राजनैतिकशिक्षा

कर्नाटक में कहीं कांग्रेस ना भटक जाये, 2024 की तैयारी से…!

-विजय तिवारी-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

कर्नाटक विधान सभा चुनावों में काँग्रेस की विजय कहें या बीजेपी की पराजय परंतु जिस प्रकार की पैंतरेबाजी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी कर रहे हैं उससे काँग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों को उनकी चालों को समझना होगा, अन्यथा बाद में ईवीएम को और चुनाव आयोग के पक्षपात के किस्से ही सुनने को मिलेंगे। सबसे पहले तो बीजेपी और उनके समर्थक तत्व तथा भक्तगण समाज में काफी जहर घोलने का काम करेंगे। कर्नाटक वक्फ बोर्ड और अन्य मुस्लिम नेताओं ने एक प्रेस कोंन्फ्रेंस में यह कह कर, अल्पसंख्यकों के 80% वोट काँग्रेस के समर्थन में डाले गए हैं। जिसका परिणाम हैं कि जिन स्थानों पर जेडीएस को विगत विधानसभा चुनावों में सफलता मिली थी –उन्हें इस बार वहां पराजय मिली तथा काँग्रेस को सफलता मिली।

इन धार्मिक नेताओं की महत्वाकांक्षा उनकी मांगों से पता चलती हैं। जो उन्होंने एक उप मुख्यमंत्री के पद के साथ गृह और शिक्षा विभाग मुस्लिम को दिये जाने की बात कही हैं। अब यह मांग अन्य पक्षों को बिलकुल भी जायज नहीं लगेगी। कारण यह है कि आबादी के हिसाब से ही मंत्रिमंडल में स्थान दिये जाते हैं। उनमें व्यक्ति और स्थान का महत्व होता हैं। बीजेपी प्रवक्ताओं ने चैनलों की बहस में यहां तक कह दिया कि काँग्रेस को अपनी पाँच प्रतिज्ञाओं के पालन के लिए किसी मुसलमान या अनुसूसूचित जाति को मुख्यमंत्री का पद काँग्रेस को देना चाहिए।

हालांकि खुद बीजेपी जहां पर अपनी सरकार हैं उन स्थानों में ना तो अलपसंख्यकों और ना ही अनुसूचित जाति को तरजीह देती हैं। पर यह दुष्प्रचार काँग्रेस समेत उन दलों को नुकसान कर सकता हैं जो जातिगत वोट बैंकों के आधार पर चुनावी रणनीति नहीं बनाते हैं। पर बीजेपी का हिन्दुत्व का एजेंडा और मुस्लिम विरोध मतदाताओं को दिग्भ्रमित कर सकता हैं। मोदी जी का पराजय को छुपाने का इवैंट मानेजमेंट का दांव जैसा की उम्मीद थी कि कर्नाटक चुनावों में एक ही चेहरा था बीजेपी की ओर से और वह था नरेंद्र मोदीजी का! परंतु जब परिणाम विपरीत आने शुरू हुए तो फोटो पार्टी अध्यक्ष नड़ड़ा जी का लगा दिया गया।

मतलब साफ जीते तो हम और हारे तो तुम जिम्मेदार! अब देश में एक बार मीडिया में विज्ञापनों और कार्यक्रमों के आधार पर मोदी सरकार के 9 साल के फैसलों का गुणगान किया जाएगा। भले ही “मन की बात” से आम जनता की वितृष्णा साबित हो गयी हो परंतु हमारे मुखिया ने उन कथानकों पर एक चित्र प्रदर्शनी लगवा दी। अब जैसे करोड़ों खर्च कर के प्रधानमंत्री अपनी बात देश को जबर्दस्ती सुनने पर मजबूर करते थे, वह काम तो अब बंद हो जाएगा। क्यूंकि मोदी जी और उनके सलहकारों को अपनी सोच और समझ के छेद समझ में आ गए हैं। इसलिए अब सुनने की बजाय दिखने का बंदोबस्त किया हैं।

विश्व गुरु की पदवी के लिए वे भी मुगल बादशाहों की भांति मूर्ति-मंदिर और इमारतें बनवाने का शौक पूरा कर रहे हैं। अब नए संसद भवन की जरूरत केवल इसलिए हुई क्यूंकि सांसदों के बैठने की जगह कम थी! ब्रिटिश संसद में कुरसिया नहीं है सांसदों के लिए बेंच है बैठने के लिए! उनका लोकतंत्र हमसे कई सदियों पुराना हैं। संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के काँग्रेस (सीनेट एवं हाउस ऑफ रिप्रेंटेटिव) भवन में भी कुरसिया ही लगी हैं। शायद भारत पहला राष्ट्र होगा जो 70 साल में ही अपने लिए नया संसद भवन बनया हैं। इसके उद्देश्य में सिर्फ यही कहा गया हैं कि बैठने की जगह कम है और भवन को देखने लायक बनाने के लिए सजावट की गयी है। वैसे संसद में साल भर में कितने घंटे सांसद रहते हैं! इस पर बार – बार बताया जाता हैं कि किस प्रकार सदन का काम काज ठप रहा कभी विपक्ष तो कभी सरकार ही सदन को ठप करती हैं। तब यह आलीशान भवन भुतहा ही लगेगा! इमारतों की शोभा उनमे क्रियाशील लोगों से होती है।

काँग्रेस नेत्रत्व को यह बात गंभीरता से समझना चाहिए कि कर्नाटक की विजय राहुल की पदयात्रा के समय सद्भाव और प्रेम के कारण मिली हैं। जिसके कारण आज ममता बैनर्जी भी काँग्रेस के समर्थन के लिए तैयार हो गयी है। अगर खडगे साहब और राहुल गांधी ने आम आदमी की भावनाओं को उजागर किया, उसे नहीं समझेंगे तब 2024 कोई लोकतांत्रिक परिवर्तन नहीं ला सकेगा। क्यूंकि बीजेपी की धन शक्ति अपार है और उनके सैकड़ों मुख है –जो जरूरी नहीं की बीजेपी की आधिकारिक आवाज हो। परंतु समाज में संदेह और भय का वातावरण बनाने में सक्षम हैं।

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