राजनैतिकशिक्षा

विपक्ष का गठबंधन किस राह पर?

-कुलदीप चंद अग्निहोत्री-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

कुछ महीने पहले विपक्ष के प्रमुख दलों ने मिल बैठ कर एक गठबन्धन बनाया था जिसका नाम उन्होंने इंडी रखा। शुरू शुरू में दो बैठकें भी कीं। मोटे तौर पर सभी दलों ने मान ही लिया कि नेतृत्व राहुल गान्धी जी का ही रहेगा। वे ही विपक्षी दलों का मार्गदर्शन करेंगे और नरेन्द्र मोदी को पराजित करने की इच्छा को साकार करेंगे। राहुल गान्धी ने भी इस नई भूमिका के लिए रिहर्सल वगैरह शुरू कर दी। एक दिन ट्रक पर चढ़ कर, ट्रक ड्राईवर का अभिनय किया। दूसरे दिन रेलवे स्टेशन पर जाकर कुली का काम किया। उसके लिए बाकायदा कुली की वर्दी भी पहनी। कुछ क्षण क्षणिक खेत में जाकर ध्यान से यह भी देखा कि पौधे कैसे उगते हैं और वहां धूप में दो तीन मिनट फसल बगैरह काटने का दृश्य भी पैदा किया। बाकी विपक्षी दल उनके ये कार्य धैर्य से देखते रहे कि कम से कम कांग्रेस राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलांगना और मिजोरम की पांच विधानसभाओं के चुनाव में उनके लिए कुछ सीटें छोड़ देगी। लेकिन राहुल गान्धी कुली वगैरह बनने तक तो मनोरंजन करते रहे लेकिन अन्य विपक्षी दलों के लिए इन पांच राज्यों में सीटें छोडऩे की सीमा तक मनोरंजन करने के लिए तैयार नहीं हुए। अखिलेश यादव मध्य प्रदेश में अपने समाजवादी दल के लिए सीटें मांग रहे थे। लेकिन राहुल गान्धी पैरों पर पानी नहीं पडऩे दे रहे थे। इसलिए अखिलेश यादव निराश और नाराज, दोनों एक साथ ही हो गए।

उन्होंने अपने प्रत्याशियों की फौज मध्य प्रदेश में उतार दी और साथ ही कांग्रेस को खरी खोटी सुना दी। यादव ने यह संकेत भी दे दिया कि लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस जैसी चालाक पार्टी से समझौता कैसे सम्भव है? लालू जी की मांगें तो खत्म होने का नाम ही नहीं लेतीं। आम आदमी पार्टी के खास आदमी कांग्रेस से भी चालाक सिद्ध हो रहे हैं। उनको लगता था कि इन पांच राज्यों में कांग्रेस प्रतीक स्वरूप भी उसे कुछ सीटें छोड़ देगी तो वे कुछ अन्य प्रान्तों में भी एक-दो विधायकों के मालिक बन जाएंगे। लेकिन कांग्रेस ने उनकी यह ख्वाहिश पूरी नहीं की। केजरीवाल ने अपने प्रत्याशी जगह जगह खड़े कर दिए हैं। लेकिन क्या मजाल कि कांग्रेस के खिलाफ एक शब्द भी बोला हो। उसका उत्तर शायद वे पंजाब और दिल्ली में दें। यह भी हो सकता है वहां भी न दें। दरअसल केजरीवाल कांग्रेस के ढहने का इन्तजार कर रहे हैं। उनके पास लम्बा समय है। वे जानते हैं इंडी के बावजूद कांग्रेस का महल गिरेगा ही। तब आपाधापी मचेगी। उस समय वे महल में दबे लोगों को बांह निकालने और उनका स्वागत करने को तत्पर होंगे। परन्तु उनकी एक ही समस्या है। भ्रष्टाचार के मामले उनका पीछा नहीं छोड़ते। कहा भी जाता है कई बार बचपन की गल्तियां ताउम्र तंग करती रहती हैं। भ्रष्टाचार के मामलों में उनके प्रमुख साथी जेल में बन्द हैं। अनेक कोशिशों के बाद भी उनकी जमानत नहीं हो रही। सबूतों के संकेत अब केजरीवाल के घर की ओर भी आने लगे हैं। इसलिए अब वे देशभर में जनमत संग्रह करवाएंगे कि क्या जेल से ही केजरीवाल को मंत्रिमंडल चलाते रहना चाहिए या फिर उन्हें जेल जाने पर इस्तीफा देना चाहिए? वैसे मनीष सिसोदिया ने भी कई महीने पहले जेल जाने पर दिल्ली के स्कूली छात्रों से अपील की थी कि वे मेरी गैरहाजिरी में इधर उधर मत घूमें, अपनी पढ़ाई पर ध्यान दें। उनको लगता था कि उनके डर से ही देश के छात्र पढ़ते हैं। उनके जेल जाने पर वे आवारा हो जाएंगे। यही बात केजरीवाल बड़े पैमाने पर कर रहे हैं।

