राजनैतिकशिक्षा

ममता के प्रताप के सामने ढेर हुए मोदी व उनके कमांडर…!

-नईम कुरेशी-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

ममता बनर्जी भारत की महिलाओं की बंगाल चुनावों में दुर्गा साबित हो गइऔ। उन पर तमाम हिन्दू मुस्लिम नारे, राम के नाम पर खूब झूठी बातें फैलायी गयीं। बाहरी यू.पी., बिहारी, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्रियों सहित हजारों कार्यकर्ता, विधायक, मंत्री, सांसद इन चुनावों में भा.ज.पा. को झोंकने पड़े। तमाम केन्द्रीय पुलिस बलों से बंगाल की जनता को डरवाया गया। तमाम मंत्री, संघ परिवार ने बंगाल में झोंक दिये थे पर वो सब बेकार साबित हुए क्योंकि ममता जरूर खुद जाति से ब्राम्हण जाति से हैं पर उनके संस्कार सच्चाई, गरीबों को न्याय देने से जुड़े रहे हैं। उन्होंने कांग्रेस व वामपंथियों की जड़ें खोद कर आम लोगों, दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों को न्याय दिलाया जो बी.जे.पी. कभी ऐसा नहीं करती रही है। वो तो ऊँची जाति वर्ग की प्रतिनिधि मानी जाती है।
माँ दुर्गा, मदर टेरेसा का क्षेत्र
बंगाल माँ दुर्गा, माँ शारदा, मदर टेरेसा, रविन्द्रनाथ टैगोर, नवाब सिराजुद्दोला, नेता सुभाष चन्द्र बोस का इलाका रहा है जहाँ झूठ, फरेब, जातिवादी नारों से लोगों को गुमराह करना आसान नहीं है। भारत देश में जहाँ भी कला संस्कृति, सूफी संतों की विचारधारा बहती है उसे बंगाल के व यू.पी., बनारस से सूफी संतों को ही माना जाता है जहाँ के राजा राममोहन राय थे। यू.पी. के संत कबीर, तुलसी रहे थे जिन्होंने मानवता की सिर्फ मानवता की बात कीं वहीं दिल्ली से आकर दो गुजरातियों ने यहाँ की संस्कृति को भंग कर गुंडागर्दी से सत्ता छीनना चाहा था जिसे दिल्ली के बाद बंगाल की जनता ने बुरी तरह हराकर भगा दिया।
भारत में यूँ तो लोकतंत्र पर काफी गहरे दाग कांग्रेस ने ऐमरजेन्सी के तौर पर लगाये थे पर तमाम तरह से सियासत में बेमानी व ऊँची जातिवालों को लाभ पहुंचाया था। उस पर सबसे पहला ब्रेक बंगाल में 1980-90 के दशक में ममता ने ही लगाने का साहस किया था। वो न राजीव गांधी से डरीं न सोनिया व उनके चमचों से, न सी.पी.एम. के ज्योति बसु, विमान बसु आदि से डरीं। उनमें प्रारम्भ से ही निडरता रही थी। उन्हें घर चलाने के लिये परिवार को पालने के लिये दूध तक बेचना पड़ा था। उन्होंने गुजरात के मशहूर चाय वाले व सर्वोच्च न्यायालय से हत्या के मामले में तड़ी पार आज के केन्द्रीय गृहमंत्री को व उनकी पूरी गैंग को जनता के समर्थन से भगा दिया।
बंगाल देश का पहला ऐसा सूबा है जहाँ महिलाओं के प्रति सबसे ज्यादा सम्मान रहा है। देवी दुर्गा माँ, शारदा माँ से लेकर मदर टेरेसा यहाँ नायक रही हैं। राजा राममोहन राय ने महिलाओं पर ब्राम्हणों के अत्याचारों, सती प्रथा के खिलाफ बड़ा जन आंदोलन छेड़ा था जो देश में कहीं और नहीं हो पाया था। यहाँ का 30 वर्षीय युवा नवाब सिराजुद्दोला अंग्रेजों से लड़कर शहीद हुआ था अपनी जनता के लिये। उसे संघ परिवार वाले भुलाते रहे पर बंगाल की मुर्शीदाबाद की जनता खुद जानती है। बंगाल चुनावों में कांग्रेस व लेट का सफाया हो जाना भी एक बड़ी घटना रही है।

फिल्मी दुनिया में भी बंगाल अभिनेत्रियाँ हावी

बंगाल में आम बोलचाल की भाषा व साहित्य की भाषा एक ही है जो उत्तर भारत में नहीं है। बंगाल की महिलाओं की झांकी हम 60-70 दशक की फिल्मी दुनिया में शर्मिला टैगोर से लेकर नूतन, मीना कुमारी के तौर पर देख सकते हैं। मीना को गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर के छोटे भाई की बेटी माना जाता रहा है। बंगाल की महिलाओं पर तो काफी कुछ लिखा गया है। उनमें निडरता, न्यायप्रियता, सादगी कूट-कूटकर भरी है। साहित्यकार, पेंटर, ट्रेड यूनियन नेता रही ममता बनर्जी में वो सभी खूबियाँ हैं जो एक दौर में रजिया सुल्तान से लेकर झांसी वानी रानी तक से उनकी तुलना करना भी गलत नहीं होगा। ममता ने घमंडी शासकों झूठे, फरेबियों को करारा जवाब देकर भारत की महिलाओं की बंगाल की इज्जत बढ़ाई।

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