देश के बाहर और भीतर फैला है जासूसी का जाल
-राकेश अचल-
-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-
एक रिपोर्ट के मुताबिक, पेगासस आपको एन्क्रिप्टेड ऑडियो स्ट्रीम सुनने और एन्क्रिप्टेड मैसेज को पढ़ने की अनुमति देता है। यानी हैकर के पास आपके फोन की लगभग सभी फीचर तक पहुंच होती है। जब से इस जासूसी का पता चला है तब से ही लोग यह चिंता कर सकते हैं कि अब मोबाईल फोन और इंटरनेट का इस्तेमाल किया जाये या इसका परित्याग हो?
दुनिया में जहां भी सत्ताधीश अपने आपको असुरक्षित पाते हैं, अपने बचाव के लिए प्रतिपक्ष के पीछे अपने जासूस छोड़ देते हैं। प्राचीनकाल में जासूसी बाकायदा एक विधा थी लेकिन कलियुग के इस कालखंड में जासूसी विज्ञान है। जासूसी के लिए बाकायदा ‘सॉफ्टवेयर’ हैं। खरीदिये और जासूसी कराइये। जासूसी एक बार फिर से सुखिर्यों में है क्योंकि देश की सबसे मजबूत सरकार पर सत्ता प्रतिष्ठान के लिए जासूसी करने वाले एक इजराइली ‘सॉफ्टवेयर’ के इस्तेमाल करने का आरोप लगाया गया है।
भारत में पेगासस स्पाईवेयर एक बार फिर चर्चा में हैं। भारत में इसके जरिए कई पत्रकारों और चर्चित हस्तियों के फोन की जासूसी करने का दावा किया जा रहा है। पेगासस को इजरायल की साइबर सुरक्षा कंपनी एनएसओ ने तैयार किया है। बांग्लादेश समेत कई देशों ने पेगासस स्पाईवेयर $खरीदा है। इसे लेकर पहले भी विवाद हुए हैं। मेक्सिको से लेकर सऊदी अरब की सरकारों पर तक इसके इस्तेमाल को लेकर सवाल उठाए जा चुके हैं। व्हाट्सऐप के स्वामित्व वाली कंपनी फेसबुक समेत कई दूसरी कंपनियों ने इस पर मुकदमे किए हैं। भारत सरकार ने सीधे इस तकनीक को खरीदा या किसी और के जरिये हासिल किया, इसका कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है लेकिन कुछ तो है जो चिंगारी भड़की है।
कायदे से सरकारें इस तरह की तकनीक का इस्तेमाल आतंकवाद और अन्य अमानवीय अपराधों के खिलाफ सूचनाएं हासिल करने के लिए करती हैं किन्तु जहां सरकारें अपने आपको असुरक्षित महसूस करती हैं वहां पत्रकारों, लेखकों, बुद्धिजीवियों के साथ ही अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ भी कर लेती है। भारत में भी यह सब परदे के पीछे हो रहा है। ये सब आज से नहीं भारत की आजादी के बाद से ही होता आया है।
पिछले सात साल से देश की मौजूदा सरकार जिस तरह से नाकामियों और लोकनिंदा का शिकार बनी है, उससे इस आशंका को बल मिलता है कि सरकार पर लगाए जा रहे जासूसी के आरोपों में कुछ न कुछ सच्चाई तो है। मुश्किल यह है कि इस समय इस तरह के मामलों की जांच करने वाली तमाम एजेंसियां दबाव में हैं, सुप्रीम कोर्ट को छोड़कर। अभी मामला कोर्ट की परिधि में नहीं है।
जहां तक याद पड़ता है कि आजाद भारत में जासूसी का श्रीगणेश फोन टेपिंग के रूप में हुआ था। भारत में फोन टेपिंग की शुरूआत पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के जमाने में ही हो गई थी। उस समय यह आरोप खुद संचार मंत्री रफी अहमद किदवई ने लगाए थे। उन्होंने यह आरोप तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल पर लगाया था, जिसे उन्होंने तूल नहीं दिया। नेहरू सरकार के ही एक और मंत्री टीटी कृष्णामाचारी ने 1962 में फोन टेप होने का आरोप लगाया था। यहां तक कि तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल के एस थिमाया ने 1959 में अपने और आर्मी ऑफिस के फोन टेप होने का आरोप लगाया था।
