राजनैतिकशिक्षा

घोषणापत्र पर आरोप-प्रत्याराप

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

कांग्रेस ने लोक सभा चुनाव के लिए अपने घोषणापत्र-न्यायपत्र में महिला, युवा, किसान, गरीबों को न्याय की बात करते हुए 25 गारंटियों पर जोर दिया है। कांग्रेस ने 10 अलग-अलग न्याय पर आधारित कुल 344 से ज्यादा वादे किए गए हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने शुक्रवार को पार्टी का घोषणापत्र जारी किया। स्वाभाविक रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस के घोषणापत्र पर पहले ही दिन हमला किया। उन्होने कहा कि कांग्रेस के घोषणापत्र से साबित हो गया है कि कांग्रेस, आज के भारत की आशाओं-आकांक्षाओं से पूरी तरह कट चुकी है। उन्होंने कांग्रेस के घोषणापत्र को उसी सोच का द्योतक बताया जो आजादी के आंदोलन में मुस्लिम लीग की थी, लेकिन कांग्रेस ने इस पर पलटवार करते हुए कहा है कि प्रधानमंत्री अपने इतिहास से परिचित नहीं हैं क्योंकि वह कोई और नहीं, बल्कि जनसंघ के संस्थापक श्यामाप्रसाद मुखर्जी थे, जो 1940 के दशक की शुरुआत में लीग के साथ बंगाल में गठबंधन सरकार का हिस्सा थे। खरगे ने कहा कि कांग्रेस का घोषणापत्र राजनीतिक इतिहास में न्याय के दस्तावेज के रूप में याद किया जाएगा। अलबत्ता, इसमें ओपीएस (ओल्ड पेंशन स्कीम) की बाबत कोई आस्ति नहीं है। घोषणापत्र समिति के अध्यक्ष पी. चिदंबरम के मुताबिक, ओपीएस को लेकर सरकार की समिति की रिपोर्ट का इंतजार है, इसलिए इस मुद्दे को घोषणापत्र में शामिल नहीं किया गया है। बहरहाल, घोषणापत्र, जिसे कांग्रेस ने न्यायपत्र-2024 कहा है, या संकल्पपत्र, जैसा कि भाजपा अपने घोषणापत्र को कहती है, चुनाव में दावेदारी पेश करने वाली हर पार्टी जारी करती है। पहली बार है, जब कांग्रेस ने देश में व्याप्त डर की बात जोर-शोर से कही है। पार्टी ने अपना घोषणापत्र जारी करते समय दो सवालों को जनता की तरफ उछाला है, जिनसे घोषणापत्र हवा-हवाई घोषणाओं को पुलिंदा भर न दिखे। पार्टी ने आमजन से पूछा है, क्या आज आपका जीवन 2014 की तुलना में बेहतर है, और दूसरा सवाल यह कि क्या आपका मन भयमुक्त है। कांग्रेस के घोषणापत्र में किसानों को एमएसपी देने संबंधी वादा भी महत्त्वपूर्ण बिंदु है। यह मुद्दा किसानों के लिए बेहद संवेदनशील रहा है, और वे काफी समय से इसके लिए मांग मुखर करते रहे हैं। बहरहाल, देखा जाना है कि पक्ष-विपक्ष अपने-अपने घोषणापत्रों को कितना साकार कर पाएंगे जो हर बार चुनाव-बाद प्राय: उपेक्षित रह जाते हैं।

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