राजनैतिकशिक्षा

दुनिया से मदद

-सिद्वार्थ शंकर-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

भारत में महामारी इस समय विकराल हो चुकी है। सरकारें चाहे जो दावे करें, ऑक्सीजन की कमी न होने का चाहे जितना सफेद झूठ बोलें, मगर हकीकत यह है कि अब भारतीयों का भगवान ही मालिक है। राजधानी दिल्ली से लेकर आदिवासी राज्य झारखंड तक ऑक्सीजन की किल्लत है। बेड बचे नहीं हैं और तपती धूप में मरीज एक-एक सांस गिन रहे हैं। आज भारत की जो हालत है, वह सिस्टम की नाकामी का बड़ा उदाहरण है। हम भारत को तेजी से बढ़ती अर्थव्यव्यवस्था का तमगा भले ही दें, मगर आज पूरी दुनिया के सामने दामन फैलाए खड़े हैं। महामारी संकट में भारत के लिए दुनिया के कई देश आगे आए हैं। कुछ स्वेच्छा से मदद कर रहे हैं तो कुछ पर वहां की जनता का दबाव है। चीन भी अब मदद देने को तैयार हो गया है। चीन अपने यहां वेंटिलेटर तैयार करा रहा है। दूसरे देशों से ऑक्सीजन सिलेंडर और टैंकरों से लेकर जरूरी दवाइयां, उपकरण और दूसरा सामान भारत पहुंचने लगा है। गौरतलब है कि बदलते वैश्विक परिदृश्य में भारत और अमेरिका के रिश्ते नए आयाम ले रहे हैं। अमेरिका के लिए भारत एक बड़ा बाजार है। दोनों देशों के बीच रणनीतिक भागीदारी, सैन्य समझौते और हथियार खरीद समझौतों ने रिश्तों को नया अर्थ दिया है। चीन से निपटने के लिए अमेरिका ने चार देशों का जो क्वाड समूह बनाया है, भारत भी उसका सदस्य है। इतना सब होने के बाद भी अगर अमेरिका कोरोना से जूझ रहे भारत को बेचारगी में छोड़ देता तो क्या वह मित्र कहने का अधिकार रख पाता? इस मामले में दूसरे देश उससे बाजी मार जाते। ऐसे में उसकी कम बदनामी नहीं होती। भारत जिस तरह के मुश्किल हालात का सामना करना रहा है, उससे अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देश पहले गुजर चुके हैं। हालात संभालने के लिए भारत को अभी ऑक्सीजन बनाने और उसकी आपूर्ति के लिए उपकरण, टैंकरों की भारी जरूरत है। थाईलैंड, सिंगापुर और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों ने भारत को खाली टैंकर भेजे हैं। आयरलैंड जैसे छोटे से देश ने ऑक्सीजन कंसंट्रेटर दिए हैं। ब्रिटेन ने भी कुछ दवाइयां और उपकरण पहुंचाए हैं। ऑस्ट्रेलिया और कनाडा सहित यूरोपीय देशों ने भी मदद का भरोसा दिया है।
यह नहीं भूलना चाहिए कि कई देश अभी भी महामारी से जूझ रहे हैं। संसाधन सीमित होने की वजह से दूसरों की मदद की सीमाएं हैं। कुछ देश संकट से काफी हद तक उबर चुके हैं, जबकि भारत में हालात हद से ज्यादा गंभीर होते जा रहे हैं। जाहिर है, इस वक्त भारत को हर तरह की सहायता चाहिए। भारत में केंद्र और राज्य सरकारें पहली बार ऐसे हालात से रूबरू हो रही हैं। फिर हमारा स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा भी दयनीय ही है। ऐसे में जो देश जो भी मदद दे, वह मामूली नहीं है। मौजूदा हालात में दुनिया के सभी देश एक दूसरे की जो मदद कर रहे हैं, उसे कूटनीति से कहीं आगे जाकर देखने की जरूरत है। पिछले एक साल के कोरोना काल में भारत ने भी अमेरिका सहित कई देशों को मदद दी है। दवाइयों, पीपीई किट और टीकों से लेकर दूसरी चीजें पहुंचाई हैं। इस मुश्किल घड़ी में एक दूसरे की मदद न सिर्फ नैतिक दायित्व है, बल्कि यही वक्त की जरूरत है।

ब्रिटेन के हेल्थ मिनिस्टर मैट हनूक ने साफ कर दिया कि उनके देश के पास कोविड वैक्सीन का ओवर स्टॉक नहीं है। ब्रिटेन के पास उसकी जरूरत के हिसाब से वैक्सीन हैं, इसे एक्सेस स्टॉक नहीं कहना चाहिए। यही वजह है कि हम भारत को वैक्सीन नहीं दे पाएंगे। इसके अलावा वेंटिलेटर्स और दूसरे जरूरी मेडिकल इक्युपमेंट्स नई दिल्ली भेजे जा रहे हैं। ब्रिटेन में अब वेंटिलेटर्स की जरूरत नहीं है, लिहाजा अब ये भारत भेजे जा रहे हैं। भारत के पास अपनी वैक्सीन है जो ब्रिटिश टेक्नोलॉजी पर बेस्ड है। कुल मिलाकर दुनिया से जो मदद आ रही है, हमें उस पर ही निर्भर नहीं रहना चाहिए। हमें अपनी तैयारियों को भी जारी रखना चाहिए। देश की सभी सरकारों को अपने संसाधान झोंकने का यही समय है। इसलिए आरोपों की चिंता छोड़कर सभी सरकारें सामूहिक रूप से प्रयास करें और इस महामारी को काबू में करने पर ध्यान दें।

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