राजनैतिकशिक्षा

मध्यप्रदेश में कांग्रेस एकजुट वही भाजपा बिखरी हुई!

-शकील अख़्तर-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

हिंदू-मुसलमान के अपने पुराने एजेंडे के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्यप्रदेश में भाजपा का चुनावी अभियान शुरू कर दिया है। कर्नाटक में भी वेइसी मुद्दे पर लड़े थे। उधर बीस साल में पहली बार खुद को बहुत ही कम्फर्ट पोजिशन (संतोषजनक) में पा रही कांग्रेस इस बार पूरी तरह एकजुट है। राज्य में कोई गुटबाजीनहीं है। उधर पहली बार भारी गुटबाजी से परेशान भाजपा पूरी तरह मोदी केकरिश्मे पर निर्भर है।

पिछला चुनाव 2018में जब हुआ था तब कांग्रेस में भारी गुटबाटी और भाजपा मेंएकता थी। कांग्रेस की इस गुटबाजी का परिणाम यह हुआ था कि अनुकूलपरिस्थितियां में भी कांग्रेस बहुमत के 116 के आंकड़े से दो सीटें पीछेरह गई थी। 15 साल की इन्कम्बेन्सी के बावजूद भाजपा ने 109 सीटें जीतीथीं जो कांग्रेस की 114 के बिल्कुल करीब ही थी।

भाजपा के इस अच्छे प्रदर्शन का श्रेय उसके किसी नेता को नहीं था केवल औरकेवल कांग्रेस की गुटबाजी को था। 2018 के मतदान से पहले हमने लिखा था किजनता कांग्रेस को जिताना चाहती है मगर कांग्रेस जीतने को तैयार नहीं।हेडिंग भी कुछ ऐसा ही लगा था।

टिकटों के बंटवारे में इतने झगड़े हुए थे कि राहुल गांधी जो उस समयअध्यक्ष थे, उन्हें कई बार हस्तक्षेप करना पड़ा था और पूर्व अध्यक्षसोनिया गांधी की भी मदद लेनी पड़ी थी। उस समय ज्योतिरादित्य सिंधियापरिवार के बहुत खास थे। और इसका फायदा उठाकर उन्होंने अपने लोगों के लिएज्यादा से ज्यादा टिकट हासिल कर लिए थे। जिनमें करीब 10 कमजोर उम्मीदवारथे और वे हारे। लेकिन जो जीते वे भी कांग्रेस में नहीं रहे। और ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में चले गए।

इस बार यह पहला मौका है जब मध्यप्रदेश कांग्रेस। में किसी तरह की कोई गुटबाजी नहींहै। दोनों बड़े नेता कमलनाथ और दिग्विजय सिंह मिलकर काम कर रहे हैं। नहींतो इससे पहले डीपी मिश्रा के समय से मध्य प्रदेश कांग्रेस में गुटबाजीशुरू हो गई थी। उस गुटबाजी का परिणाम ही राजमाता विजयाराजे सिंधिया कीबगावत थी। 1967 में उन्होंने डीपी मिश्रा की सरकार गिरा दी थी। उसके बादसे मध्य प्रदेश कांग्रेस में इस समय को छोड़कर कभी ऐसा दौर नहीं रहा जबवहां बड़े नेताओं के दो या दो से ज्यादा गुट नहीं रहे हों। 1969 मेंश्यामाचरण शुक्ल मुख्यमंत्री बने और फिर उसके बाद उनमें और प्रकाश चन्द्रसेठी, अर्जुन सिंह, माघवराव सिंधिया, दिग्विजय सिंह वर्चस्व का यहसिलसिला चलता रहा। भाजपा जब तक कमजोर थी गुटबाजी के बावजूद मध्य प्रदेशमें और कोई विकल्प नहीं था। मगर वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने के बाद सेमध्य प्रदेश में जो उनका गृह राज्य था भाजपा की जड़ें मजबूत होती गईं।

मगर अब कहानी उल्टी हो गई है। भाजपा में, जहां गुटबाजी कभी होती नहीं थी, होनेलगी और कांग्रेस जिसके नेता बिना गुट बनाए राजनीति कर ही नहीं सकते थेवहां यह गायब हो गई। निश्चित ही रूप से इसका श्रेय दिग्विजय सिंह को जाताहै। जो मध्य प्रदेश में कार्यकर्ताओं के बीच सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं,उनके लिए लड़ते हैं, मदद करते हैं वे पूरी तरह बिना किसी अहंकार केप्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के साथ सहयोग कर रहे हैं।

अभी तो उन्होंने सार्वजनिक रूप से यह साफ कह दिया कि टिकट के लिए उनकेपास न आएं। यह बहुत बड़ी बात है। राजनीति में कोई नेता ऐसा नहीं कहता है।दिग्विजय ने कहा कि कमलनाथ ने एक सिस्टम बना रखा है और उसके तहत ही टिकटमिलेंगे। मैं या कोई और भी मदद नहीं कर सकता। बाद में खुद कमलनाथ ने भी यह कहकर दिग्विजय को इन्डोर्स (गवाही देना, समर्थन करना) कर दिया किटिकट प्रदेश कांग्रेस और अखिल भारतीय कांग्रेस द्वारा करवाए जा रहेसर्वें के आधार पर ही दिए जाएंगे।

