राजनैतिकशिक्षा

हरीश रावत का बेटा नही कांग्रेस कार्यकर्ता है मैदान में!

-डॉ श्रीगोपाल नारसन-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

क्या चिकित्सक के बेटे को चिकित्सक, इंजीनियर के बेटे को इंजीनियर, वकील के बेटे को वकील, व्यापारी के बेटे को व्यापारी और किसान के बेटे को किसान बनने का हक नही है, यदि है तो फिर राजनेता का बेटा राजनेता क्यो नही बन सकता?परिवारवाद के इस मिथक को तोड़कर स्वयं भाजपा ने कम से कम 24 टिकट भाजपा नेताओं के परिजनों को दिए है, साथ ही 15 टिकट भाजपा नेताओं के निकट रिश्तेदारों को मिले है, ऐसे में सिर्फ कांग्रेस पर ही परिवार वाद का आरोप लगाना गलत होगा। वही हरिद्वार में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के जिस बेटे वीरेंद्र रावत को कांग्रेस से लोकसभा क्षेत्र हरिद्वार का टिकट मिला है, वह पिछले 25 वर्षों से कांग्रेस की सक्रिय राजनीति में है और पिछले विधानसभा चुनाव में उसको खानपुर से टिकट नही मिल पाया था। वीरेंद्र रावत छात्र संघ अध्यक्ष समेत विभिन्न पदों पर रहते हुए प्रदेश कांग्रेस के मौजूदा उपाध्यक्ष भी है। इसलिए उन्हें टिकट मिलना एक कार्यकर्ता को टिकट मिलना है, न कि पूर्व मुख्यमंत्री के पुत्र को टिकट मिलना माना जाएगा, जैसे भाजपा में उत्तर प्रदेश के समय मंत्री रहे डॉ पृथ्वी सिंह विकसित की बेटी डॉ कल्पना सैनी ने राजनीति में पदार्पण कर भाजपा जिलाध्यक्ष से लेकर राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के दायित्व को निभाते हुए राज्य सभा का टिकट प्राप्त कर सांसद बनने तक का सफ़र तय किया, माना वे डॉ विकसित की बेटी है, लेकिन राजनीतिक मुकाम उन्होंने खुद के दम पर हासिल किया इसलिए यह भी परिवारवाद नही है। वीरेंद्र रावत भी परिवार वाद की परिभाषा में इसी कारण नही आते है क्योंकि वह पहले से ही सक्रीय राजनीति में है। इस सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार वीरेंद्र रावत का मुकाबला भाजपा के पूर्व सीएम त्रिवेन्द्र सिंह रावत के साथ हो रहा हैं। वीरेंद्र रावत को जिताने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ते हुए, हरीश रावत दोपहिया वाहनों के काफिले में बाइक पर बैठकर रोड शो, डोर-टू-डोर अभियान और नुक्कड़ सभाओं का नेतृत्व कर रहे हैं। वीरेंद्र रावत अपने पिता पूर्व सीएम हरीश रावत के साथ लगातार सार्वजनिक बैठक, जनसम्पर्क कर रहे हैं। हरीश रावत ने 2022 के विधानसभा चुनावों में राज्य भर में प्रचार किया था, लेकिन कांग्रेस चुनाव जीतने में कामयाब नहीं हो सकी। पूर्व सीएम के रूप में हरीश रावत राज्य का बड़ा चेहरा हैं। उत्तराखंड कांग्रेस के उपाध्यक्ष सुरेंद्र अग्रवाल ने कहते है, “हरीश जी हरिद्वार में डेरा डाले हुए हैं क्योंकि यह चुनाव कठिन है, क्योंकि यह लड़ाई नरेंद्र मोदी के खिलाफ है…हालांकि उनसे अन्य निर्वाचन क्षेत्रों में भी प्रचार करने की मांग है। वह वहां भी जाएंगे, साथ ही उत्तर प्रदेश भी चुनाव प्रचार के लिए जाएंगे। ”हरीश रावत, जो 76 वर्ष के हैं, ने पहले स्वास्थ्य समस्याओं का हवाला देते हुए खुद चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था। इस हरिद्वार सीट से उनका पुराना नाता है, वे 2009 में इस सीट से सांसद फिर मंत्री बने थे। उनकी पत्नी रेणुका रावत सन 2014 में हरिद्वार से अपना लोकसभा चुनाव हार गईं थी। सन 2022 के विधानसभा चुनावों में, हरीश रावत की बेटी अनुपमा रावत ने हरिद्वार ग्रामीण से सफलतापूर्वक चुनाव लड़ा, और तत्कालीन भाजपा विधायक स्वामी यतीश्वरानंद को हराकर विधायक बनी, हालांकि हरीश रावत खुद लालकुआं से भाजपा के मोहन सिंह बिष्ट से हार गए थे। हरीश रावत अब हरिद्वार के मतदाताओं से अपने बेटे वीरेंद्र रावत पर अपनी तरह ही भरोसा करने के लिए अपील कर रहे हैं, साथ ही यह भी स्पष्ट कर रहे हैं कि वीरेंद्र को केवल इसलिए टिकट मिला क्योंकि वह दशकों से पार्टी कार्यकर्ता रहे हैं। रावत ने कहा कि वीरेंद्र 25 वर्षों से कांग्रेस पार्टी से जुड़े हुए हैं, उन्होंने पहले एनएसयूआई, युवा कांग्रेस, सेवा दल और फिर राज्य कांग्रेस में बतौर उपाध्यक्ष काम किया है। उन्होंने माना, “पार्टी मुझसे चुनाव लड़ने के लिए कह रही थी। मैंने उनसे कहा कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है और मैं इतना पैदल नहीं चल सकता।
