पारदर्शिता चुनाव के लिए ईवीएम है सही
-संजय गोस्वामी-
-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-
ईवीएम से चुनाव होता है पारदर्शिता चुनाव लोकतंत्र का एक अहम हिस्सा है और इसके बिना तो लोकतंत्र की परिकल्पना करना भी मुश्किल है। चुनाव के द्वारा जनता (लोग) अपने प्रतिनिधियों को चुनती है। भारत में निर्वाचन आयोग लोक सभा, राज्य सभा, राज्य विधान सभाओं, देश के राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के पदों के लिए निर्वाचनों का संचालन करता है। ऐसे संस्थान या परिषद जो रजिस्टर होता है को चलाने हेतु भी चुनाव का सहारा लेना पड़ता है जो सदस्यों द्वारा आम सभा बुलाकर किया जाता है चुनाव को लोग हमेशा जितने की दृश्टिकोण से ही देखते है जिससे ईमानदार व कभी सच्चे लोग नहीं मिलते हैं तब संस्था लूट का शिकार हो जाती है इसका मुख्य कारण है लोभ लोभ एक ऐसी मनोविकार है जो उसे गड्ढे में धकेल देता है एक साधारण से चुनाव का उदाहरण लेते है मान लें क़ोई चैर्टी कमीशनर से मान्य संस्था है जो किसी संस्था द्वारा फंड मिला है या जो सदस्य होते हैं वो एक अच्छी खासी रकम सदस्यों से मिलता है जब 400सौ होता है तो मनमानी ढंग से ए जी एम बुलाकर 1000रूपये कर देते हैं और जब चुनाव आता है तो सब कुछ नियम की धज्जिया उड़ाते हुए अपना साइड का इलेक्शन ऑफसर बनाते हैं और जब क़ोई उम्मीदवार अस्पताल में भर्ती भी हो जाए तो भी नियम का हवाला देकर बैलेट को बाहर लेकर खुद ही ट्रिक कर बहुत ही चालाकी से ऑनलाइन रिजल्ट शो कर जबरदस्ती जीत दर्ज करते हैं ऐसे में क़ोई विरोध करे तो उसपर मनगढंत आरोप लगाना चालू करते है ऐसे चुनाव अलोकतान्त्रिक और कानून की धज्जियाँ उड़ा देते है और कहते हैं हम तो आप ही के लिए खड़ा थे और फिर अगले चुनाव में भी नजर आते हैं और मनमानी करते हैं क़ोई कुछ बोलता नहीं और खूंटा गाड़ देते हैं इससे परिषद का नाम ख़राब होता है और अच्छे लोग उससे बाहर निकलते हैं और एक छत्र राज करते हैं ऐ मत भूलो कल क्या होगा ऐ हमेशा याद रखो की आपने चुनाव कराने के लिए ना तो आम सभा बुलाया और कौन से अधिकार से चुनाव अधिकारी रिजल्ट मनमानी ढंग से कर सकता है यही है बैलेट पेपर का चुनाव, धांधली और बूथ कैप्चर जो लोकतान्त्रिक नहीं है इवीएम मशीन कभी गलत नहीं होता ना ही क़ोई इसे लूट सकता है और ना ही बैलेट पेपर या मत पत्र बदल सकता है क्योंकि उसमें जीपीएस से लैस होता है और मॉक पोल में इलेक्शन एजेंट की उपस्थिति में 50मौक पोल किए जाते हैं जो वीवीपैट से जो पर्ची आती है उसका मिलान किया जाता है तभी ईवीएम मशीन को सील किया जाता है और उस समय जो फॉर्म सी एजेंट व पोलिंग अफसर को दिया जाता है वही काउंटिंग के समय दिखा दिया जाता है और मतों की गणना की जाती है जो बिलकुल पारदर्शी होता है क्योकि जो आप वोट देते है उस उम्मीदवार की पर्ची वी वीपैड से गिरते हुए दिखता है अतः ईवीएम से चुनाव बिलकुल पारदर्शिता होता है उसपर यदि क़ोई सबाल करे तो जहाँ जीत मिलती वहाँ चुप हो जाते हैं और जहाँ से जनता हार का जनादेश देती है उसी में क्यों खोट निकाल देते हैं आखिर वैलेट पेपर पर धांधली हो और ऐसा ही चुनाव चंडीगढ़ के मेयर के चुनाव में देखा गया और सुप्रीम कोर्ट ने नतीजा पलट दिया ऐ मेयर का चुनाव है इसलिए मायने रखता है लेकिन किसी सोसाइटी या परिषद के चुनाव में धांधली होती है तो लोग इस मुद्दे को डर से ठन्डे बसते में डाल देते हैं और जनादेश का अपमान होता है!