राजनैतिकशिक्षा

मित्र बने दुश्मन नहीं

-संजय गोस्वामी-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

जिस तरह इजराइल और ईरान मे जंग हो गया वो दोनों के लिए घातक है जबकि रूस उक्रेन युद्ध के 2साल से ज्यादा हो गए लेकिन कभी तक ख़त्म नहीं हुआ इससे दोनों राष्ट्र को नुकसान हो रहा है और विश्व की अर्थव्यवस्था गरबड़ा गई है जिन राष्ट्रों के बीच मैत्री है, वे सुखी, सम्पन्न, समृद्ध राष्ट्र हैं। जहाँ राष्ट्र के अन्दर अथवा पड़ोसी राष्ट्रों से मैत्री नहीं है वहाँ निरन्तर अशान्ति और दरिद्रता होती है। मैत्री सम्पूर्ण धर्म है, भगवान बुद्ध के इस कथन को यदि हम आध्यात्मिक अर्थों में न भी सही, दूसरे अन्य आयामों से देखें, तो भी सर्वत्र मैत्री दिखायी देती है। सृष्टि में जो कुछ भी अस्तित्व में है, सृजनात्मक है, वह मैत्री के कारण है। पेड़ और मिट्टी में मैत्री है इसलिए वनस्पत्तियाँ अस्तित्व में हैं, पेड़ मिट्टी को पकड़े है, मिट्टी पेड़ की जड़ों को पकड़े है। यह पेड़ की जड़ों और मिट्टी की मैत्री है। इसी मैत्री से समस्त वनस्पति जगत अस्तित्व में है। वनस्पतियों से प्राणीमात्र अस्तित्व में है। वनस्पतियों से औषधियाँ हैं, औषधियों से स्वास्थ्य है, स्वास्थ्य से जीवन है, यह सब मिट्टी और पेड़ की मैत्री के कारण है।
सूरज की धरती से मैत्री है, धरती की भी सूरज से मैत्री है। धरती सूरज की परिक्रमा करती रहती है, सूरज अपनी धरती के लिए तपता रहता है। सूरज और धरती की मैत्री से प्राणीमात्र का अस्तित्व है। ब्रह्माण्ड के सारे ग्रह पिंड गुरुत्वाकर्षण के अनुशासन में एक दूसरे के साथ मैत्री में हैं। इसी मैत्री से सकल ब्रह्माण्ड का अस्तित्व है। सीमेन्ट की ईटों से मैत्री है, तब भवन खड़ें है। भवन की भूमि से मैत्री है। यंत्रों, मशीनों, वाहनों इत्यादि में समस्त कल-पुर्जे एक दूसरे के साथ मैत्री में होते हैं, तो यंत्र संचालित होते हैं, जैसे ही यंत्रों के बीच मैत्री खण्डित होती है व्यवधान या दुर्घटना होती है। शरीर के अंगों को देखें, तो हर अंग शेष अंगों के साथ मैत्री में होता है, तो व्यक्ति स्वस्थ कहलाता है, अन्यथा विकलांग या अस्वस्थ कहा जाता है। तन-मन-चेतना की मैत्री से जीवन अस्तित्व में है। गुरु और शिष्य में मैत्री है, तो ज्ञान है। उपासक और उपास्य में मैत्री है तो ध्यान है।
पति-पत्नी के बीच मैत्री है, परिवार के सदस्यों के बीच मैत्री है, तो एक स्वस्थ सुखी परिवार है, जैसे ही किसी भी स्तर पर यह मैत्री खण्डित होती है, परिवार बिखर जाता है। समाज में मैत्री है, तो एक स्वस्थ खुशहाल समाज कहा जाता है। समाज और सम्प्रदायों में मैत्री खण्डित हो जाए, तो दंगे और फसाद होने लगते हैं। छात्र और शिक्षक के बीच में मैत्री है, तो विद्या अच्छी है, विद्यालय अच्छे हैं, परिणाम अच्छे हैं, आजीविका है अन्यथा विपरीत परिणाम भी देखे जा सकते हैं। इस प्रकार यदि हम चारों ओर नजर घुमाकर देखें, तो जो कुछ भी अच्छा है, सृजनात्मक है, अस्तित्व में है, शुभ है, वह मैत्री के कारण है। इस दृष्टिकोण से भी देखें, तो भी भगवान बुद्ध के वचन सत्य हैं-मैत्री सम्पूर्ण धर्म है। वादक और वाद्य, गीत और कण्ठ, राग और रागिनी में मैत्री हो, तो गीत-संगीत सृजित होता है अन्यथा संगीत बेसुरा हो जाता है। नमक, मसाला, तेल, सब्जी, आंच और पकाने वाले में मैत्री है तो भोजन स्वादिष्ट बनता है अन्यथा भोजन बेस्वाद हो जाता है। आप जितने भी आयामों से देख लें, संसार में, जीवन में, जो कुछ भी शुभ, सुन्दर है, कल्याणकारी, मंगलकारी है, वह मैत्री के कारण है। कहा जा सकता है कि मैत्री से जगत का