं निकल पाने के कारण छोटे छोटे यातायात के संसाधन बंद से हो गये जिनसे जुड़े लाखों दिहाड़ी कमाने वाले मजदूरों की मजदूरी रूक गई।

कोरोना काल में मजदूर फिर से मजबूर हो गये। जो अपनी मजदूरी से दूर हो गये। न कोई हड़ताल, न कोई बंदी फिर भी देष का मजदूर कोरोना के चलते मजदूरी से आज बहुत दूर हो गया है। इस तरह के हालात का तोड़ किसी के पास नहीं। मजदूरो की रक्षा एवं अधिकार दिलाने के लिये देष में आज कई श्रमिक संगठन है पर वे भी इस तरह की विकट परिस्थिति में मौन है। किसके खिलाफ आवाज बुलंद करें। इस तरह के परिवेष में आम मजदूरों में जो भगदड़ मची है उसे रोकने की दिषा में देष के सभी श्रमिक संगठन एक मंच पर खड़े होकर्र आिर्थक श्रमदान नीति का पालन कर सकते है। देष के श्रमिक संगठनों के पास इन्हीं मजदूरों के दिये चंदे से अपार विपुल धन है जो संकट के इस घड़ी में इनके काम आ सकता है। आज अपनी रोजी रोटी के लिये चिंतित इन मजदूरों को जो पलायन के कगार पर खड़े है, राकने की महती आवष्यकता है। वरना इस दिषा में इनकी भगदड़ कोरोना को फैलने में और मददगार साबित हो सकती है। इस बार कोरोना का खौफ पहले से कहीं ज्यादा नजर आ रहा है। वायरस का नया रूप एवं तेज गति से प्रसार सभी को संकट में डाल दिया है। इस विकट स्थिति में जो जहां है वहीं रूककर हीं कोरोना के बढ़ते कदम को रोक सकता है। इसके डर से किसी भी तरह की भगदड़ इसके फैलने मे मदद कर सकती है।इस तथ्य को देष के तमाम श्रमिक संगठनों को समझना होगा एवं एक मंच पर खड़े होकर इस विकट परिस्थिति में मजदूरों के हित की रक्षा करने के लिये प्रतिबद्ध होना पड़ेगा। कोरोना काल में देष के आम मजदूरों को इस संकट की घड़ी में आत्मविष्वाष दिलाना एवं आर्थिक पक्ष से उनकी मदद कर पलायन से रोकने का सकरात्मक प्रयास श्रमिक संगठनों को करना चाहिए।

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