लोकतंत्र की जननी है भारत
-अनुज आचार्य-
-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-
प्राचीन परंपराओं और ज्ञान की अमूल्य धरोहर समेटे विश्व को ज्ञान, समत्व, ममत्व, त्याग, सहिष्णुता एवं वसुधैव कुटुंबकम का संदेश देने वाला भारत कल अपना 75वां गणतंत्र दिवस मनाने जा रहा है। भला इस तथ्य से कौन इंकार कर सकता है कि युगों युगों से भारत भूमि अपने आंचल में ज्ञान, संस्कार, नैतिकता, नृत्य, संगीत, शिल्पकला, आध्यात्मिकता और अन्य अनेकों संस्कृतिजन्य उपलब्धियों को समेटे हुए है। जब विश्व के अनेक देश गहन अज्ञानता रूपी अंधकार में जी रहे थे तो हमारे यहां वेदों, पुराणों, उपनिषदों और गीता द्वारा सामाजिक सद्भाव एवं मनुष्य के आंतरिक विकास के लिए आध्यात्मिक ज्ञान की अविरल धारा बह रही थी। दूसरों को सम्मान देने एवं विश्वास करने की हमारी सोच के कुछ दुष्परिणाम भी भारतीयों को झेलने पड़े हैं, लेकिन स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद की भयंकर कठिनाइयों से पार पाकर आज भारत अपनी शततम: विकास यात्रा की ओर अग्रसर है तो इसके लिए हमारे पूर्वजों एवं राजनीतिक नेतृत्व की दूरदर्शिता को भी श्रेय जाता है।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कथन महत्वपूर्ण है कि, ‘हमारे और राष्ट्र के सपने अलग नहीं हैं। हमारी नीति और राष्ट्रीय सफलताएं अलग नहीं हैं। राष्ट्र की प्रगति में ही हमारी प्रगति है। हमसे ही राष्ट्र का अस्तित्व है और राष्ट्र से ही हमारा अस्तित्व है।’ इस बार 75वें गणतंत्र दिवस 2024 की थीम है : ‘विकसित भारत’ और ‘भारत लोकतंत्र की मातृका’। इस थीम को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के विचारों के अनुरूप चुना गया है कि ‘भारत वास्तव में लोकतंत्र की जननी है’। बीते आठ दशकों में लोकतांत्रिक, संप्रभु तथा गणतांत्रिक राष्ट्र भारत मजबूत और शक्तिशाली राष्ट्र बनकर उभरा है। आज विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में आर्थिक तौर पर भारत पांचवें स्थान पर है और आने वाले 5-6 वर्षों में अमरीका, चीन के बाद भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति बनने की राह पर अग्रसर है। लेकिन इसके लिए भारतीय अर्थव्यवस्था को औसतन 13 प्रतिशत से अधिक की विकास दर से प्रतिवर्ष वृद्धि दर्ज करनी होगी। 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान अस्तित्व में आया था। उस समय राष्ट्र के समक्ष कई भयंकर चुनौतियां मुंहबाए खड़ी थीं। देश को एकजुट, अखंड बनाए रखने के साथ-साथ भारत में अधोसंरचनाओं का आधारभूत ढांचा विकसित करके विकास के पथ पर ले जाने की चुनौती तो थी ही, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार संबंधी सरोकारों पर भी खरा उतरना था। 1950 में हमारी आर्थिक विकास दर महज 1.9 फीसदी थी, आर्थिक महामंदी और कोरोना महामारी के दौर के बीच में से गुजरने के बाद भी आज हम 7-8 प्रतिशत की विकास दर से आगे बढ़ रहे हैं। 1950 की 18.33 प्रतिशत की साक्षरता दर आज लगभग 80 फीसदी तक पहुंच चुकी है। कृषि आज भी हमारे राष्ट्र की अर्थव्यवस्था की मेरुदंड बनी हुई है। अनाज उत्पादन के मामले में हम लगभग आत्मनिर्भर हो चुके हैं, लेकिन इस निर्भरता का भरोसा जगाने वाले गरीब किसानों के लिए बेहतरीन नीतियों को बनाने की जरूरत है।
