राजनैतिकशिक्षा

राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष का बिखराव कोई नई बात नहीं

-अनिल जैन-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

हाल के इतिहास में सबसे एकतरफा चुनाव 1997 में ग्यारहवां राष्ट्रपति चुनाव हाल के इतिहास का सबसे एकतरफा चुनाव रहा। इस चुनाव में सत्तारूढ़ संयुक्त मोर्चा ने तत्कालीन उप राष्ट्रपति केआर नारायणन को अपना उम्मीदवार बनाया था। उन्हें मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस तथा भाजपा ने भी समर्थन दिया था लेकिन वे निर्विरोध नहीं चुने जा सके, क्योंकि पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतर गए थे। उन्हें शिव सेना ने समर्थन दिया था।

रााष्ट्रपति पद के 16वें चुनाव के लिए मतदान हो गया है। उसके दो दिन बाद यानी 21 जुलाई को नतीजा घोषित हो जाएगा। भाजपा की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू की जीत को लेकर किसी को भी संशय नहीं है, क्योंकि उनकी आदिवासी पृष्ठभूमि को देखते हुए उन्हें भाजपा के घोषित-अघोषित सहयोगी दलों के अलावा कुछ विपक्षी दलों ने भी समर्थन दिया है। उन्हें समर्थन देने वाले कुछ क्षेत्रीय विपक्षी दल ऐसे भी हैं, जिनका शीर्ष नेतृत्व कई मामलों में केंद्रीय एजेंसियों की जांच में फंसा हुए है तो कुछ ने अपनी पार्टी और सरकार को भाजपा के बहुचर्चित ‘ऑपरेशन लोटस’ से बचाने के लिए द्रौपदी मुर्मू को समर्थन दिया।

द्रौपदी मुर्मू को मिले इसी समर्थन को लेकर इस बात का बहुत शोर मचा कि राष्ट्रपति पद के लिए आदिवासी महिला की उम्मीदवारी से विपक्षी दलों की एकता छिन्न-भिन्न हो गई। सरकार के प्रचार तंत्र की भूमिका निभाने वाले टीवी चैनलों पर इस बात को लेकर लंबे-लंबे कार्यक्रम हुए जिसमें अपढ़-कुपढ़ एंकरों ने बताया कि भाजपा के मास्टर स्ट्रोक से विपक्ष किस तरह धराशायी हो गया।

यह सही है कि राष्ट्रपति चुनाव में कुछ विपक्षी दलों ने अलग-अलग कारणों से द्रौपदी मुर्मू को समर्थन दिया है, लेकिन इसमें ऐसी कोई नई बात नहीं है जिस पर हैरान हुआ जाए। अपवाद स्वरूप कुछेक चुनाव को छोड़ कर राष्ट्रपति के हर निर्वाचन में विपक्ष के वोट बंटते रहे हैं। इन चुनावों में उम्मीदवार की सामाजिक अथवा क्षेत्रीय पृष्ठभूमि के आधार पर या अन्य कारणों से पार्टियों ने समर्थन या विरोध का फैसला किया है, जैसे कि अभी शिव सेना, झारखंड मुक्ति मोर्चा, बीजू जनता दल, वाईएसआर कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी आदि ने द्रौपदी मुर्मू को समर्थन दिया है।

राष्ट्रपति पद के लिए पहला चुनाव 1952 में हुआ था। सत्ताधारी कांग्रेस ने डॉ. राजेंद्र प्रसाद को अपना उम्मीदवार बनाया था। हालांकि वे 1950 में संविधान लागू होने के साथ ही राष्ट्रपति बन गए थे। वे संविधान सभा के अध्यक्ष भी रहे थे। उनका कद काफी ऊंचा था, इसलिए विपक्षी दलों ने भी उनके खिलाफ कोई उम्मीदवार खड़ा नहीं किया था। अलबत्ता चार निर्दलीय उम्मीदवार जरूर उनके खिलाफ मैदान में थे, जिनमें केटी शाह सबसे गंभीर उम्मीदवार थे। समाजवादी विचारधारा के शाह उस समय के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री तथा विधिवेत्ता थे और संविधान सभा के सदस्य भी थे। डॉ. राजेंद्र प्रसाद को 5, 07, 400 वोट हासिल कर विजयी हुए थे, जबकि केटी शाह को 92, 827 वोट मिले थे।

