राजनैतिकशिक्षा

चुनावी तराजू पर रेवडिय़ां

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

चुनाव के तराजू पर रेवडिय़ां बेशुमार और समाज को लाभार्थी बनाने के संकल्प सिर्फ चेहरा बदल कर आ रहे हैं। हिमाचल में मतदान से एक सप्ताह पूर्व घोषणाओं का रुख और दृष्टिपत्रों के सम्मुख बेहतर दिखने की प्रतियोगिता में यह तय करना मुश्किल है कि कौन पार्टी बेहतर साबित होगी, फिर भी इबारत लंबी और दिलकश है। मोहनी सूरत लिए चुनावी अंदाज की कहावतें बदल रही हैं। कांग्रेस का मुख्य उद्देश्य कर्मचारी संवेदना को नैतिक समर्थन देना है। कांग्रेस का घोषणा पत्र पहली पंक्ति में ओल्ड पेंशन बहाली, चतुर्थ श्रेणी कर्मियों को साठ साल में रिटायरमेंट और पुलिस कर्मियों को तेरह महीने की पगार की वचनबद्धता दिखा रहा है, तो भाजपा ने यूनिफार्म सिविल कोड का उद्घोष पैदा करके अपनी पारंपरिक पिच को सिंचित किया है। भाजपा के संकल्प समाज के भीतर लाभार्थियों की कई श्रृंखलाएं पैदा कर रहे हैं। मसलन मुख्यमंत्री अन्नदाता योजना के तहत पहले से किसान निधि प्राप्त कर रहे कृषकों को अतिरिक्त तीन हजार की सौगात मिल रही है। सेब व अन्य फलों की पैकेजिंग पर जीएसटी के बारह प्रतिशत तक ही वसूला जाएगा, जबकि अतिरिक्त भार सरकार वहन करेगी। हिम स्टार्ट अप की महत्त्वाकांक्षी योजना के तहत पांच सौ करोड़ की राशि का निर्धारण युवाओं को प्रेरित कर सकता है। कांग्रेस बनाम भाजपा के बीच घोषणा पत्रों का रोचक मुकाबला रोजगार के पहलू में बैठकर मुनादी कर रहा है।

कांग्रेस ने सत्ता संभालते सीधे एक लाख सरकारी नौकरियों की हामी भरी, तो भाजपा अगले पांच साल के खाके में आठ लाख रोजगार अवसर चिन्हित कर रही है। इतना ही नहीं पांच नए मेडिकल कालेज तथा स्त्री शक्ति संकल्प के तहत कई तरह के शगुन बांट रही है। हर विधानसभा क्षेत्र में दो कन्या छात्रावास तथा नौकरियों में महिला आरक्षण के तहत 33 प्रतिशत दर मुकर्रर करके भाजपा अपनी वचनबद्धता के दायरे बढ़ा रही है। वक्फ बोर्ड की संपत्तियों का सर्वेक्षण करके पार्टी एक अनूठा कौतुहल पैदा कर रही है, तो हिम तीर्थ सर्किट के तहत बारह हजार करोड़ का शक्ति कार्यक्रम बड़े पैमाने पर अधोसंरचना तथा धार्मिक पर्यटन के विकास का आश्वासन है। भाजपा के दृष्टिपत्र की नपी तुली बातें जनता की खुशामद, प्रदेश की हिफाजत और सामाजिक सुरक्षा का अलंकरण कर रहा है, तो कांगे्रस की रेवडिय़ों में प्रत्येक घर को तीन सौ यूनिट मुफ्त बिजली, विवाह के लिए अनुदान, औद्योगिक पैकेज, पुजारियों को दोगुना मानदेय, पत्रकारों को पेंशन व वरिष्ठ नागरिकों को तीर्थ यात्रा जैसे वादों से भक्त बनाया जा रहा है। कांग्रेस के वादे आधुनिक हिमाचल का खाका खींचते हुए पर्यटक स्थलों पर हिमाचली रसोई, शिमला में मानव संग्रहालय, पालमपुर में युद्ध संग्रहालय, हर विधानसभा क्षेत्र में चार-चार अंग्रेजी माध्यम के स्कूल, नगर निगमों में तीन बड़े पार्क, सोलन में स्पेशल फूड पार्क तथा स्मार्ट विलेज परियोजना की परिकल्पना कर रहे हैं।

कांग्रेस अपनी गारंटियों के अलावा घोषणापत्र की व्याख्या में कर्मचारियों के साथ खड़ी होती है, तो निजी शिक्षण संस्थानों के फीस नियंत्रण को लेकर अभिभावकों को आश्वासन देती है। पशुचारे पर अनुदान से लेकर नई विद्युत परियोजनाओं के प्रभावितों को रोजगार की सौ फीसदी गारंटी दे रही है। बहरहाल, दोनों पार्टियां जनता की खुशामद में तराने ढूंढ लाई हैं, लेकिन न तो यह आश्वासन मिल रहा है कि इनके लिए वित्तीय संसाधन आएंगे कहां से और न ही राज्य को आत्मनिर्भर बनाने का कोई पैगाम सामने आ रहा है। खेल ढांचे पर भी दोनों पार्टियां मौन दिखाई दे रही हैं। बेशक कांग्रेस और भाजपा की ओर से नए मेडिकल कालेज खोलने की तकरीर पेश है, लेकिन कोई भी पार्टी चिकित्सा व शिक्षा क्षेत्र में गुणवत्ता लाने की वचनबद्धता नहीं कर रही है। दोनों दल अपने-अपने घोषणा पत्रों के मार्फत जनता से संबोधन करते हुए पोस्टर तो बांट रहे हैं, लेकिन इस नेकी के दरिया में संसाधनों का सूखापन किस नीति से दूर होगा, दिखाई नहीं दे रहा है। नीतियों और नियमों की बात से कतराते घोषणापत्र दरअसल शहद में भीगी हुई बातें तो कर रहे हैं, लेकिन क्या जनता की अदालत में ये वादे सफल हो पाएंगे। सुशासन, वित्तीय अनुशासन और नए हिमाचल के निर्माण में प्राकृतिक संसाधनों के दोहन पर न तो कोई दल दृढ़ प्रतिज्ञ है और न ही वन आर्थिकी या पर्यावरण संरक्षण की भरपाई के लिए प्रयासरत दिखाई दे रहा है।

 

 

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