राजनैतिकशिक्षा

मुस्लिम लीग से मंगलसूत्र और मुस्लिम आबादी तक मोदी

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

हर बार की तरह इस बार भी केन्द्रीय चुनाव आयोग ने चुनावों के लिए आदर्श आचार संहिता लागू की है, जिसमें एक स्पष्ट नियम यह है कि किसी भी चुनावी रैली में धर्म या जाति के नाम पर वोट नहीं मांगे जाएंगे। इसी तरह लोकतंत्र में चुनाव की शुचिता बनाए रखने के लिए जनप्रतिनिधि अधिनियम 1951 के तहत कुछ नियम बनाए गए हैं, जिनका उल्लंघन भ्रष्ट आचरण के दायरे में आता है। इस अधिनियम की धारा 123 के अनुसार, ‘भ्रष्ट आचरण’ वह है जिसमें एक उम्मीदवार चुनाव जीतने की अपनी संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिये कुछ इस प्रकार की गतिविधियों में शामिल हो जाते हैं, जिसके अंतर्गत रिश्वत, अनुचित प्रभाव, झूठी जानकारी, और धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय या भाषा के आधार पर भारतीय नागरिकों के विभिन्न वर्गों के बीच घृणा, ‘दुश्मनी की भावनाओं को बढ़ावा देना अथवा ऐसा प्रयास करना शामिल है। ‘

उपरोक्त दो कसौटियों पर अगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बांसवाड़ा में दिए गए भाषण की समीक्षा की जाए, तो वे इस भ्रष्ट आचरण के आरोपी ठहराए जा सकते हैं। चुनाव आयोग इस आधार पर उनके ऊपर कार्रवाई कर सकता है। गौरतलब है कि रविवार को राजस्थान के बांसवाड़ा में नरेन्द्र मोदी चुनाव प्रचार के लिए पहुंचे थे। जहां फिर उन्होंने कांग्रेस के घोषणापत्र को लेकर मनगढ़ंत बातें कीं और हजारों लोगों की भीड़ के बीच ब़डी सहजता से झूठ बोला। प्रधानमंत्री अपने झूठ से सांप्रदायिक धु्रवीकरण की कोशिश भी करते दिखे। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह के साल 2006 में राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक में दिए भाषण से कुछ बातों को उठाया और उसे गलत संदर्भों के साथ पेश किया। मोदी ने अपने भाषण में कहा कि ‘पहले जब उनकी सरकार थी तब उन्होंने कहा था कि देश की संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है, इसका मतलब ये संपत्ति इकट्ठा करके किसको बांटेंगे- जिनके ज़्यादा बच्चे हैं उनको बांटेंगे, घुसपैठियों को बांटेंगे। क्या आपकी मेहनत का पैसा घुसपैठियों को दिया जाएगा। ‘ मोदी यहीं नहीं रुके, आगे उन्होंने कहा, ‘ये कांग्रेस का मेनिफेस्टो कह रहा है कि वो मां-बहनों के सोने का हिसाब करेंगे, उसकी जानकारी लेंगे और फिर उसे बांट देंगे और उनको बांटेंगे जिनको मनमोहन सिंह की सरकार ने कहा था कि संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है। भाइयों-बहनों ये अर्बन नक्सल की सोच, मेरी मां-बहनों ये आपका मंगलसूत्र भी बचने नहीं देंगे, ये यहां तक जाएंगे। ‘

मोदी के भाषण के इन हिस्सों में साफ तौर पर जनता को गुमराह करने की कोशिश नजर आ रही है। डा.मनमोहन सिंह ने 2006 के अपने उस भाषण में कहा था कि ‘अनुसूचित जातियों और जनजातियों को पुनर्जीवित करने की ज़रूरत है। हमें नई योजनाएं लाकर ये सुनिश्चित करना होगा कि अल्पसंख्यकों का और ख़ासकर मुसलमानों का भी उत्थान हो सके, विकास का फायदा मिल सके। इन सभी का संसाधनों पर पहला दावा होना चाहिए। ‘