वीरेंद्र रावत का मुकाबला भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत से है, बसपा उम्मीदवार से कांग्रेस के मुस्लिम और दलित वोटों में और कटौती की उम्मीद इसलिए की जा रही है, क्योंकि हाल ही में बसपा के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव एवं पूर्व राज्य सभा सांसद इसम सिंह, शिव सेना के उदयराज कांग्रेस में शामिल हो चुके है। हरीश रावत ने कहा, “मैं आपको विश्वास दिलाता हूं, वीरेंद्र रावत अगर मुझसे इक्कीस नहीं होंगे, तो मुझसे उन्नीस भी नहीं होंगे। आप उनको एक बार अवसर दीजिए। सेवा, समर्पण, विकास में वो आपके बीच में रहेंगे, आपके बीच में काम करेंगे। ”
बसपा ने इस सीट से जमील अहमद को उम्मीदवार बनाया है। 30 प्रतिशत संख्या बल के साथ, मुस्लिम हरिद्वार क्षेत्र के मतदाताओं के बीच सबसे बड़ा समूह हैं, लेकिन जमील अहमद के बाहरी होने के कारण वे बसपा कार्यकर्ताओ पर अपनी पकड़ नही बना पा रहे है, वही कही भाजपा पुनः सत्ता में आने पर डॉ भीमराव अंबेडकर द्वारा बनाया गया संविधान न बदल दे इस डर से क्षेत्र का 20 प्रतिशत दलित का झुकाव कांग्रेस की तरफ हो रहा है। जिससे स्पष्ट है, उत्तराखंड की हरिद्वार लोकसभा सीट पर 19 अप्रैल को होने वाले मतदान में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर है। उत्तराखंड के पूर्व सीएम और भाजपा उम्मीदवार त्रिवेन्द्र सिंह रावत का मुकाबला कांग्रेस के वीरेंद्र रावत से ही है। त्रिवेन्द्र रावत 1979 से 2002 तक आरएसएस के सदस्य थे। वह 2000 में राज्य के गठन के बाद 2002 में पहली विधान सभा में डोईवाला से विधायक चुने गए। उन्होंने 2017 में डोईवाला सीट जीती और उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में नामित किया गया। भाजपा ने 2014 और 2019 में लगातार हरिद्वार लोकसभा सीट कांग्रेस से जीती है, भाजपा टिकट पर डॉ रमेश पोखरियाल ने कांग्रेस की रेणुका रावत और अंबरीश कुमार को हराया था। जबकि कांग्रेस प्रत्याशी वीरेंद्र रावत ने सन 1998 से लगातार उत्तराखंड में कांग्रेस कार्यकर्ता के रूप में काम किया है और 2009 से हरिद्वार में सक्रिय हैं, क्षेत्र के हर गांव में लोगों के साथ खड़े हैं। वह 1996 में दयाल सिंह डिग्री कॉलेज छात्र संघ के अध्यक्ष, दिल्ली एनएसयूआई के महासचिव, उत्तराखंड में युवा कांग्रेस के उपाध्यक्ष और अब उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष हैं, हरीश रावत ने वीरेंद्र के बारे में कहा, वीरेंद्र पुत्र भी हैं और शिष्य भी, लेकिन एक बात मैं पूरे विश्वास के साथ कहना चाहूंगा कि सेवा, समर्पण और विकासोन्मुख सोच के मामले में वह मुझसे भी बेहतर साबित होंगे। सन 2014 और सन 2019 के आम चुनावों में हरिद्वार से बीजेपी के रमेश पोखरियाल निशंक जीते थे जिन्हें इस बार टिकट नहीं दिया गया, जिसका नुकसान भाजपा को हो सकता है। हरिद्वार लोकसभा सीट को लेकर हरीश रावत का कहना है कि हरिद्वार लोकसभा सीट जीतेंगे। हरीश रावत की माने तो जब-जब कम्युनिस्ट पार्टियों ने वैचारिक आधार पर कांग्रेस का साथ दिया है कांग्रेस और आगे बढ़ी है, मैं इनकी वैचारिक क्षमता का कायल हूं और उससे हमको अतिरिक्त ऊर्जा मिलती है, जो जीत का एक बड़ा आधार है।

 

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