अस्तित्व है। मैत्री प्रेम का उच्चतर रूप है, मित्रता का परिष्कृत रूप है। प्रेम और मित्रता भी विकृत हो जाते हैं। ये परिष्कृत होते हैं, तो मैत्री का जन्म होता है। इसलिए भगवान बुद्ध ने मित्रता या प्रेम को सम्पूर्ण धर्म नहीं कहा है लेकिन मैत्री को सम्पूर्ण धर्म कहा है क्योंकि अपने शुद्ध सत्यरूप में मैत्री कभी विकृत नहीं होती, जो अविकृत न हो सके वही सम्पूर्ण है। मैत्री सम्पूर्ण धर्म है। मित्रता और मैत्री के सूक्ष्म भेद को समझना भी आवश्यक है। मित्रता के लिए दूसरा होना अनिवार्य है। यह दूसरा एक व्यक्ति, एक से अधिक व्यक्ति या समूह भी हो सकता है। मित्रता में दूसरा के होने की अनिवार्यता की परनिर्भरता है, जब कि मैत्री चित्त की एक अवस्था है, दूसरा हो अथवा न हो। मैत्री में दूसरा होने की अनिवार्यता, बाध्यता या परनिर्भरता नहीं है। मैत्री चित्त में मित्रता होगी ही, लेकिन मित्रता में मैत्री चित्त भी हो यह अनिवार्य नहीं है। दो हिंसक अपराधियों, दो शराबियों में भी मित्रता होती है, लेकिन उनके पास मैत्री चित्त नहीं होता या अल्पमात्रा में अथवा प्रसुप्त अवस्था में होता है। यदि उनमें मैत्री चित्त होता, तो वे अपराधी अथवा शराबी ही न होते। इसलिए भगवान बुद्ध ने मित्रता को सम्पूर्ण धर्म नहीं कहा है, बल्कि मैत्री को सम्पूर्ण धर्म कहा है। जहाँ मित्रता है प्रायः वहीं शत्रुता भी देखने को मिलती है। यह एक कहावत जैसा कथन बन गया है कि दो अच्छे मित्र ही अच्छे शत्रु भी हो सकते हैं अथवा अच्छे शत्रु ही घनिष्ट मित्र भी बन सकते हैं। इस विभेद को बारीकी से समझना इसलिए भी आवश्यक है, क्योंकि आजकल मित्रता के नाम पर कई दिवस बड़े लोकप्रिय हो गये हैं, जैसे मित्रता दिवस या फ्रेन्डशिप डे इत्यादि। ऐसी मित्रता के विकृत रूप भी प्रायः देखने-सुनने में आते हैं। मित्रता में विश्वासघात के प्रकरण भी प्रायः प्रकाश में आते हैं। मित्र के रूप में छुपे शत्रु को पहचानना मुश्किल होता है। ऐसी बात नहीं है कि भगवान बुद्ध ने सिर्फ मैत्री पर बल दिया है, उन्होंने मित्रता के धर्म पर भी प्रकाश डाला है। खुद्दक निकाय के मित्ता निसंस सुत्त-मित्रता महिमा सूत्र-में एक संवाद में भगवान बुद्ध मित्रता में द्रोह या विश्वासघात न करने को महानतम मित्रता कहते हैं। मित्र जो द्रोह या विश्वासघात नहीं करता उसके अनेकानेक फल बताए हैं :–
-वह अपने घर से बाहर जाने पर बहुत खाने-पीने को पाता है, उसके सहारे और भी बहुत लोग जीते-खाते हैं, जो मित्रों से द्रोह नहीं करता।
-वह जिस-जिस जनपद, निगम और राजधानी में जाता है, सर्वत्र पूजित होता है, जो मित्रों से द्रोह नहीं करता।
-उसे चोर परेशान नहीं करते, शासक उसका अनादर नहीं करते, वह सभी अमित्रों अर्थात शत्रुओं पर विजय पा लेता है, जो मित्र से द्रोह नहीं करता। चोर तब तक चोर नहीं कहा जाता जब तक पकड़ा नहीं जाता ऐ गन्दी आदत गन्दे आदमी के संपर्क के कारण होता है
-वह अक्रुद्ध मन से अर्थात प्रसन्न मन से घर आता है, सभाओं में उसके पहुँचने पर लोग आनन्दित होते हैं, उसका स्वागत करते हैं, नाते-रिश्तेदारों में वह उत्तम माना जाता है, जो मित्रों से द्रोह नहीं करता।
-वह मित्र का सत्कार करके सत्कार पाता है, (मित्र का) गौरव करके गौरव पाता है, उसकी शोभा और कीर्ति की चारों ओर चर्चा होती है, जो मित्रों से द्रोह नहीं करता।