अपने जमाने की सबसे धाकड़ प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी की सरकार पर भी अपने विरोधियों की जासूसी करने के आरोप लगाए गए। माना तो यह भी जाता है कि जासूसी के आधार पर ही देश में पहली बार आपातकाल की घोषणा की गई। जासूसी के आरोप की वजह से देश के युवा तुर्क चंद्रशेखर की सरकार पहले चार महीने में ही गिर गई थी। चन्द्रशेखर सरकार पर पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की जासूसी कराने के आरोप लगे थे।
संयोग से मोदी सरकार पर जिन 40 पत्रकारों की जासूसी करने के गंभीर आरोप लगे हैं उसमें बड़े और नामचीन पत्रकार ही शामिल होंगे। इस सूची में हिंदुस्तान टाइम्स, इंडिया टुडे, नेटवर्क 18, द हिंदू और इंडियन एक्सप्रेस के बड़े पत्रकार शामिल हैं। इनमें हिंदुस्तान टाइम्स के शिशिर गुप्ता, द वायर के संस्थापक सम्पादक सिद्धार्थ वरदराजन और एमके वेणु, द वायर के लिए लगातार लिखने वालीं रोहिणी सिंह का नाम है। लिस्ट में मैक्सिको के भी एक पत्रकार का नाम है जिनकी पिछले दिनों हत्या हो गई।
चूंकि हमें अपनी सरकार पर भरोसा करना है इसलिए यह मानकर चला जाये कि सरकार जो कह रही है वह सच ही होगा। हमारी सरकार ने जासूसी के तमाम आरोपों का प्रतिवाद करते हुए कहा है कि ‘‘सरकारी निगरानी के आरोपों का कोई ठोस आधार नहीं है।’’ भारत सरकार ने अपने बयान में कहा, ‘‘भारत एक मजबूत लोकतंत्र है, जो अपने सभी नागरिकों की निजता के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। इस प्रतिबद्धता को आगे बढ़ाते हुए इसने पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल, 2019 और आईटी नियम, 2021 को भी पेश किया है, ताकि सभी के निजी डेटा की रक्षा की जा सके और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म यूजर्स को सशक्त बनाया जा सके।’’
पेगासस स्पाइवेयर के जरिये हैकर को स्मार्टफोन के माइक्रोफोन, कैमरा, मैसेज, ई मेल, पासवर्ड, और लोकेशन जैसे डेटा का एक्सेस मिल जाता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, पेगासस आपको एन्क्रिप्टेड ऑडियो स्ट्रीम सुनने और एन्क्रिप्टेड मैसेज को पढ़ने की अनुमति देता है। यानी हैकर के पास आपके फोन की लगभग सभी फीचर तक पहुंच होती है। जब से इस जासूसी का पता चला है तब से ही लोग यह चिंता कर सकते हैं कि अब मोबाईल फोन और इंटरनेट का इस्तेमाल किया जाये या इसका परित्याग हो?
दुनिया में ऐसा कोई देश नहीं है जो जासूसी आधारित सत्ता न चलाता हो। अपनी स्मृति पर जोर डालिए तो याद आ जाएगा कि पिछले साल ही चीन की शेनजेन स्थित सूचना तकनीक की कंपनी ‘जेन्हुआ’ पर लगभग 10 हजार भारतीय नागरिकों पर ‘डिजिटल निगरानी’ का गंभीर आरोप लगा था। इंडियन एक्सप्रेस ने यह दावा किया था कि इस कंपनी के तार चीन की सरकार और खास तौर पर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े हुए हैं। पाकिस्तानी जासूस तो हमारे यहां अक्सर जेबकतरों की तरह पकड़े जाते हैं। जासूसी पाकिस्तान का प्रिय खेल है। भारत में अनेक राज्य सरकारें जासूसी के आरोपों का सामना कर चुकी हैं।
उपलब्ध सूचनाएं बताती हैं कि जासूसी करने, कराने के मामले में भारत नहीं अपितु चीन विश्वगुरु है। चीन अब तक भारत के 5 प्रधानमंत्रियों की जासूसी करा चुका है। चीन यह काम थोक में करता है। चीन पर 10 हजार भारतीयों की जासूसी का आरोप पूर्व में लग ही चुका है। अतीत में झांकिए तो आपको जासूसी के एक से बढ़कर एक रोचक किस्से पढ़ने-सुनने को मिल जायेंगे। पहले इस काम के लिए विषकन्याएं इस्तेमाल की जाती थीं। आज यही काम सॉफ्टवेयर कर रहे हैं। यानि इंसानी काम की जिम्मेदारी तकनीक ने संभाल ली है, लेकिन जैसे कभी न कभी विष कन्याएं पकड़ी जाती थीं, वैसे ही ये तकनीकें भी पकड़ी जाने लगी हैं। तो सावधान रहिये, जासूस आपके आसपास भी हो सकता है?