राजनैतिकशिक्षा

छोटी बचत योजनाओं को बनाएं आकर्षक

-डा. जयंतीलाल भंडारी-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

यद्यपि सरकार के द्वारा जनवरी से मार्च 2023 तिमाही के लिए राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र (एनएससी), डाकघर सावधि जमा, वरिष्ठ नागरिक बचत योजना सहित छोटी जमा राशि पर ब्याज दरों में की गई बढ़ोतरी देश के छोटे निवेशकों के लिए सुकूनदेह है, किन्तु महंगाई और जीवन निर्वाह के बढ़ते खर्चों के मद्देनजर अभी छोटी बचत योजनाओं और अधिक आकर्षक बनाना जरूरी है। गौरतलब है कि अब जनवरी 2023 से एनएससी पर 7 फीसदी की ब्याज दर मिलेगी जबकि वर्तमान में यह 6.8 फीसदी है। वरिष्ठ नागरिक बचत योजना वर्तमान में 7.6 फीसदी के मुकाबले अब 8 फीसदी ब्याज देगी। 1 से 5 साल की अवधि की डाकघर सावधि जमा योजनाओं पर ब्याज दरों में 1.1 फीसदी तक की वृद्धि होगी। मासिक आय योजना में भी 6.7 फीसदी से बढक़र 7.1 फीसदी ब्याज मिलेगा।

ज्ञातव्य है कि इससे पहले 9 सितम्बर को सरकार ने अक्टूबर से दिसंबर 2022 की तीसरी तिमाही में किसान विकास पत्र के ब्याज दर को 6.9 फीसदी से बढ़ाकर 7 फीसदी किया था। उल्लेखनीय है कि पिछले करीब ढाई वर्षों में कोविड-19 की आर्थिक चुनौतियों से लेकर अब तक महंगाई की चुनौतियों के बीच देश में आम आदमी, नौकरीपेशा वर्ग और निम्न मध्यम वर्ग के सामने एक बड़ी चिंता उनकी छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दर कम रहने की बनी हुई थी। इतना ही नहीं नए वर्ष 2023 में रूस-यूक्रेन युद्ध के जारी रहने, वैश्विक खाद्यान्न उत्पादन में कमी, अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व द्वारा वर्ष 2023 में मौद्रिक नीति को सख्त बनाए जाने से डॉलर की तुलना में रुपए की कीमत घटने की चिंता तथा चीन सहित दुनिया के कई देशों में कोहराम मचा रहे कोरोना वायरस के नए वैरिएंट ओमिक्रान बीएफ.7 की वजह से वर्ष 2023 में महंगाई बढऩे की आशंका के बीच नए वर्ष 2023 की शुरुआत में छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दर में वृद्धि छोटे निवेशकों के लिए राहतकारी है।

स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि इस समय देश में वैश्विक चुनौतियों के बीच अर्थव्यवस्था की गतिशीलता व कारोबार से कर्ज की मांग तेजी से बढ़ रही है और बैंकों में कर्ज के मुकाबले जमा की धीमी रफ्तार है। रिजर्व बैंक के हाल के आंकड़ों से पता चलता है कि बैंकों की ऋण वृद्धि दर जमा वृद्धि दर की तुलना में डेढ़ गुना से भी अधिक है। ऐसे में सरकारी और प्राइवेट सेक्टर के तमाम बैंकों में बढ़ते हुए ऋणों की जरूरत के मद्देनजर जमा धन राशि बढ़ाने हेतु सावधि जमा (एफडी) पर ब्याज दरों में वृद्धि की होड़ लग गई है। ऐसे में छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दर में वृद्धि न्यायसंगत दिखाई दे रही है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि छोटी बचत योजनाओं में निवेश करने वाले अधिकांश लोग छोटे करदाताओं व मध्यम वर्ग से संबंधित हैं। इस वर्ग को उम्मीद थी कि चालू वित्त वर्ष 2022-23 के बजट से उपयुक्त राहत मिलेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ है।

उम्मीद की जा रही थी कि सरकार के द्वारा वित्त वर्ष 2022-23 के बजट में टैक्स का बोझ कम करने के लिए अभूतपूर्व प्रोत्साहन सुनिश्चित किए जाएंगे। अपेक्षा थी कि टैक्सपेयर्स को राहत देते हुए सरकार के द्वारा टैक्स में छूट की सीमा को दोगुना कर 5 लाख तक की जाएगी। वित्तमंत्री के द्वारा नौकरीपेशा वर्ग के लोगों को स्टैण्डर्ड डिडक्शन की सीमा बढ़ाकर विशेष राहत दी जाएगी। उम्मीद की जा रही थी कि मौजूदा समय में धारा 80सी के तहत1.50 लाख रुपये की जो छूट मिलती है, उसे बढ़ाया जाएगा। इसके तहत ईपीएफ, पीपीएफ, एनएससी, जीवन बीमा, बच्चों की ट्यूशन फीस और होम लोन का मूलधन भुगतान भी शामिल है। मकानों की बढ़ती हुई कीमत को देखते हुए धारा 80सी के तहत 1.50 लाख की छूट पर्याप्त नहीं है। धारा 80सी के तहत कर छूट की सीमा तीन लाख रुपए किए जाने की उम्मीद की जा रही थी। देश में करीब 14 करोड़ वरिष्ठ नागरिक हैं।