राष्ट्रपति पद के लिए 1957 में हुए दूसरे चुनाव में भी कांग्रेस की ओर से राजेंद्र प्रसाद ही उम्मीदवार थे। उस चुनाव में भी न तो विपक्ष ने कोई उम्मीदवार खड़ा किया और न ही निर्दलीय रूप से कोई गंभीर उम्मीदवार मैदान में उतरा, लिहाजा राजेंद्र प्रसाद आसानी से जीत गए। 1957 में राष्ट्रपति पद पर कांग्रेस के उम्मीदवार डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का चुनाव भी एकतरफा रहा क्योंकि उनके खिलाफ भी विपक्ष ने उम्मीदवार नहीं उतारा था। राष्ट्रपति पद के लिए 1967 में हुए चौथे चुनाव में पहली बार कांटे का मुकाबला हुआ। कांग्रेस ने डॉ. जाकिर हुसैन को और उनके खिलाफ विपक्ष ने जस्टिस कोटा सुब्बाराव को अपना उम्मीदवार बनाया। सुब्बाराव सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश पद से इस्तीफा देकर चुनाव मैदान में उतरे थे। राष्ट्रपति पद के लिए यही एकमात्र चुनाव रहा जिसमें समूचा विपक्ष एकजुट रहा। इस चुनाव में डॉ. जाकिर हुसैन को 4,71,244 जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी सुब्बाराव को 3,63,971 वोट मिले थे।

डॉ. जाकिर हुसैन का अपने कार्यकाल के दूसरे ही साल में निधन हो जाने की वजह से 1969 में राष्ट्रपति पद के लिए पांचवां चुनाव हुआ, जिसमें सत्तारूढ़ कांग्रेस के आधिकारिक उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी थे और उनके खिलाफ तत्कालीन उप राष्ट्रपति वीवी गिरि निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरे। उस चुनाव में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपनी पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार का समर्थन न करते हुए परोक्ष रूप से वीवी गिरि का समर्थन किया और सभी सांसदों से अंतरात्मा की आवाज पर वोट देने की अपील की। संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, स्वतंत्र पार्टी और जनसंघ ने नेहरू काल में वित्त मंत्री रहे चिंतामन द्वारिकानाथ देशमुख को अपना उम्मीदवार बनाया। कुछ विपक्षी और क्षेत्रीय पार्टियों ने वीवी गिरि को तो कुछ ने संजीव रेड्डी को समर्थन दिया। कश्मकश भरे चुनाव में वीवी गिरि को 4,20,077 जबकि संजीव रेड्डी को 4,05,427 और देशमुख को 1,12,769 वोट मिले।

1974 में छठे राष्ट्र्रपति के रूप में फखरुद्दीन अली अहमद का चुनाव लगभग एकतरफा रहा। विपक्ष ने उनके खिलाफ रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के नेता त्रिदिब चौधरी को मैदान में उतारा, लेकिन वे कहने भर को ही विपक्ष के उम्मीदवार थे। वामपंथी दलों के अलावा किसी विपक्षी पार्टी का उन्हें पूरा समर्थन नहीं मिला। फखरुद्दीन अली अहमद का निधन भी अपने कार्यकाल के दौरान ही 1977 में हो गया, जिसकी वजह से नए राष्ट्रपति का चुनाव 1977 में ही कराना पड़ा। यह राष्ट्रपति पद के लिए सातवां चुनाव था और केंद्र में सत्ता परिवर्तन हो चुका था। पांच दलों के विलय से बनी जनता पार्टी सत्ता में थी और कांग्रेस विपक्ष में।

जनता पार्टी ने नीलम संजीव रेड्डी को अपना उम्मीदवार बनाया था, जिन्हें कांग्रेस ने भी अपना समर्थन दिया था। यही एकमात्र ऐसा चुनाव रहा जिसमें राष्ट्रपति निर्विरोध चुने गए। 1982 में आठवें राष्ट्रपति के चुनाव के वक्त कांग्रेस की सत्ता में वापसी हो चुकी थी। ज्ञानी जैल सिंह कांग्रेस के उम्मीदवार थे जबकि विपक्ष ने सुप्रीम कोर्ट से इस्तीफा देने वाले जस्टिस एचआर खन्ना को अपना उम्मीदवार बनाया था। इस चुनाव में विपक्षी दल कमोबेश एकजुट रहे लेकिन संसद और विधानसभाओं में उनके कमजोर संख्या बल के चलते जैल सिंह आसानी से जीत गए। 1987 में नौवें राष्ट्र्रपति का चुनाव भी एकतरफा रहा। कांग्रेस के आर.वेंकटरमण 7, 40, 148 वोट हासिल कर विजयी रहे, जबकि उनके खिलाफ संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार जस्टिस वीआर कृष्ण अय्यर को 2, 81, 550 वोट मिले।

