राजनैतिकशिक्षा

सारी जिम्मेदारी जनता की-शासन-प्रशासन सर्वोपरि

-सनत जैन-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

पिछले कुछ वर्षों में जो नियम एवं कानून, केंद्र, राज्य सरकारें, स्थानीय संस्थाएं एवं सरकारी विभागों द्वारा तैयार किए जा रहे हैं। उसमें सारी जिम्मेदारी जनता के सिर पर डाल दी जाती है। नियम और कानूनों का उल्लंघन होने पर उन्हें जुर्माने और सजा से दंडित किया जाता है। जो नियम और कानून बनाए गए हैं। उनका पालन कर पाना संभव है, या नहीं। किन परिस्थितियों में नियमों का पालन हुआ है, या नहीं, इसके लिये भी कोई प्रावधान आम जनता के लिए नहीं होते हैं। नियमों को कपड़ों की तरह आए दिन अफसरशाही बदल रही है। जिसके कारण सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार बड़ी तेजी के साथ बढ़ता जा रहा है। अधिकारी अपने अधिकारों का मनमाना उपयोग कर आम जनता के साथ जबरिया अवैध वसूली करते हैं। अधिकारियों और सरकारी कर्मचारियों की कोई जिम्मेदारी तय नहीं है। उन्हें गड़बड़ी होने पर सरकारी संरक्षण मिलता है। जिसके कारण पिछले कुछ वर्षों में भ्रष्टाचार अपने चरम पर पहुंच गया है। जांच के नाम पर भ्रष्ट अधिकारियों को बचाने का काम भी बड़े पैमाने पर हो रहा है। जिसके कारण अब आम जनता में नाराजी स्पष्ट रूप से देखने को मिलने लगी है।

रोजाना मोरबी जैसे हादसे होते हैं। जिनमें सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों की लापरवाही और भ्रष्टाचार स्पष्ट रूप से नजर आता है। सरकार उन्हें बचाने में लग जाती है। जांच के नाम पर महीनों और वर्षों तक जांच होती रहती है। जब मामला ठंडा हो जाता है, तब उन्हें निर्दोष साबित कर दिया जाता है। जिसके कारण सरकारी तंत्र निरंकुश हो गया है। आम जनता के अधिकार और उसकी जान माल सब भगवान भरोसे है। भारत में दो तरह के कानून स्पष्ट देखने को मिल रहे हैं। बड़े लोगों के लिए नियम कानूनों का कोई मतलब नहीं है। बड़े लोगों के लिए नियम कानून एक झटके में राज्य सरकारें और केंद्र सरकार बदल देती हैं। आम आदमी पर तुरंत कार्रवाई हो जाती हैं। जो रसूखदार और सामर्थ्यवान होते हैं। उन्हें जांच के नाम पर या उनके छोटे-मोटे कारिंदो के ऊपर कार्यवाही करके उन्हें बचा लिया जाता है।

जनता की सरकार है। कहने को जनता मालिक है। लेकिन मालिकों पर नौकरों का कहर जारी है। घटना दुर्घटना होने पर जवाबदारी या तो ठेकेदार पर डाल दी जाती है, या आम जनता को दोषी बता दिया जाता है। सरकार के अधिकारी मंत्री राजनेता सब अपनी जिम्मेदारी से बचते हैं। जबकि सरकारी कानून के बनने के बाद सरकार की ही जिम्मेदारी बनती है। सारा तंत्र नियम और कानून के अनुसार नियंत्रण के लिये काम करता है। गड़बड़ी और भ्रष्टाचार पर यदि त्वरित कार्यवाही बिना किसी भेदभाव के होगी तो नियम और कानूनों का विधिवत पालन कठोरता के साथ संभव हो सकेगा। अभी समरथ को नहिं दोष गुसाईं की तर्ज पर बड़े आदमी कानून का पालन नहीं करते हैं। राजनैतिक और प्रशासनिक तंत्र उनकी सेवा में लगा रहता है। आम आदमी को ही इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। मोरबी में 136 लोगों की मौत हो गई है। घड़ी बनाने वाली कंपनी को पुल का ठेका दे दिया गया। इतना बड़ा हादसा होने के बाद भी सरकार दोषियों को बचाने का प्रयास कर रही है। स्थानीय संस्था, पुलिस राज्य सरकार कोई भी अपनी जिम्मेदारी उढ़ाने के लिए तैयार नहीं है। हां घड़ियाली आंसू बहाने में सब एक से बढ़कर आगे हो रहे हैं। सरकारी तिजोरी से मुआवजा बांट दिया जाएगा। यह पैसा किसी नेता अधिकारी या ठेकेदार की जेब से नहीं जाएगा। जब तक किसी को फर्क नहीं पड़ने वाला है। इसी तरीके के हादसे होते रहेंगे। नियम कानूनों का अपने तरीके से लोग उपयोग करके सरकारी तंत्र में बैठे लोग भ्रष्टाचार करते रहेंगे। न्यायपालिका की भूमिका भी अब प्रभावशाली नहीं रही। जिसके कारण अराजकता बढ़ती ही जा रही है। समाज की संवेदनशीलता खत्म हो गई है। सब लोग अपने अपने हितों की चिंता में लगे हुए हैं। सरकार ने भी आम लोगों को नियम कानून और भौतिक सुख सुविधाओं के मकड़जाल में ऐसा फंसा लिया है। कि उन्हें कुछ सोचने का समय ही नहीं है। जब चारों तरफ अराजकता फैली हो, ऐसी स्थिति में कहा जा सकता है, अब भगवान ही मालिक है।

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