वित्तमंत्री के द्वारा वरिष्ठ नागरिकों के लिए आयकर की छूट सीमा बढ़ाकर,उन्हें राहत दिए जाने की अपेक्षा की जा रही थी। चूंकि चालू वित्त वर्ष के बजट में छोटे करदाताओं को कोई संतोषजनक राहत नहीं मिली है, ऐसे में बचत योजनाओं पर ब्याज दर बढ़ाए जाने से इस वर्ग को महंगाई से मुकाबले के लिए कुछ राहत अवश्य मिली है। वस्तुत: देश में बचत की प्रवृत्ति के लाभ न केवल कम आय वर्ग के परिवारों के लिए हैं, वरन पूरे समाज व अर्थव्यवस्था के लिए भी हैं। हमारे देश में बचत की जरूरत इसलिए भी है क्योंकि हमारे यहां विकसित देशों की तरह सामाजिक सुरक्षा का उपयुक्त ताना-बाना नहीं है। अभी भी देश में बड़ी संख्या में लोगों को सामाजिक सुरक्षा (सोशल प्रोटेक्शन) की छतरी उपलब्ध नहीं है।

यद्यपि देश के संगठित क्षेत्र के लिए ईपीएफ सामाजिक सुरक्षा का महत्वपूर्ण माध्यम है, लेकिन असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले करोड़ों लोगों के लिए विभिन्न बचत योजनाओं में ब्याज दर कम होने के कारण सामाजिक सुरक्षा एक बड़े प्रश्न के रूप में उभरकर दिखाई दे रही है। इतना ही नहीं बचत योजनाओं पर मिलने वाली ब्याज दरों पर देश के उन तमाम छोटे निवेशकों का दूरगामी आर्थिक प्रबंधन निर्भर होता है जो अपनी छोटी बचतों के जरिये जिंदगी के कई महत्वपूर्ण कामों को निपटाने की व्यवस्था सोचे हुए है। मसलन बिटिया की शादी, सामाजिक रीति-रिवाजों की पूर्ति, बच्चों की पढ़ाई और सेवानिवृत्ति के बाद का जीवन। छोटी बचत योजनाएं रिटायर हो चुके और डिपोजिट पर मिलने वाले ब्याज पर निर्भर बुजुर्ग पीढ़ी का सहारा बनती हैं।

यद्यपि देश में छोटी बचत योजनाओं में ब्याज दर की कमाई का आकर्षण घटने से वर्ष 2012-13 के बाद सकल घरेलू बचत दर (ग्रास डोमेस्टिक सेविंग रेट) लगातार घटती गई है। लेकिन अभी भी छोटी बचत योजनाएं अपनी विशेषताओं के कारण बड़ी संख्या में निम्न और मध्यम वर्गीय परिवारों के विश्वास और निवेश का माध्यम बनी हुई हैं। गौरतलब है कि कोई 14 वर्ष पूर्व 2008 की वैश्विक मंदी का भारत पर कम असर होने का एक प्रमुख कारण भारतीयों की संतोषप्रद घरेलू बचत की स्थिति को माना गया था। फिर 2020 में महाआपदा कोविड-19 से जंग में भारत के लोगों की घरेलू बचत विश्वसनीय हथियार के रूप में दिखाई दी। नेशनल सेविंग्स इंस्टीट्यूट (एनएसआई) के द्वारा भारत में निवेश की प्रवृत्ति से संबंधित रिपोर्ट में कहा गया है कि जहां देश के लोगों के लिए छोटी बचत योजनाएं लाभप्रद हैं, वहीं इनका बड़ा निवेश अर्थव्यवस्था के लिए भी लाभप्रद है।

हम उम्मीद करें कि वित्त मंत्रालय के द्वारा तत्परतापूर्वक छोटी बचत की ब्याज दरों में बदलाव हेतु एक और उपयुक्त समीक्षा करके इस बार ब्याज दर बढऩे से वंचित रहे पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (पीपीएफ) और सुकन्या समृद्धि योजना की ब्याज दरों में उपयुक्त वृद्धि की जाएगी। साथ ही करीब पांच करोड़ कर्मचारियों से संबंधित कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) पर वर्तमान में दी जा रही और चार दशक की सबसे कम 8.1 फीसदी ब्याज दर में भी वृद्धि की जाएगी। इससे महंगाई की निराशाओं एवं मुश्किलों के बीच छोटी बचत करने वाले देश के करोड़ों लोगों के चेहरे पर मुस्कुराहट बढ़ते हुए दिखाई दे सकेगी। साथ ही बचत की प्रवृत्ति बढऩे से छोटी बचत योजनाओं के बढ़े हुए कोष से अर्थव्यवस्था के लिए लगातार विश्वसनीय निवेश भी बढ़ाया जा सकेगा।

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