राजनैतिकशिक्षा

प्याज पर 40 फीसदी निर्यात शुल्क, किसानों के साथ धोखा

-सनत जैन-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

केंद्र सरकार द्वारा प्याज पर 40 फ़ीसदी निर्यात शुल्क लगाने की घोषणा की है। 31 दिसंबर 2023 तक भारत से प्याज,विदेश में निर्यात होगी, तो उसे पर 40 फ़ीसदी निर्यात शुल्क देना होगा। इससे देश में प्याज की कीमतें कम हो गई हैं। किसानों के साथ यह सरकार की धोखाधड़ी और असंवेदनशीलता ही मानी जाएगी। जब फसल खेत से निकलती है। तब कीमतें बहुत तेजी के साथ गिर जाती हैं। किसानों को अच्छी फसल आने पर उत्पादन लागत के दाम भी नहीं मिल पाते हैं। मंडियों तक फसल को ले जाने के लिए हजारों रुपए भाड़ा देना पड़ता है। भाड़ा भी प्याज की कीमत से ज्यादा होता है। किसानों को जब मंडियों में दाम नहीं मिलता है। तब किसान वहीं फेंक कर वापस आ जाते हैं। बिना बिकी फसल यदि वह अपने घर लायगा तो उसका भाड़ा ही उसकी कीमत से ज्यादा होगा। पिछले एक दशक से किसान लगातार कर्ज में डूबते जा रहे हैं। जब फसल आती है,तब उन्हें दाम नहीं मिलते हैं। सरकार ने फसलों के न्यूनतम दाम तय नहीं किये हैं। समर्थन मूल्य पर सरकार किसानों की फसल नहीं खरीदती है। प्राकृतिक आपदा और 3 से 4 महीने की मेहनत के बाद जब फसल आती है। किसान को उत्पादन लागत नहीं मिलती है। कुछ ही समय के बाद जब मंडियों में आवक कम हो जाती है। तब रेट बढ़ना शुरू होते हैं। तब सरकार इस तरह के प्रतिबंध लगा देती है। जिसके कारण किसानों को भारी नुकसान सहना पड़ता है। फल, सब्जी,अनाज, तिलहन, दलहन सभी में यही हाल है। खाद्य पदार्थों की कीमतों का असर आम आदमी पर पड़ता है। पिछले एक दशक में पेट्रोल और डीजल में सरकार ने भारी टैक्स लगा रखा है। जिसके कारण परिवहन की लागत बढ़ गई है। कृषि उत्पादन की भी लागत तेजी के साथ बढी है। खेत से मंडी तक फसल ले जाने में किसानों को फसल की कीमत से ज्यादा भाड़ा देना पड़ता है। मंडी में माल बेचने के अलावा उसके पास और कोई चारा नहीं होता है। जिस भाव भी माल बिकता है, वह बेचकर घर चला आता है। सरकार समर्थन मूल्य पर कोई खरीदी नहीं करती हैं। सरकार कृषि उत्पाद के लागत मूल्य भी तय नहीं करती है। किसानों को सरकार का कोई भी संरक्षण प्राप्त नहीं है। आंधी, तूफान, बारिश इत्यादि में फसल नष्ट होती है। नकली दवाई, नकली कीटनाशक, नकली बीज,महंगी खाद की विभिन्न समस्याओं के कारण, कृषि उत्पादन की लागत लगातार बढ़ती जा रही है। किसानों की आय कम होती जा रही है। जिसके कारण पिछले एक दशक में किसान बड़ी संख्या में कर्जदार होकर आत्महत्या तक करने के लिए विवश हो रहे हैं। टमाटर हो या प्याज, हर बार सुनने में आता है कि सही दाम नहीं मिलने के कारण किसानों को बहुत कम कीमत पर फ़सल बेचना पड़ती है। उपभोक्ताओं को साग, सब्जी, फल, फूल इत्यादि सब महंगे दामों में खरीदना पडते हैं। बिचौलिए इसका पूरा लाभ उठाते हैं। किसान और उपभोक्ता दोनों ही ठगे जाते हैं। उपभोक्ताओं को सस्ती सामग्री उपलब्ध कराने के लिए किसानों को टारगेट करती है। जब भी फसल के दाम थोड़े बेहतर होते हैं। किसानों को कुछ फायदा हो सकता है। उस समय सरकार कीमतों को नियंत्रित करने के नाम पर विदेशों से खाद्यान्न एवं अन्य खाद्य सामग्री आयात करके किसानों आर्थिक नुकसान पहुंचाती है। दलहन और तिलहन का लगातार आयात किया जा रहा है। भारत के किसानों को उचित दाम नहीं दिए जा रहे हैं। वहीं विदेशों से महंगे दामों में आयात करके भारी भ्रष्टाचार किया जा रहा है। हाल ही में अफगानिस्तान से लहसुन का आयात किया गया। जैसे ही गेहूं के दाम थोड़े से बढ़ने लगे। सरकार ने निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया। चावल के दाम थोड़ा ठीक-ठाक हुए,और सरकार ने निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया। जिसके कारण कीमतें बाजार में गिर गई। गेहूं की कीमतों को कम करने के लिए रूस से 90 लाख टन गेहूं आयात करने की बात की जा रही है। इससे भारत का किसान अपने ही देश में अपनों द्वारा ठगा जा रहा है। किसानों का आक्रोश, सरकार की नीतियों के खिलाफ बढ़ने लगा है। पिछले वर्षों में पेट्रोल डीजल की कीमतें बढ़ने और जीएसटी के कारण, खेती किसानी की उत्पादन लागत बहुत तेजी के साथ बढ़ी है। वहीं किसानों को उत्पादन लागत भी नहीं मिल पा रही है। सरकार उत्पादन लागत का दोगुना लाभ देने का वायदा करती है। लेकिन वास्तविकता यह है, कि किसानों को उत्पादन लागत भी नहीं निकलती है। किसान कर्ज के बोझ से दबते ही चले जा रहे हैं। इससे किसानों में आक्रोश फैल रहा है। सरकार को समय रहते ध्यान देने की जरूरत है। सरकार, फल-फूल, सब्जी, अनाज, तिलहन, दलहन इत्यादि की उत्पादन लागत तय करे। उत्पादन लागत में किसानों का लाभ जोड़कर,न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करे। उससे कम कीमत पर खरीद बिक्री ना हो। इसके लिए सरकार को कानून बनाने की जरूरत है। साल भर उपभोक्ताओं को एक निश्चित कीमत में खाद्य सामग्री उपलब्ध हो। इस दिशा में भी सरकार को नीति बनाने की जरूरत है।ताकि उपभोक्ताओं और किसानों दोनों के हितों का संवर्धन हो सके। महंगाई को भी साल भर नियंत्रित रखा जा सके।

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