राजनैतिकशिक्षा

चुनौतियों के बीच आर्थिक रणनीति

-डा. जयंतीलाल भंडारी-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

हाल ही में 13 अक्तूबर को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि गरीबों और किसानों के सशक्तिकरण के मद्देनजर भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा वर्ष 2014 से लागू की गई प्रत्यक्ष नगद हस्तांतरण (डीबीटी) योजना एक चमत्कार की तरह है। इससे सरकारी योजना का फायदा सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में पहुंच रहा है। साथ ही भारत में करोड़ों लोगों के लिए कोरोना काल से अब तक डिजिटलीकृत सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से सरलतापूर्वक निशुल्क खाद्यान्न की बेमिसाल आपूर्ति की जा रही है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि कोरोना काल की चुनौतियों के बाद इस समय जब पूरी दुनिया में रूस-यूक्रेन युद्ध, चीन-ताइवान तनाव और आपूर्ति श्रृंखला में अवरोधों की वजह से आर्थिक-वित्तीय चुनौतियों और बढ़ती महंगाई से हाहाकार मचा हुआ है, तब भारत में डीबीटी से करोड़ों लाभार्थियों के खातों में सीधे सब्सिडी की पहुंच और चुनौतियों से निपटने के लिए अपनाई गई विवेकपूर्ण आर्थिक रणनीति से आम आदमी के लिए राहतकारी परिदृश्य उभरकर दिखाई दे रहा है। निश्चित रूप से डीबीटी योजना गरीबों और किसानों के सशक्तिकरण में अहम भूमिका निभा रही है और उनके लिए राहतकारी है। केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के मुताबिक 31 मई 2022 तक किसान सम्मान निधि योजना के तहत 11 करोड़ से अधिक किसानों के खातों में डीबीटी से सीधे करीब दो लाख करोड़ रुपए हस्तांतरित किए जा चुके हैं।

यह अभियान दुनिया के लिए मिसाल बन गया है और इससे छोटे किसानों का वित्तीय सशक्तिकरण हो रहा है। गौरतलब है कि रूस और यूक्रेन युद्ध के बीच पश्चिमी देशों के दबाव के बावजूद भारत ने जिस तरह तटस्थ रुख अपनाया, उसके कारण भारत इस समय रूस से पर्याप्त छूट और रियायतों पर सस्ता कच्चा तेल प्राप्त कर रहा है। उल्लेखनीय है कि चालू वित्त वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही अप्रैल से जून के बीच तेल के कुल आयात में रूस की हिस्सेदारी पिछले वर्ष की इसी अवधि के 2.02 फीसदी से बढक़र करीब 12.9 फीसदी हो गई है, जबकि अमेरिका की हिस्सेदारी पिछले वर्ष की इसी अवधि के 9.2 फीसदी से घटकर 5.4 फीसदी रह गई है। नए आंकड़ों के मुताबिक इस समय भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चे तेल का आयातक और उपभोक्ता देश है। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि जब से भारत ने पर्याप्त छूट के साथ रूस से कच्चे तेल का आयात शुरू किया है, तब से भारत को इराक द्वारा भी कच्चे तेल की आपूर्ति में बड़ी छूट की पेशकश की जा रही है। जहां रूस से प्राप्त सस्ते कच्चे तेल के कारण भारत में महंगाई का नियंत्रण आसान हुआ है, वहीं रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के द्वारा देश में महंगाई में कमी लाने के रणनीतिक कदम भी देश में आर्थिक चिंताओं के बीच राहतकारी हैं। वस्तुत: महंगाई नियंत्रण के लिए रिजर्व बैंक नरम मौद्रिक नीति से पीछे हटकर नीतिगत दरों में वृद्धि की रणनीति पर आगे बढ़ा है। रिजर्व बैंक बाजार से चुपचाप तरलता खींच रहा है। इसके अनुकूल परिणाम भी दिखाई दे रहे हैं। इस समय वैश्विक आर्थिक चुनौतियों के बीच देश की आर्थिक रणनीति का एक अहम पड़ाव भारतीय रिजर्व बैंक के द्वारा भारत और अन्य देशों के बीच व्यापारिक सौदों का निपटान रुपए में किए जाने संबंधी महत्वपूर्ण निर्णय भी है।

विगत 11 जुलाई को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के द्वारा भारत व अन्य देशों के बीच व्यापारिक सौदों का निपटान रुपए में किए जाने संबंधी निर्णय के बाद इस समय डॉलर संकट का सामना कर रहे रूस, इंडोनेशिया, श्रीलंका, ईरान, एशिया और अफ्रीका के साथ विदेशी व्यापार के लिए डॉलर के बजाय रुपए में भुगतान को बढ़ावा देने की नई संभावनाएं सामने खड़ी हुई दिखाई दे रही हैं। विगत 7 सितंबर को वित्त मंत्रालय ने सभी हितधारकों के साथ आयोजित बैठक में निर्धारित किया कि बैंकों के द्वारा दो व्यापारिक साझेदार देशों की मुद्राओं की विनिमय दर बाजार आधार पर निर्धारित की जाएगी। निर्यातकों को रुपए में व्यापार करने के लिए प्रोत्साहन और नए नियमों को जमीनी स्तर पर लागू करने की रणनीति तैयार की गई है। इस रणनीति को वाणिज्य मंत्रालय और रिजर्व बैंक आपसी तालमेल से लागू करेंगे। इसी तरह भारत के द्वारा अन्य देशों के साथ भी एक-दूसरे की मुद्राओं में भुगतान की व्यवस्था सुनिश्चित करने की डगर पर आगे बढ़ रहा है। इससे रुपए को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लेन-देन के लिए अहम मुद्रा बनाने में मदद मिलेगी। इससे जहां व्यापार घाटा कम होगा, वहीं विदेशी मुद्रा भंडार घटने की चिंताएं कम होंगी। निश्चित रूप से इस समय वैश्विक आर्थिक एवं वित्तीय चुनौतियों तथा वैश्विक मांग में धीमेपन के बीच भारत में सरकार के द्वारा अपनाई गई आर्थिक रणनीति आम आदमी और अर्थव्यवस्था के लिए राहतकारी है। लेकिन अभी भी खाद्य वस्तुओं की महंगाई दर आरबीआई के लिए चुनौती बनी हुई है। ऐसे में महंगाई में तत्परता से और अधिक कमी लाने की जरूरत है। इसी वर्ष 6 फीसदी तक महंगाई नियंत्रण और आगामी दो वर्षों में खुदरा महंगाई दर घटाते हुए चार फीसदी तक लाए जाने के लक्ष्य को पाने के लिए रेपो रेट में कुछ और वृद्धि करके अर्थव्यवस्था में नकद प्रवाह को कम किया जाना उपयुक्त होगा।

यह जरूरी है कि घरेलू उत्पादन वृद्धि और स्थानीय उद्योगों को प्रोत्साहन के साथ आत्मनिर्भर भारत अभियान को तेजी से आगे बढ़ाकर व्यापार घाटे में कमी की जाए। जिस तरह भारत की डीबीटी आम आदमी के सशक्तिकरण का आधार बनकर दुनिया में एक चमत्कार के रूप में सराही जा रही है, अब उसी तरह ग्रामीण स्वामित्व योजना भी गांवों में रहने वाले करोड़ों गरीबों और छोटे किसानों की आमदनी बढ़ाने और उनके सशक्तिकरण के साथ-साथ ग्रामीण विकास में मील का पत्थर बनकर दुनिया के लिए भारत का नया चमत्कार बन सकती है। ज्ञातव्य है कि मध्यप्रदेश के वर्तमान कृषि मंत्री कमल पटेल के द्वारा अक्तूबर 2008 में उनके राजस्व मंत्री रहते लागू की गई स्वामित्व योजना जैसी ही मुख्यमंत्री ग्रामीण आवास अधिकार योजना लागू की गई थी। इसके तहत हरदा के दो गांवों के किसानों को पायलेट प्रोजेक्ट के रूप में 1554 भूखंडों के मालिकाना हक के पट्टे सौंपे गए थे। पिछले 14 वर्षों में इन दोनों गांवों का आर्थिक कायाकल्प हो गया है। ऐसे में अब पूरे देश के गांवों में स्वामित्व योजना के लगातार विस्तार से गांवों के विकास और किसानों की अधिक आमदनी का ऐसा अध्याय लिखा जा सकेगा, जिसकी अभिकल्पना महात्मा गांधी ने की है। हम उम्मीद करें कि डीबीटी के लिए अधिक मजबूती, व्यापार घाटे में कमी के उपायों, औद्योगिक और खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि तथा स्वामित्व योजना के तेज विस्तार से कृषि व ग्रामीण अर्थव्यवस्था के साथ देश की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी। साथ ही इन विभिन्न उपायों पर ध्यान दिए जाने से देश वैश्विक आर्थिक-वित्तीय चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना कर सकेगा तथा देश के करोड़ों लोगों को और अधिक राहत दी जा सकेगी।

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