1992 दसवें राष्ट्रपति के लिए हुए चुनाव में डॉ. शंकर दयाल शर्मा सत्तापक्ष के उम्मीदवार थे और संयुक्त विपक्ष ने उनके खिलाफ लोकसभा के डिप्टी स्पीकर रहे मेघालय के वरिष्ठ सांसद प्रो. जॉर्ज गिल्बर्ट स्वेल को अपना उम्मीदवार बनाया था। उस चुनाव में भी विपक्ष कमोबेश एकजुट ही रहा लेकिन उसके कमजोर संख्याबल के चलते शंकरदयाल शर्मा आसानी से जीत गए। हाल के इतिहास में सबसे एकतरफा चुनाव 1997 में ग्यारहवां राष्ट्रपति चुनाव हाल के इतिहास का सबसे एकतरफा चुनाव रहा। इस चुनाव में सत्तारूढ़ संयुक्त मोर्चा ने तत्कालीन उप राष्ट्रपति केआर नारायणन को अपना उम्मीदवार बनाया था। उन्हें मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस तथा भाजपा ने भी समर्थन दिया था लेकिन वे निर्विरोध नहीं चुने जा सके, क्योंकि पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतर गए थे। उन्हें शिव सेना ने समर्थन दिया था।

साल 2002 में बारहवें राष्ट्रपति चुनाव के समय कांग्रेस विपक्ष में थी और भाजपा नीत एनडीए की सरकार थी। एनडीए ने एपीजे अब्दुल कलाम का नाम राष्ट्रपति पद के लिए प्रस्तावित किया था। मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दल कलाम के नाम पर सहमत हो गए थे लेकिन वामपंथी दलों ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की सहयोगी रहीं कैप्टन लक्ष्मी सहगल को कलाम के मुकाबले अपना उम्मीदवार बनाया था। यह मुकाबला भी एकतरफा था।

2007 में तेरहवें राष्ट्रपति चुनाव में सत्तारूढ़ कांग्रेस प्रतिभा पाटिल को अपना उम्मीदवार बनाया, जिनके खिलाफ विपक्ष ने तत्कालीन उप राष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत को मैदान में उतारा। शिव सेना उस समय भाजपा की प्रमुख सहयोगी थी लेकिन उसने शेखावत के बजाय प्रतिभा पाटिल का समर्थन किया था। 2012 में चौदहवें राष्ट्रपति के चुनाव में सत्तापक्ष के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी थे। विपक्ष ने उनके खिलाफ पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा को अपना उम्मीदवार बनाया था लेकिन इस बार भी शिव सेना ने बाकी विपक्षी दलों से अलग लाइन लेते हुए मुखर्जी का समर्थन किया। यही नहीं, उस समय एनडीए में शामिल झारखंड मुक्ति मोर्चा ने भी कांग्रेस उम्मीदवार मुखर्जी का समर्थन किया था। 2017 पंद्रहवें राष्ट्रपति समय भाजपा सत्ता में आ चुकी थी और उसने रामनाथ कोविंद को अपना उम्मीदवार बनाया था, जबकि विपक्ष की ओर पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार मैदान में थीं। उन्हें 17 विपक्षी दलों का समर्थन प्राप्त था लेकिन जनता दल (यू) ने विपक्षी खेमे में होते हुए भी भाजपा के उम्मीदवार कोविंद का समर्थन किया था।

इस प्रकार राष्ट्रपति पद के लिए अब तक हुए सभी चुनावों में से कुछ को छोड़ कर ज्यादातर में विपक्ष कभी एकजुट नहीं रहा। इसलिए इस बार भी विपक्ष अगर बंटा हुआ है तो यह कोई अनहोनी घटना नहीं है और इस पर मीडिया का उछलना व शोर मचाना बेमतलब है।

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