राजनैतिकशिक्षा

तेल पर बैन

-सिद्धार्थ शंकर-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

यूक्रेन-रूस युद्ध के 13 दिन बीत चुके हैं। इस युद्ध का असर अब पूरी दुनिया पर होने लगा है। तमाम देशों के लगाए ढेरों प्रतिबंध झेलने के बाद भी रूस यूक्रेन पर अपनी कार्रवाई को रोकने का नाम नहीं ले रहा है। जिसके चलते इंटरनेशनल लेवल पर अब नए समीकरण बनने लगे हैं। इस बीच अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने रूस से तेल के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है। मंगलवार को बाइडेन ने इसका ऐलान किया। विशेषज्ञ इस कदम को बहुत बड़ी कार्रवाई मानते हुए कह रहे हैं कि यही एक ऐसा कदम है जो रूस को कदम पीछे हटाने पर मजबूर कर सकता है। हालांकि माना जा रहा है कि इस कार्रवाई का असली असर तभी होगा जबकि यूरोपीय देश भी इसे लागू करें, लेकिन फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि कितने यूरोपीय देश यह कदम उठा पाएंगे। हालांकि ब्रिटेन ने कहा है कि वह साल के आखिर तक रूस से तेल का आयात चरणबद्ध तरीके से बंद कर देगा। अमेरिका के मुकाबले रूस पर यूरोप की ऊर्जा निर्भरता कहीं ज्यादा है। सऊदी अरब के बाद रूस दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल निर्यातक है, लेकिन अमेरिका उससे थोड़ी मात्रा में ही तेल आयात करता है जिसका विकल्प खोजना आसान है लेकिन यूरोप के लिए निकट भविष्य में तो ऐसा करना आसान नहीं दिखता। युद्ध में भी यूक्रेन के रास्ते बड़े स्तर पर हो रही है रूसी गैस आपूर्ति एक और खतरा तेल कीमतों में बेतहाशा वृद्धि भी है। यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से ही दुनियाभर में तेल की कीमतें आसमान छू रही हैं। अगर रूस से आयात बंद कर दिया जाता है तो उपभोक्ताओं, उद्योगों और वित्तीय बाजारों के लिए बड़ी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं, जिसका असर अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। अमेरिकी प्रतिबंध का असर अमेरिका में गैसोलिन के दाम ऐतिहासिक ऊंचाई पर हैं। बाइडेन प्रशासन ने यूक्रेन की मांग मानते हुए रूस से तेल आयात पर प्रतिबंध का ऐलान कर दिया है। हालांकि रूस पर इसका बहुत ज्यादा असर होने की संभावना नहीं है क्योंकि अमेरिका बहुत कम तेल रूस से खरीदता है और प्राकृतिक गैस तो बिल्कुल नहीं लेता है। पिछले साल अमेरिका के कुल पेट्रोलियम आयात का सिर्फ 8 प्रतिशत रूस से आया था। 2021 में इसकी मात्रा 24.50 करोड़ बैरल थी, यानी लगभग 6,72,000 बैरल प्रतिदिन, लेकिन रूस से आयात रोजाना घट रहा है क्योंकि खरीदार भी रूसी तेल को ना कह रहे हैं लेकिन रूस पर फिलहाल इसका ज्यादा असर नहीं होगा क्योंकि इतनी ही मात्रा में वह अपना तेल कहीं और बेच सकता है। चीन और भारत उसके संभावित ग्राहक हैं। पर उसे यह तेल कम कीमत पर बेचना होगा क्योंकि उसके तेल के ग्राहक लगातार घट रहे हैं। इससे वेनेजुएला, ईरान को फायदा होगा। आने वाले समय में अगर रूस को बिल्कुल अलग-थलग कर दिया जाता है तो ईरान और वेनेजुएला जैसे तेल विक्रेता देशों की वापसी अंतरराष्ट्रीय बाजार में हो सकती है, जिनकी अपनी छवि अच्छी नहीं है। इनकी वापसी से तेल की कीमतों को दोबारा स्थिर किया जा सकता है। पिछले हफ्ते ही अमेरिका का एक दल वेनेजुएला में था और प्रतिबंध हटाने पर बातचीत हुई है। पिछले महीने तेल 90 डॉलर प्रति बैरल था जो अब 130 डॉलर तक जा पहुंचा है। आशंका है कि यह 200 डॉलर प्रति बैरल तक भी जा सकता है। रूस पर वैश्विक प्रतिबंधों के चलते महंगे क्रूड की धार में फंसे भारत-अमेरिका सहित कई देशों के सामने बिगड़ती अर्थव्यवस्था को संभालना बड़ी चुनौती बन गया है। हालांकि रूसी कंपनियों ने भारत सहित कई देशों को डिस्काउंट पर क्रूड ऑयल देने की पेशकश की है। 24 फरवरी को जब युद्ध शुरू हुआ था तक कच्चा तेल 100 डॉलर पर कारोबार कर रहा था, जो अब 140 तक पहुंच चुका है। यानी 13 दिनों में ही कच्चा तेल 40 फीसदी महंगा हो गया है। कच्चे तेल के इंटरनेशनल मार्केट में 1 डॉलर प्रति बैरल महंगा होने पर पेट्रोल-डीजल की कीमत में प्रति लीटर 50-60 पैसे तक का इजाफा होता है। अनुमान है कि पेट्रोल-डीजल के दामों में 25 रुपए तक की बढ़ोतरी हो सकती है। वहीं सरकारी तेल कंपनियां जल्द ही इनकी कीमत में 6 रुपए तक की बढ़ोतरी कर सकती हैं। इसके अलावा डॉलर के मुकाबले रुपया सबसे कमजोर हालत में पहुंच गया है। अभी 1 डॉलर की कीमत 77 रुपए के पार निकल गई है। ऐसे में इससे भी महंगाई बढऩे लगी है।

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