राजनैतिकशिक्षा

बंगाली महिला का राजनीतिक संघर्ष

-डा. वरिंदर भाटिया-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

पश्चिम बंगाल के चुनावी नतीजे राजनीतिक दृष्टिकोण से कम या ज्यादा महत्त्वपूर्ण कहे जा सकते है, परंतु यह एक महिला राजनीतिक नेत्री के राजनीतिक संघर्ष की लड़ाई के रूप में लंबे समय तक याद रखे जाएंगे। देश की सबसे ताकतवर पार्टी, सबसे लोकप्रिय नेता और भारी प्रचार मशीनरी के सामने एक साधारण सी साड़ी पहनने वाली साधारण शक्ल सूरत की एक महिला ने अपने जिद्दी स्वभाव, लड़ाका छवि और कभी न हार मानने वाली पहचान की बदौलत बंगाली जनमानस में ऐसी जगह बनाने में सफल हुईं कि लगातार तीसरी बार पश्चिम बंगाल की जनता का प्यार उसके लिए उमड़ पड़ा। जिस लड़ाई में सभी संगी साथी उनको छोड़कर चले गए, जिन दोस्तों के सहारे उन्होंने ढाई दशक से कब्जा जमाए राजनीतिकों से बंगाल को छीन लिया था, इस बार उनके साथ वे लोग नहीं थे। बंगाल की राजनीति में नितांत अकेली पड़ चुकी इस महिला ने समय रहते आपदा को अवसर में बदल लिया। अपने इस एकाकीपन में वह अपने प्रदेश की जनता से मानो यही कह रही थीं कि जब कोई न दे साथ तो एकला चलो रे। इस अकेली पड़ चुकी योद्धा ने ऐसी राह पकड़ी कि पीछे कारवां बनता गया।

हम ममता बनर्जी की बात कर रहे हैं जिनको दीदी के नाम से भी जाना जाता है। वह पश्चिम बंगाल की पहली महिला मुख्यमंत्री हैं। ममता बनर्जी का जन्म कोलकाता में एक बंगाली हिंदू परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता प्रोमिलेश्वर बनर्जी और गायत्री देवी थे। बनर्जी के पिता, प्रोमिलेश्वर की चिकित्सा के अभाव में मृत्यु हो गई, जब वह 17 वर्ष के थे। 1970 में, ममता बैनर्जी ने देशबंधु शिशुपाल से उच्च माध्यमिक बोर्ड की परीक्षा पूरी की। उन्होंने जोगमाया देवी कॉलेज से इतिहास में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। बाद में उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से इस्लामी इतिहास में अपनी मास्टर डिग्री हासिल की। इसके बाद श्री शिक्षाशयन कॉलेज से शिक्षा की डिग्री और जोगेश चंद्र चैधरी लॉ कॉलेज, कोलकाता से कानून की डिग्री प्राप्त की। उन्हें कलिंग इंस्टीट्यूट ऑफ इंडस्ट्रियल टेक्नोलॉजी, भुवनेश्वर से डॉक्टरेट की मानद उपाधि भी मिली। उन्हें कलकत्ता विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टरेट ऑफ लिटरेचर की डिग्री से भी सम्मानित किया गया था। ममता बनर्जी राजनीति में तब शामिल हो गईं जब वह केवल 15 वर्ष की थीं। जोगमाया देवी कॉलेज में अध्ययन के दौरान उन्होंने कांग्रेस (आई) पार्टी की छात्र शाखा, छत्र परिषद यूनियन्स की स्थापना की, जिसने समाजवादी एकता केंद्र से संबद्ध अखिल भारतीय लोकतांत्रिक छात्र संगठन को हराया। वह पश्चिम बंगाल में कांग्रेस (आई) पार्टी में, पार्टी के भीतर और अन्य स्थानीय राजनीतिक संगठनों में विभिन्न पदों पर रहीं। कैसे ममता ने बंगाली मानुष को यह संदेश देने में सफल हुईं कि वह अकेली योद्धा हैं जो मां, माटी, मानुष की लड़ाई लड़ रही हैं। खुद को बंगाली प्राइड के रूप में स्थापित किया। चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने एक भाषण में कहा कि ‘मैं अपने एक पैर पर खड़ी हो कर बंगाल जीतूंगी और भविष्य में मैं अपने दोनों पैरों पर खड़ी होकर दिल्ली में जीत हासिल करूंगी।’ इसी तरह उन्होंने प्रचार के दौरान एक बार कहा कि पश्चिम बंगाल 2024 के लोकसभा इलेक्शन में वे प्रधानमंत्री के खिलाफ वाराणसी लोकसभा से चुनाव लड़ेंगी। इस तरह के कूटनीतिक भाषण देकर बंगाली मतदाताओं में अपना कद प्रधानमंत्री के बराबर करने में वे सफल रहीं। भारतीय राजनीति में ऐसा कई बार होता रहा है। इसके पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमत्री स्वर्गीय जयललिता, बिहार के मुख्यमत्री नीतीश कुमार जैसे लोग भी खुद को किसी न किसी बहाने प्रधानमंत्री बनने की उम्मीद बताकर अपने समर्थकों के बीच अपनी छवि चमकाने की कोशिश करते रहे हैं।

यही ममता बनर्जी ने भी किया। इसके पहले भी उन्होंने खुद के नेतृत्व में राष्ट्रीय राजनीति में तीसरा मोर्चा बनाने की कोशिश की थी। दरअसल बंगाली समुदाय के पास हमेशा कोई न कोई अपना हीरो (आइडियल) रहा है। मशहूर क्रिकेटर सौरव गांगुली और मशहूर फिल्म एक्टर मिथुन चक्रवर्ती इस समय बीजेपी के साथ थे। वर्तमान को छोड़ दिया जाए तो हर दौर में आम बंगाली जनमानस के साथ कोई न कोई लिविंग लीजेंड रहा है। ममता बनर्जी ने बड़ी चतुराई से बंगाली जन मन के बीच खुद को लिविंग लीजेंड के रूप में खड़ा कर लिया। यही छवि उनको लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री पद का ताज पहना रही है। हम याद करें इस बरस 13 अप्रैल का दिन, पार्क स्ट्रीट के मेयो रोड पर प्रसिद्ध गांधी प्रतिमा के नीचे एक बहुत लगातार बोलने वाली महिला अपने मुंह सिलकर चुपचाप बैठकर पेंटिंग बना रही है। उसके मौन में गुस्सा, डर और कसमसाहट छुपी हुई थी। थोड़ी ही दूरी पर तृणमूल कांग्रेस के बहुत से नेता भी डेरा डाले हुए थे, पर वह उनसे दूरी बनाकर एकदम अकेले बैठी थीं। दरअसल मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की कथित भड़काऊ टिप्पणी करने के आरोप में चुनाव आयोग ने 24 घंटे के लिए चुनाव प्रचार पर रोक लगा दी थी। ममता बनर्जी ने आरोप लगाया था ऐसे ही भाषण करने पर दूसरे नेताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती, जबकि टीएमसी नेताओं पर चुनाव आयोग तुरंत एक्शन ले लेता है। बताया जाता है कि गांधी प्रतिमा के नीचे धरना देना ममता बनर्जी की एक सोची-समझी रणनीति थी। ममता बनर्जी यह संदेश देना चाहती थीं कैसे चुनाव आयोग, सीआरपीएफ, सीबीआई (कोल घोटाले में अभिषेक बनर्जी से पूछताछ) और बीजेपी के भारी-भरकम तंत्र के सामने वे अकेली पड़ चुकी हैं, फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी है। यह धरना उनके समर्थकों के बीच उनके लिए एक सहानुभूति पैदा कर गया। इस दौरान एक बंगाली प्राइड जया बच्चन (भादुड़ी) का उनको खुल कर स्पोर्ट करना भी काम आ गया। समाजवादी पार्टी की राज्यसभा सदस्य और बॉलीवुड एक्ट्रेस ने बंगाल पहुंचकर कहा कि अनेक अत्याचारों के खिलाफ लड़ रही अकेली महिला के लिए मेरे मन में अत्यंत सम्मान है।

बंगाल की जनता वामपंथ की सरकार से तो मुक्त हो गई, पर उसके चरित्र में अब भी वामपंथ रचा बसा हुआ है। तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी ने यह साबित करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ा कि विरोधी पार्टी ऊंच नीच और सांप्रदायिकता के आधार पर चुनाव लड़ रही है। ममता बनर्जी ने यह साबित किया कि विरोधी पार्टी महिला विरोधी भी है। शीर्ष नेता के एक भाषण में दीदी ओ दीदी कहने को जिस तरह टीएमसी नेताओं ने लपक लिया और उसे मुद्दा बनाया, वह बीजेपी के लिए भारी पड़ गया। यह सर्वविदित है कि बंगाल में महिला मतदाता अन्य राज्यों के मुकाबले में अपने वोट का इस्तेमाल अपने विवेक से करती रही हैं। करीब 10 करोड़ मतदाताओं में आधी महिला मतदाताओं की संख्या है। इसके साथ ही महिला मतदाताओं का वोटिंग परसेंटेज भी पुरुष मतदाताओं की तुलना में बहुत ज्यादा है। टीएमसी पहले से महिला वोटरों को लुभाने की तैयारी भी कर रही थी। करीब 12 हजार करोड़ रुपए की महिला कल्याणकारी योजनाएं बनाकर ममता बनर्जी बंगाली महिलाओं की नजर में एक योद्धा बन कर उभरी हैं। इसके साथ ही वह अनेक राज्यों में महिलाओं पर होने वाले अत्याचार को भी मुद्दा बनाने में सफल रहीं। यहां पर हमारा विचार ममता की राजनीतिक सफलता को महिमामंडित करना नहीं बल्कि एक महिला की तमाम मुश्किलों में प्रबल संघर्ष शक्ति को सामने रखना है। सुखद है कि लोकतंत्र के आदेश को स्वीकार करते हुए पांच राज्यों के चुनावी नतीजे आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शालीनता से सभी राज्यों की जनता को धन्यवाद दिया है।

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