राष्ट्र आज आर्थिक रूप से मजबूत तो हो रहा है, लेकिन भौतिकतावाद की आंधी के चलते महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार हमारी दुखती रग बन चुके हैं, इन पर रोक लगना अनिवार्य है। भारत में कई क्षेत्रों में असाधारण प्रगति भी हुई है। स्वच्छ पेयजल, ऊर्जा, रोजगार, अच्छी सडक़ें और रेल पथ के विस्तार जैसे मोर्चों पर हम तीव्र गति से आगे बढ़ रहे हैं। बीते 74 वर्षों में भारत के वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष विज्ञान, सामरिक अनुसंधान, अत्याधुनिक सैनिक उपकरणों, मिसाइलों, तेजस विमानों, सैनिक साजो सामान, कृषि अनुसंधान, वैज्ञानिक खोजों, संचार एवं तकनीक, विदेश व्यापार, परमाणु ऊर्जा तथा परमाणु शक्ति के क्षेत्रों में बेहतरीन काम किया है। हमारी युवा पीढ़ी की अपेक्षाएं एवं आकांक्षाएं भी बढ़ी हैं, उन्हें सही मार्गदर्शन व दिशा दिखाकर उनकी क्षमताओं का समुचित दोहन करने की आवश्यकता है। सेवा क्षेत्र में हमारे युवा नई सोच एवं उच्च शिक्षा से बुलंदियों पर पहुंच रहे हैं। महिला सशक्तिकरण से जुड़ी अनेक योजनाओं पर काम चल रहा है तो वहीं हमारी युवा शिक्षित बेटियां शिक्षा से प्राप्त ताकत के बलबूते पर सफलता की नई-नई गाथाएं लिख रही हैं। कोरोना काल में भारत में विकसित वैक्सीन से न केवल करोड़ों भारतीयों अपितु विश्व भर के करोड़ों नागरिकों के स्वास्थ्य की देखभाल हुई और लोगों की जानें बचीं। विश्व में सस्ती स्वास्थ्य सेवाओं के चलते आज भारत, स्वास्थ्य पर्यटन का पसंदीदा मुल्क बन चुका है। अब मुकम्मल सफलता हासिल करने के लिए हमारे भाग्य विधाताओं को भी महंगाई, भ्रष्टाचार, जातिवाद, संप्रदायवाद, गरीबी, बेरोजगारी से निपटने के अचूक उपायों और विभिन्न विकल्पों के साथ जनता के बीच जाना ही पड़ेगा। विश्व की बहुराष्ट्रीय कंपनियों का नेतृत्व करने वाले भारतीयों के शिक्षण संस्थानों को भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खड़ा करने के लिए उचित निवेश एवं माहौल तैयार करने की जरूरत है।
इस बात की भी जरूरत है कि भारतीय राजनीति को चलाने वालों को अपनी सोच व नीयत को सुधारना एवं बदलना होगा। जो बढ़त आज भारत को वैश्विक मंच पर हासिल है, उसको बरकरार रखने तथा उसमें उत्तरोत्तर प्रगति बनाए रखना महत्वपूर्ण होगा। आईये भारतीय लोकतंत्र के इस महापर्व 75वें गणतंत्र दिवस की पूर्वसंध्या पर हम सभी मिलकर मानवीय स्वतंत्रता, समानता, एकता, भाईचारे, सभी के लिए न्याय तथा अवसर जैसे सिद्धांतों पर चलने की शपथ लें और राष्ट्र की एकता एवं अखंडता को बनाए रखने के लिए तत्पर रहें। इतना ही नहीं, देश की सरहदों की रखवाली और निगरानी करने वाले हमारे वीर सैनिकों को याद करते हुए उन्हें नमन करें और नवीन भारत के निर्माण में अपना भरपूर योगदान दें। आशा की जानी चाहिए कि आने वाले वर्षों में लोकतंत्र की छांव तले प्रत्येक भारतीय का भविष्य उज्ज्वल रहेगा।