ध्यान देने की बात है कि डा. सिंह ने अधिकार शब्द का इस्तेमाल नहीं किया था, जबकि उन्होंने अंग्रेजी में ‘क्लेम’ शब्द का इस्तेमाल किया था, जिसका हिंदी अर्थ दावा होता है। यानी यूपीए सरकार के मुखिया ने उन वर्गों का देश के संसाधनों पर दावा होने की सिफारिश की थी, जो समाज में हाशिए पर हैं। इनमें केवल मुसलमान नहीं अपितु एससी, एसटी तबका भी शामिल है। लेकिन श्री मोदी ने बड़ी चतुराई से शब्दों की हेर-फेर करके जनता के सामने झूठ परोस दिया। इसी तरह कांग्रेस के घोषणापत्र में कहीं भी यह नहीं लिखा कि वे हिंदू महिलाओं की स्वर्ण संपत्ति को ले लेंगे और मुस्लिमों में उसे बांट देंगे। कांग्रेस ने इस बार अपने घोषणापत्र को न्याय पत्र कहा है और उसमें आदिवासी न्याय, नारी न्याय, युवा न्याय, किसान न्याय ऐसी श्रेणियां बनाकर उनके तहत अलग-अलग वादे किए हैं। कांग्रेस ने अपनी पिछली सरकार की सोच को ही आगे बढ़ाने का इरादा घोषणापत्र में दिखाया है। इसमें एक वर्ग की संपत्ति छीनकर उसे दूसरों के बीच बांटने की बात नहीं लिखी है और शायद कोई भी राजनैतिक दल अपने घोषणापत्र में ऐसा लिखेगा भी नहीं। मगर श्री मोदी कांग्रेस को गलत दिखाने के लिए झूठ बोलने से परहेज नहीं कर रहे हैं। इससे पहले भी वे कई बार कांग्रेस के घोषणापत्र को मुस्लिम लीग की छाप बता चुके हैं।

नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण में कांग्रेस के घोषणापत्र के अलावा और भी झूठ कहे हैं। जैसे मुसलमानों के ज्यादा बच्चे होने का जिक्र। जबकि आंकड़ों से विश्लेषण करने पर कुछ और तस्वीर ही दिखती है। 1951 की जनगणना में मुस्लिम आबादी 9.8प्रतिशत थी, 2001 में 13.4प्रतिशत और 2011 की आखिरी जनगणना में यह 14.2प्रतिशत थी। मुस्लिम आबादी की हर दशक में होने वाली बढ़ोत्तरी भी 32.8 प्रतिशत से गिरकर 2011 में 24.6प्रतिशत हो गई। इसी तरह हिंदुओं की आबादी में दशकीय वृद्धि भी 1991 में 22.7प्रतिशत थी, लेकिन 2011 में 16.7प्रतिशत हो गई। यानी हिंदू हों या मुसलमान, जागरुकता दोनों तबकों में आ रही है और जनसंख्या पर धीरे-धीरे काबू पाया जा रहा है। 2014 में, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण ने माना था कि राष्ट्रीय प्रजनन दर गिरकर 2.2 हो गई है। हिंदू महिलाओं में यह 2.13 थी यानी पहले के मुकाबले 0.67प्रतिशत की गिरावट, और मुसलमानों में यह 2.62 थी, यानी 0.78प्रतिशत की गिरावट। इसका एक मतलब यह भी हुआ कि मुसलमानों की प्रजनन दर में हिंदुओं की तुलना में तेज गिरावट देखी गई है। फिर भी नरेन्द्र मोदी जनता के सामने मुसलमानों के ज्यादा बच्चे होने का झूठ बोल रहे हैं।

अब सवाल यह है कि श्री मोदी ऐसा झूठ क्यों बोल रहे हैं। क्यों जनता से वे अपने दस सालों के काम के आधार पर वोट नहीं मांग रहे। क्यों उन्हें बार-बार कांग्रेस के घोषणापत्र का जिक्र करना पड़ रहा है। क्यों वे प्रधानमंत्री पद के कर्तव्य को भूलकर हिंदू-मुसलमान के बीच भेद बढ़ाने वाली बातें कर रहे हैं। तो इन सबके पीछे एक ही कारण फिलहाल नजर आ रहा है कि पहले चरण के मतदान के बाद जो जमीनी खबरें सामने आ रही हैं, शायद उनसे भाजपा घबरा गई है। यह भी हो सकता है कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के बिना चुनाव लड़ने में भाजपा खुद को सहज नहीं पाती। श्मशान-कब्रिस्तान और कपड़ों से पहचान की बातें करने वाले नरेन्द्र मोदी इस बार के चुनावों में मुस्लिम लीग, मांस, मछली से होते हुए अब मुसलमानों की आबादी और मंगलसूत्र तक पहुंच गए हैं। प्रधानमंत्री पद की गरिमा और लोकतंत्र में नैतिकता की क्रमिक गिरावट का यह उदाहरण है। इस गिरावट को रोका जा सकता था, अगर निर्वाचन आयोग सख्ती दिखाता, बेदाग चुनाव कराने की अपनी प्रतिबद्धता पर कायम रहे।

 

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *