राजनैतिकशिक्षा

‘वंदे भारत’ पर करम ‘साधारण ट्रेन्स’ पर सितम?

-निर्मल रानी-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

बहुप्रचारित सेमी तीव्र गामी ट्रेन वंदे भारत लगता है रेल मंत्रालय के लिये सफ़ेद हाथी जैसा साबित हो रहा है। अब तक चलने वाली लगभग सभी क्षेत्रों की सभी वंदे भारत ट्रेन्स को स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झंडी दिखाकर रवाना कर इस ट्रेन के बारे में मीडिया व मंहगे विज्ञापनों के माध्यम से कुछ ऐसा ढिंढोरा पीटा था गोया तीव्रगामी बुलेट ट्रेन ने ही ‘वंदे भारत’ के रूप में अवतार ले लिया है। इस सेमी बुलेट ट्रेन, वंदे भारत को ट्रेन-18 के रूप में विकसित किया गया है। परन्तु अपने परिचालन की शुरुआत से ही ‘वंदे भारत’ को लेकर अनेक नकारात्मक ख़बरें आती रही हैं। यहां तक कि इस तीव्र रेल की प्रसिद्धि दुर्घटनाओं के लिये ज़्यादा है, विशेषताओं के लिये कम। कभी वंदे भारत एक्सप्रेस की गुजरात में उदवाडा और वापी स्टेशनों के बीच पड़ने वाले क्रॉसिंग गेट नंबर 87 के पास दुर्घटना का समाचार मिला तो कभी मुंबई-गांधीनगर वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन के सामने एक गाय की टक्कर हो जाने से ट्रेन का आगे का हिस्सा टूट गया।

इसके बाद 7 अक्टूबर 2022 को वंदे भारत एक्सप्रेस गुजरात के आणंद में गाय से टकरा गई थी। यह हादसा वडोदरा मंडल के आणंद के समीप हुआ था। उस समय रेल प्रशासन ने कहा था रेलवे के ट्रैक पर गाय के झुंड के आ जाने से यह हादसा हुआ। इसके बाद रेलवे बोर्ड ने वंदे भारत एक्सप्रेस के पूरे रूट में कंटीले तार लगाने का निर्देश दिया था ताकि जानवर रेलवे ट्रैक पर नहीं आ पाए। गुजरात में ही 6 अक्टूबर 2022 को मुंबई से अहमदाबाद जा रही वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन की भैंसों के एक झुंड से भीषण टक्कर हो गई थी। यह हादसा वटवा और मणिनगर स्टेशन के बीच हुआ था। भैंसों के झुंड से हुई इस टक्कर में कई भैंसों की मौत तो हुई ही थी, ट्रेन का अगला हिस्सा भी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था। इसके बाद नई दिल्ली से वाराणसी जाने वाली वंदे भारत एक्सप्रेस में गत वर्ष आठ अक्टूबर को अचानक तकनीकी गड़बड़ी आ गयी और ट्रेन के पहिए ही जाम हो गए थे। इस कारण ट्रेन क़रीब पांच घंटे खुर्जा स्टेशन पर रुकी रही।

चूँकि खुर्जा स्टेशन पर उसकी मुरम्मत संभव नहीं थी इसलिये इसके यात्रियों को शताब्दी एक्सप्रेस से उनके गंतव्य तक पहुंचाया गया जिससे यात्रियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। यहाँ तक कि पिछले दिनों दिल्ली से भोपाल जा रही वंदे भारत ट्रेन जोकि रानी कमलापति स्टेशन से हज़रत निज़ामुद्दीन के लिए रवाना हुई थी उसकी सी-14 बोगी में कुरवाई स्टेशन के पास बैट्री से आग लग गई। शुक्र है कि यात्रियों को कोई नुक़सान नहीं पहुंचा। ऐसे और भी कई हादसों से वन्दे भारत दोचार होती रही है। इसके परिचालन के उद्घाटन में प्रधानमंत्री का सीधा दख़ल,इसके उद्घाटनों पर होने वाली बेतहाशा पब्लिसिटी और स्टेशंस की सजावट पर लुटाया जाने वाला जनता का टैक्स का पैसा देखकर ही जब भी यह ट्रेन दुर्घटनाओं या अन्य किसी फ़ाल्ट के चलते ख़बरों की सुर्ख़ियां बनती है तो उस समय सोशल मीडिया पर वंदे भारत ट्रेन की ख़ूब फ़ज़ीहत होती है।

बहरहाल इतनी ढोल पीटकर चलाई जाने वाली यही वन्दे भारत अपने शुरूआती दौर से ही रेल के लिए एक सफ़ेद हाथी साबित हो रही है। इसका अत्याधिक किराया होने व अन्य सुपर फ़ास्ट ट्रेन्स की तुलना में गंतव्य तक पहुँचने के अंतराल में कोई विशेष फ़र्क़ न होने के चलते आम यात्री इसपर यात्रा करना पसंद नहीं कर रहे हैं। विभिन्न क्षेत्रों में चलने वाली वंदेभारत रेल गाड़ियों में 50 प्रतिशत से लेकर 21 प्रतिशत तक ही सवारियां मिल पा रही हैं जिससे रेल विभाग को भारी नुक़सान उठाना पड़ रहा है। इसीलिए यात्रियों को इन ट्रेन्स में यात्रा हेतु आकर्षित करने के लिये रेल मंत्रालय ने वंदे भारत समेत अन्य कई महत्वपूर्ण रेलगाड़ियों का किराया घटाने का फ़ैसला किया है। प्राप्त सूचनाओं के अनुसार रेलवे बोर्ड वन्दे भारत सहित अनेक ट्रेन्स के एसी चेयर कार और एक्ज़ीक्युटिव क्लास के किराए में 25 फीसदी तक की कटौती करने की योजना बना रहा है। लेकिन अतिरिक्त शुल्क जैसे रिज़र्वेशन चार्ज, सुपर फ़ास्ट सरचार्ज, जीएसटी अलग से लगाया जाएगा। हालांकि यह सुविधा केवल उन ट्रेन्स में ही दी जायेंगी, जिन में पिछले 30 दिनों के दौरान केवल 50 फीसदी सीटें ही भर पाई थीं। रेल मंत्रालय के अनुसार पहले से बुक टिकटों पर यात्रियों को किराए का कोई रिफ़ंड नहीं मिलेगा। इसके अलावा हॉलीडे और फ़ेस्टिवल स्पेशल जैसी ट्रेनों में यह योजना लागू होगी।

गोया एक तरफ़ तो सरकार विशिष्ट ट्रेन्स में यात्रियों को चलने के लिये उनकी ‘चिरौरी ‘ कर रही है उन्हें लुभाने के लिये 25 प्रतिशत तक किराया कम कर रही है तो दूसरी तरफ़ यही जनविरोधी सरकार कोरोना काल में पैसेंजर ट्रेन का नाम एक्सप्रेस कर देने के बहाने टिकटों में जो तीन गुना बढ़ोतरी की गयी थी उसे भी नहीं घटा रही। उदाहरण के तौर पर अंबाला शहर से अंबाला छावनी का पैसेंजर ट्रेन का किराया जो मात्र दस रूपये होता था था वह कोरोना के समय से ही तीस रूपये वसूला जा रहा है। क्या सरकार को उन साधारण यात्रियों की जेब की फ़िक्र नहीं जो अपनी रोज़ी रोटी के लिये रोज़ाना इन गाड़ियों से सफ़र करते हैं? इसी तरह कोरोना काल में ही वरिष्ठ नागरिकों को रेल यात्रा में मिलने वाली छूट इसी निर्दयी सरकार ने समाप्त कर दी थी। वह भी आज तक बहाल न हुई। केवल साधारण कोच का नाम सामान्य कोच से बदलकर दीन दयालु कोच रख देने या उसका भगवा रंग करवा देने से यात्रियों को राहत नहीं मिलने वाली। सरकार को तो स्वयं सोचना चाहिये कि अपनी ग़लत नीतियों के चलते देश की जिस जनता को उसने राशन तक का मोहताज बना दिया है, उस पर ट्रेन का तीन गुना अधिक किराया भरते वक़्त क्या गुज़रती होगी? 25 प्रतिशत किराया कम कर वंदे भारत के यात्रियों पर करम और साधारण सवारी ट्रेन्स के यात्रियों से तीन गुना ज़्यादा रक़म वसूल कर उनपर किये जा रहे ‘सरकारी सितम’ से तो यही ज़ाहिर होता है कि वरिष्ठ, साधारण व ग़रीब नागरिकों को राहत देने में सरकार की कोई दिलचस्पी ही नहीं है।

 

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