-(मित्र की) पूजा करने वाला पूजित होता है, वन्दना करने वाला वन्दित होता है, यश व कीर्ति पाता है, जो मित्रों से द्रोह नहीं करता। मित्र क़ो हमेशा पहचान भी करना आवश्यक है यदि आपके बुरे वक़्त में साथ नहीं देता तब वह मित्र है ही नहीं मित्र किसी भी दल का हो विचार अच्छा होना चाहिए इसकी पहचान कोविड महामारी के दूसरी लहर में देखने क़ो मिली जो परिवार का क़ोई सदस्य दुनिया से चला गया और आपके अपने ही सदस्य होते हुए भी जानबूझकर नहीं आया कि कहीं कोविड ना हो जाए सारी घटनाएं ईश्वर यानी प्रभु राम की मर्जी से होती है और जो होना होगा वह घर में भी हो जायेगा बहुत से लोगों मे ज्योतिष के कहने के कारण अकाल मौत कहते है देखिये ये सब प्रभु राम की माया है जब जब जनसंख्या बढ़ती है तो प्रकृति उसे अपने अनुसार उचित कदम उठाती जिस पर आपमे नाराजगी होगी लेकिन जो आपने नहीं बनाया उस पर आप अपना अधिकार कैसे जता सकते है ऐ सारी बातें गीता मे लिखी है यानि जो जवान संसार से अलविदा कह दिया है वो प्रेत योनि मे चला गया फिर उसके लिए ऐ करें वो करें ऐ सब बेकार की बातें है मुझे अभी तक कुछ दिखा नहीं इसलिए मैं यह कह सकता हूँ ऐ भ्रान्ति है क्योंकि आदमी तो आँख मुंदकर दुनिया से चला जता है वो कैसे दूसरे क़ो किस आँख से दिखाई देगा हाँ मैं इतना कह सकता हूँ प्रभु राम मे इतनी शक्ति जरूर है कि उसे जिन्दा कर दें और कुछ ऐसी घटनाये हुई है की राम भक्त ने अपनी कठिन साधना से किया है जैसे जब गुरूगोविन्द सिंहजी करतारपुर मे खालसा पंथ की स्थापना हेतु करीब 345साल पहले अपने शिष्यों की परीक्षा लेने हेतु आम सभा बुलाई और उन्होंने एक शीश माँगा जो मेरा भक्त है वो आ जाए सब हैरान हो गए लेकिन सबों की ना सुनते हुए अपने गुरू के पास चला गया और गुरूजी तम्बू मे लें गए और सबों क़ो ऐसा लगा गुरूजी ने उसका शीश काट दिया है क्योंकि वहाँ उन्होंने तलवार की आवाज़ सुनाई दि और रक्त बहते देखा गया फिर दूसरा शीश मांगे फिर दूसरा शिष्य किसी की परवाह ना करते हुए चला गया और ऐसे कर पाँच शिष्य ने गुरूजी क़ो अपना सवत्र न्योछावार कर दिया और फिर पाँचो सही सलामत बाहर निकलें जो पंचप्यारे के नाम से खालसा पंथ की स्थापना की उन्होंने बड़ा सबक उन्हें दिया है जो धर्म के नाम पर सर तन से जुदा का नारा देते हैं उन्होंने ऐ दिखाया कि ईश्वर मे यदि तुम्हारी अपार आराधना हो तो यदि काटना आता है तो उसे जोड़ना भी आना चाहिए जैसे भगवान शंकर क्रोध मे गणेश जी का सर काट कर पुनः जोड़ देते हैं उसे अपना कहलाने लायक बिलकुल नहीं वो इसलिए आपके परिवार के कोविड से मौत में नहीं गया कि उसे भी या परिवार के लोग क़ो कोविड हो जायेगा उसे ईश्वर ने बुलाया है अगर मौत आनी होगी तो कौन टाल सकता है कोविड नहीं किसी दूसरे कारण से ही सकती है पंच तत्व का यह शरीर -अग्नि मे जलकर जैसा प्रदीप्त होता है, देवताओं के जैसा शोभायमान होता है, श्रीसम्पन्न रहता है, जो मित्रों से द्रोह नहीं करता.यही भगवान श्री राम ने बताया और सभी भक्तों से मित्रता कर रावण को युद्ध में हराया यहाँ तक उसके भाई विभिषण पर भी भरोसा किया और उसके साथ रहकर उसकी कूटनीति चाल से रावण का संहार किया.श्री राम ने सभी से मित्रता की और सब का कल्याण किया जब भगवान राम ने बाली और रावण का बध किया जो जीवन के अंतिम समय दोनों ने कहा प्रभु मैं पहचान ना सका और माफी मांगी प्रभु ने यहाँ तक की रावण का अंतिम संस्कार भी किया और यह संदेश दिया की मरने पर किसी से वैर नहीं करना चाहिए. इस तरह भगवान राम ने मित्रता का सबसे अच्छा उदाहरण पेश किया. आपका सही मित्र वही हो सकता है जो आपके बुरे वक्त मे साथ दें केवल फोन से बात नहीं हकीकत समझें मिलना जरुरी है जैसे भगवान श्री कृष्ण से सुदामा से मिले और दोश्ती का ऐतिहासिक परिचय भगवान कृष्ण देते हैं।

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