उनको भी लगता है कि उनके जेल जाने से दिल्ली रसातल को चली जाएगी। इसलिए वे जेल से ही सरकार चलाने का जनमत लेना चाहते हैं। कांग्रेस इस जनमत पर आंख लगाए बैठी है। उनको अपने नैशनल हैराल्ड वाले केस का डर खाए जा रहा है, जिसमें मां-बेटा दोनों ही जमानत पर हैं। इंडी गठबन्धन के बाकी दल स्पष्ट हैं। उन्होंने इसका खुलासा भी कर दिया है। सीताराम येचुरी सीपीएम के बड़े नेता हैं। उन्होंने कोलकाता में स्पष्ट कर दिया कि इंडी की प्राणवायु ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के साथ पश्चिमी बंगाल में कोई समझौता नहीं होगा। उसके साथ बंगाल को छोड़ कर अन्य स्थानों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर समझौता होगा। तृणमूल कांग्रेस के लोग हैरान हैं कि पार्टी तो बंगाल की है। सीपीएम बंगाल में समझौता करेगी नहीं तो क्या तृणमूल के साथ पंजाब में सीटों का बंटवारा किया जाएगा। नीतीश बाबू शुरू में ही समझ गए थे कि क्या खेला हो रहा है। भागदौड़ करके विरोधी दलों का सम्मेलन उन्होंने पटना में बुलाया था। सोचा था, उन्हें इसका संयोजक बना दिया जाएगा तो थोड़ा देश भर में घूम कर अपना ईमेज बना लेंगे कि प्रधानमंत्री बनने लायक माल है। जेडीयू के कुछ ‘नन्हां मुन्ना राही हूं, देश का सिपाही हूं’ टाईप गीत गाने भी शुरू कर दिए थे। देश का सिपाही थोड़ा मैडल वगैरह लगा कर ‘प्रधानमंत्री का पद यदि देश की जनता देगी तो मैं पीछे नहीं हटूंगा’ जैसे जुमले भी याद करने लगा था। लेकिन कांग्रेस के मां-बेटे ने बेंगलुरु में सारा गुड़-गोबर कर दिया। उनके शो को हाईजैक कर, अपना बोर्ड लगा लिया। इन पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में नीतीश बाबू के जेडीयू को भी घास नहीं डाली। नीतीश बाबू को भी अपनी पार्टी के प्रत्याशी मैदान में उतारने पड़े। लेकिन चुनाव के नतीजे तो आते रहेंगे।

नीतीश बाबू को इससे कोई फर्क नहीं पडऩे वाला। अलबत्ता उनकी इस भागदौड़ में लालू के बेटों ने आंगन के पिछवाड़े पर कब्जा कर लिया। सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन का सारा श्रेय उन्होंने स्वयं लेना शुरू कर दिया। नीतीश बाबू का नाम ही गोल कर दिया। इंडी में पूछ प्रतीत नहीं और लालू के बेटे पीछे से घेरने लगे तो नीतीश बाबू ने बिहार विधानसभा में ही शाब्दिक अश्लील हरकतें करनी शुरू कर दीं। विधानसभा में महिला सदस्य भी बैठी थीं तो नीतीश बाबू सधे अंदाज में अभिनय के साथ संभोग की क्रियाएं समझाने लगे। नीतीश बाबू की यह मानसिक हालत अभी किसी को पता नहीं थी। लेकिन लगता है राजनीतिक स्थिति से निराश होकर वे स्वयं ही अपनी असलियत जाहिर करने लगे हैं। लेकिन ताज्जुब है कि उनके इंडी के दूसरे भागीदारों ने न तो नीतीश बाबू की इस हरकत पर क्षोभ व्यक्त किया और यदि वे मानते हैं कि नीतीश बाबू मानसिक निराशा में ऐसा कर रहे हैं, तो कम से कम वे इस पर दुख ही प्रकट करते। इंडी का यह बड़ा अभियान इस हालत तक पहुंच जाएगा, इसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी। इस तरह विपक्षी गठबंधन इंडिया में फूट अभी से जाहिर हो रही है।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *