राजनैतिकशिक्षा

विजन के साथ आगे आएं उम्मीदवार

-सुखदेव सिंह-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

लोकतंत्र की प्रथम इकाई पंचायत के चुनावों का बिगुल बजते ही गांवों में राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं। पंचायत चुनावों में अपना भाग्य आजमाने वाले प्रत्याशी इस बार अधिक उत्साहित नजर आ रहे हैं। चुनाव की अधिसूचना जारी हो चुकी है और पूर्व पंचायत प्रतिनिधियों ने अपने काम गिनवाने और नव प्रत्याशियों ने दावे भी शुरू कर दिए हैं। पंचायत चुनावों में हिस्सा लेने वालों के लिए चुनाव आयोग सख्त नियम लागू करने वाला है, यह पिछले लंबे समय से अटकलें लगाई जा रही थीं, मगर ऐसी कोई शर्त न होने की वजह से प्रत्येक व्यक्ति को इस महादंगल में कूदने का राजनीतिक अधिकार है। सोशल मीडिया पर इस महादंगल में कूदने वाले प्रत्याशियों द्वारा दावे जोरशोर से करके जनता से समर्थन मांगने की कवायद शुरू हो चुकी है। चुनावों में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करना हमारा लोकतांत्रिक राजनीतिक अधिकार है। ऐसे में सभी मतदाताओं का यही दायित्व बनता है कि वे अपने राजनीतिक मत का सही उपयोग करके लोकतंत्र की प्रथम इकाई का चयन करें। प्रत्याशियों को पंचायत चुनाव एक विजन और मिशन समझकर लड़ने की अधिक जरूरत है। प्रत्याशी आखिर यह चुनाव क्यों लड़ रहे हैं और वे पूर्व पंचायतों की कार्यप्रणाली से कहां तक संतुष्ट रहे, जनता को यह जरूर बताएं। पंचायतों में बढ़ते भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए उनके पास क्या योजना है, इसके बारे में भी जनता को अवगत करवाना चाहिए। कोरोना वायरस जैसी महामारी के बीच हो रहे इन चुनावों को लेकर बहुत ही सतर्कता बरतने की अधिक जरूरत रहेगी।

प्रत्याशियों को स्वयं अपनी और जनता की सुरक्षा सुनिश्चित कर ही इस महादंगल में कूदना होगा। कहीं ऐसा न हो कि हम दो गज की दूरी तथा मास्क पहनना जरूरी की बात भूलकर भीड़ एकत्रित करके चुनाव प्रचार में निकल पड़ें। अगर वास्तव में सरकारी आदेशों की अवहेलना हुई तो कोरोना वायरस को फैलने से कोई नहीं रोक पाएगा। मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर की सरकार ने पंचायत चुनावों में जनता की सुरक्षा को लेकर एसओपी बनाई है। हिमाचल प्रदेश में इस बार कुल 6433168 मतदाता हैं। एक दिसंबर 2020 को अठारह वर्ष पूरे करने वाले युवा भी अपने राजनीतिक मत का उपयोग कर सकते हैं। लोकतंत्र की सफलता के मार्ग में बाधाएं अनेक होने की वजह से ऐसे चुनाव केवल मात्र मजाक बनते जा रहे हैं। गरीबी, अनपढ़ता, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, क्षेत्रवाद, जातिवाद, भाषावाद, भुखमरी की वजह से ऐसे चुनाव लोकतंत्र के लिए घातक हैं। आज हमें इस बात पर भी सोचना होगा कि आखिर जिन लोगों का चयन जनता करने जा रही है, वास्तव में क्या वे इसके योग्य भी हैं? सच्चाई कहीं इसके विपरीत है क्योंकि अधिकतर पंचायत प्रतिनिधियों को पंचायतीराज एक्ट का ज्ञान नहीं होता है। नतीजतन वे अपने अधिकारों का सही उपयोग नहीं कर पाते। ऐसे में जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारियां कौन सही निभाए, यह बड़ा सवाल है।

पंचायत प्रतिनिधि जनता की समस्याएं स्वयं सुलझाने की बजाय उन्हें पुलिस थानों में भेजकर अपने अधिकारों का सही पालन करने में नाकाम चल रहे हैं। चुनावों में अपनी नैया पार लगाने के लिए राजनीतिक दल दिन-रात एक कर देते हैं। पंचायत चुनावों में जिस राजनीतिक दल के प्रत्याशी अत्यधिक चुने जाएंगे, उसी आधार पर सन् 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों की बिसात बिछाई जाएगी। वार्ड पंच से लेकर जिला परिषद अध्य्क्ष तक चुनने के लिए राजनीतिक दलों के नेता खूब मेहनत करते हैं। गरीबी किसी अभिशाप से कम नहीं होती है। गरीब व्यक्ति की प्राथमिकता सिर्फ अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करना होता है। ऐसे निर्धन लोगों का किसी राजनीतिक दल से कोई सरोकार नहीं होता है। इसी बात का राजनीतिक दलों के नेता पूरा लाभ उठाते आ रहे हैं। चुनावों के दौरान गरीब जनता को धन का लालच देकर, कंबल, मोबाइल फोन एवं अन्य दूसरी चीजें देकर वोट लिए जाने के प्रयास पिछले सात दशकों से किए जा रहे हैं। नतीजतन अयोग्य प्रत्याशी लोकतंत्र की कमान सभाल रहे हैं। अक्सर चुनावों के दौरान प्रत्याशी शराब का वितरण करके भी मतदाताओं को अपने पक्ष में वोट डालने के लिए उकसाते हैं। पूर्व पंचायत प्रतिनिधियों ने अपना वोट बैंक बनाए रखने के लिए प्रदेश के लाखों लोगों के साथ भद्दा खेल खेला है। लोकतंत्र के लालची प्रहरियों ने गरीब लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है। पंचायत प्रतिनिधियों ने बड़े स्तर पर गरीब लोगों को मकान बनाने के लिए सरकारी राशि मुहैया करवाए जाने के वायदे किए थे, जो अधूरे ही रह गए हैं।

ब्लाक स्तर पर ऐसे हजारों गरीब लोगों के आवेदन लंबित पड़े हैं। आखिर कब ऐसे गरीब लोगों को मकान बनाने के लिए ग्रांट मिलेगी, कोई नहीं जानता है। हिमाचल प्रदेश की कुछेक पंचायतें भ्रष्टाचार का अड्डा बनकर उभरी हैं। पंचायत प्रतिनिधियों ने सरकारी बजट का जमकर दुरुपयोग करके विकास कार्यों के प्रति नकारात्मक रवैया अपनाया था। प्रदेश में बेरोजगारों का आंकड़ा दस लाख से भी अधिक है। कोरोना वायरस की वजह से लोगों के कामकाज पर विपरीत असर पड़ा है। ये मसले भी पंचायत चुनाव में उठ सकते हैं। लोगों को सोच-समझकर ही मतदान करना होगा। जो प्रत्याशी अपने वादों से मुकर सकता है, ऐसे लोगों को चुनाव जिताना ठीक नहीं होगा। जो प्रत्याशी जनता के हितों की चिंता करता हो, उसे ही चुना जाना चाहिए। प्रत्याशियों का सुशिक्षित होना भी जरूरी है। लोकतांत्रिक संस्थाएं सुचारू रूप से काम करती रहें, इसके लिए चुने गए लोगों का शिक्षित होना बहुत जरूरी है। इस बार के चुनाव में युवाओं की पंचायत, ब्लाक समिति और जिला परिषद चुनावों के प्रति विशेष रुचि देखने को मिल रही है।

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