यह एक अच्छी व्यवस्था है मगर जैसा कि कमलनाथ ने खुद कहा कि सर्वे मेंअलग अलग बातें भी आती हैं। उन्हें व्यक्तिगत रूप से ही देखा जा सकता है। यहसही बात है। सर्वें करने वाली एक नहीं सभी टीमों को क्षेत्र में प्रभावरखने वाले कांग्रेसी मेन्युप्लेट (अपने पक्ष में करना) कर सकते हैं।जनता में लोकप्रिय हमेशा संघर्ष करने वाले मगर आर्थिक रूप से कमजोरकार्यकर्ता के लिए सर्वे में स्थान बनाना मुश्किल हो रहा है। लेकिन लगताहै कांग्रेस के वरिष्ठ नेता इस समस्या को समझ रहे हैं और सर्वे को एकआधार बनाएंगे उसे अंतिम नतीजे की तरह इस्तेमाल नहीं करेंगे।

बताया जा रहा है कि तीन विभिन्न स्तरों पर सर्वें करवाए गए हैं। और उनमेंकई विधानसभा क्षेत्रों में अलग अलग नाम हैं। यहीं राज्य के एक एकविधानसभा क्षेत्र और उसके एक एक कार्यकर्ता को जानने वाले दिग्विजय सिंहकी महत्वपूर्ण भूमिका होगी। अगर टिकटों का वितरण ठीक हो गया तो राहुल कीयह बात सही साबित होगी कि हम मध्य प्रदेश में 150 सीटें जीत रहे हैं।

राजनीति में कुछ लोगों को नतीजों की पहले से आहट आ जाती है। इनमें नेताभी हैं, अफसर भी हैं और पत्रकार भी। मध्य प्रदेश में यह दिख रहा है।भाजपा के नेताओं में कांग्रेस में आने की होड़ लगी है। कई बड़े नेता आ चुके हैं। राज्य के पहले भाजपा मुख्यमंत्री रहे कैलाश जोशी के बेटेमंत्री रहे दीपक जोशी सबसे पहले आए। उसके बाद तो रोज प्रदेश अध्यक्षकमलनाथ किसी ना किसी का स्वागत करते दिखते हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों की वापसी। और वह भी उनके और उनके पितामाधवराव सिंधिया के लोकसभा क्षेत्र गुना शिवपुरी से। वहां से पहले बैजनाथसिंह यादव जो बड़े नेता हैं। 500 से ज्यादा गाड़ियों के काफिले के साथकांग्रेस में शामिल होने शिवपुरी से भोपाल गए। और अब राकेश गुप्ता जिनकेपरिवार के लिए यशोधरा राजे सिंधिया ने राजमाता का नाम लेते हुए कहा कि वहहमारे परिवार का तरह बहुत ही प्रतिष्ठित परिवार है वापस कांग्रेस मेंशामिल हो गए।

शिवपुरी के ये दोनों नेता ज्योतिरादित्य के साथ भाजपा में आए थे। मगर अबएक तो भाजपा में ज्योतिरादित्य कमजोर दिखने लगे हैं। दूसरे जैसा कि हमनेइससे उपर लिखा कि नेता, अफसर पत्रकारों को बदलाव की आहट पहले से आने लगतीहै। राज्य में भाजपा नेताओं को लग रहा है कि इस बार कांग्रेस बड़े बहुमतसे वापस आने वाली है। इसलिए भाजपा नेता कांग्रेस में आने की जुगाड़ लगारहे हैं। कांग्रेस अब ज्यादा लोगों को लेने की उत्सुक नहीं है। उसके काडर (कार्यकर्ता, नेताओं ) में परेशानी होती है। मगर आने से एक माहौल बनताहै। उसके लालच में कांग्रेस किसी को मना नहीं कर सकती है। अभी कुछ औरबड़े नाम कांग्रेस में आने की कोशिश कर रहे हैं।

राज्य में नेताओं के अलावा अफसरशाही का रुख भी बदला हुआ है। वे भी कमलनाथऔर दिग्विजय से संपर्क बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। यही हाल पत्रकारों काहै। मध्य प्रदेश के पत्रकारों की मदद करना सबसे पहले अर्जुन सिंह ने शुरूकी थी। उससे पहले मुख्यमंत्री केवल मालिकों को साधते रहते थे। मगर अर्जुनसिंह ने उन्हें सरकारी बंगले और अन्य कई तरह से उपकृत किया। उनके बाददिग्विजय ने इसका दायरा और बढ़ाकर भाजपा के लोगों की भी मदद करने से कभीइनकार नहीं किया। अभी जब वे कैलाश जोशी के बाद मुख्यमंत्री बने सुन्दरलालपटवा के घर गए तो उनकी पत्नी ने जिस आत्मीयता के साथ “अरे दुबला हो गया!“ कहकर दिग्विजय का स्वागत किया वह बताता है कि दिग्विजय व्यक्तिगतसंबंधों के मामले में कांग्रेस के छोटे से छोटे कार्यकर्ता से लेकर दूसरेदलों के नेताओं के साथ भी कितना पारिवारिक संबंध रखते थे।

विदेश से लौटते ही प्रधानमंत्री मोदी का मध्यप्रदेश दौरा बताता है कियहां का चुनाव वे ही लड़ेगे और अपने पुराने हिंदू- मुस्लिमएजेंडे पर ही।अमेरिका में इसी को लेकर वे बहुत परेशानी में पड़े। मुसलमानों के बारेमें सवाल पूछने वाली महिला पत्रकार सबरीना को प्रताड़ित करने को अमेरिकाके राष्ट्रपति कार्यालय व्हाइट हाइस ने बहुत गंभीरता से लिया और इसकीकड़े शब्दों में निंदा की। मगर भोपाल में प्रधानमंत्री मोदी ने फिर अपना भाषण हिंदू- मुसलमान पर केन्द्रीत रखा। यह बताता है कि यहां भी वेकर्नाटक की तरह इसी एक मुद्दे पर चुनाव लड़ेंगे।

 

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