राजनैतिकशिक्षा

ईश्वर बनना आसान है!

-डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

आंदोलन करना, कराना और करवाना आंदोलनजीवियों के गुणसूत्र की पहचान है। कभी यही आंदोलन देश को आजादी दिलाता है तो कभी सरकार की नजरों में मौका परस्ती का हुड़दंग लगता है। देश के प्रधान ने आंदोलनकारियों पर तंज कसते हुए किसानों को यह बताने का प्रयास किया है कि इस देश में ईश्वर होना किसान होने से ज्यादा आसान है। ठिठुरते गणतंत्र में किसान सबसे ज्यादा गया गुजरा लगता है। चूँकि ये आंदोलनकारी हैं, इसलिए ये देश के दुश्मन हैं। वहीं मंदिर का निर्माण, भूखे-बिलखते जीर्ण कंकाल बन रहे किसान से सबसे ज्यादा जरूरी और वर्तमान समय की सबसे आपातकालीन मांग है। इसीलिए इस देश में ईश्वर होना किसान होने से ज्यादा आसान है। देश की बिकी हुई मीडिया कण-कण में भगवान को तो ढूंढ सकती है लेकिन अन्न के कण-कण में बसे किसान को कतई ढूंढ नहीं सकती। सृष्टि के किसी कोने में यदि सच में भगवान बसता है तो उसे अपने अस्तित्व को लेकर सचेत हो जाना चाहिए और उसे आंदोलन की राह छोड़ खेतों में अनाज उगाना चाहिए। काटना चाहिए। और इस पाप के लिए रोना चाहिए।इस धरती पर सबसे बड़ा पाप किसान करता है। वह जन्म ही क्यों लेता है?उसे कोई हक नहीं कि वह हमारे लिए ठंडी, बारिश. गर्मी में खुद को झोंक कर अन्न उगाएं। हमारी भूख मिटाएं। उसे उसके किए की सजा मिलनी चाहिए। उसे आत्महत्या करने के लिए विवश करना चाहिए। उनकी बेटियों को अनबिहाई घरों में सड़ने के लिए छोड़ देना चाहिए। कर्ज के तले साहूकारों के धूल मिट्टी वाले पर चाटने चाहिए। तिल-तिल कर मरना चाहिए। किसान अपनी हैसियत भूल रहा है। वह किसान था, किसान है और किसान रहेगा। वह परेशान था, परेशान है और परेशान रहेगा। उसे भगवान बनने की हिमाकत नहीं करनी चाहिए। वह देश का राम मंदिर थोड़े ही न है जो उसके जीवन उद्धार के लिए चंदा जमा किया जाएगा। भला किसान भगवान कैसे हो सकते हैं? वे तो आंदोलन कर रहे हैं। आंदोलन करने वाले भगवान कभी नहीं हो सकते। वे क्या समझ कर अपना अधिकार मांग रहे हैं? भूल रहे हैं इस देश में किसान के जान की कीमत कीड़ों-मकौड़ों से भी कम है। यहां किसान जीने के लिए नहीं मरने के लिए पैदा होता है। जब तक जीता है तब तक अपनी उंगलियों पर नीली स्याही लगाए मात्र मतदाता की भूमिका निभाता है। अपने मत के लिए दाता से जीवन भर गिड़गिड़ाता है। कभी सरदार पटेल की मूर्ति तो कभी मंदिर निर्माण की तरह कृपा दृष्टि बरसाने की गुहार लगाता है। भूल जाता है कि उसकी आवाजें हवा में मिलकर शून्य हो जाएंगी और खुद मिट्टी में मिल कर खाक। क्योंकि सत्ता बहरी, गूंगी और अंधी है। उसे और भी बहुत जरूरी काम है। देश निर्माण के लिए मंदिर बनवाने हैं, शहरों के नाम बदलने हैं। सबसे जरूरी एमएलए और एमपी खरीदने के लिए पैसा इकट्ठा करना है। सत्ता परिवर्तन करना है। ताली-थाली पिटवा कर दीप जलाना है। सच है इस देश में ईश्वर होना किसान होने से कई गुना आसान है।

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