राजनैतिकशिक्षा

पुतिन का हासिल-मलबा

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

युद्ध एक मानवीय त्रासदी है। विध्वंस और विनाश के बाद मलबा और राख है। यह रूस के राष्ट्रपति पुतिन भी समझते हैं, लेकिन अहंकार और वर्चस्व की सोच ने उन्हें सनकी बना दिया है, लिहाजा युद्ध के रूप में विनाश लगातार जारी है। युद्ध के 13 दिन बीत चुके हैं। विशेषज्ञ मान रहे हैं कि युद्ध लंबा खिंचेगा, क्योंकि यूक्रेन का प्रतिरोध जबरदस्त रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध की त्रासदी यह है कि 20 लाख से अधिक लोग पलायन कर चुके हैं। अब वे न जानेे कब तक शरणार्थी बने रहेंगे? करीब 1500 घर तबाह हो चुके हैं। हमलावरों ने 200 से अधिक स्कूलों के भवन ध्वस्त कर दिए हैं। जिन अस्पतालों में नई जि़ंदगी के लिए उपचार किए जाते थे और माताएं बच्चों को जन्म देकर सृष्टि को निरंतर रखती थीं, ऐसे 34 अस्पताल खंडहर कर दिए गए हैं।
ऐसे तमाम निर्माण मलबा हो चुके हैं। क्या अब वे कभी आबाद होंगे? टीवी चैनलों पर आप सभी ने एक बच्चे की तस्वीर देखी होगी। वह रोता-बिलखता और बिल्कुल अनाथ किसी सरहद की ओर पैदल ही जा रहा था। एक हाथ में चॉकलेट और दूसरे में पॉलिथीन का बैग….! वह नहीं जानता कि यह विनाश क्यों किया जा रहा है? उसके मां-बाप कहां हैं? वे जि़ंदा भी हैं अथवा कंकाल हो चुके हैं? वह सिर्फ रो सकता था, लिहाजा लगातार बिलख रहा था! यह त्रासदी की सबसे मार्मिक और रूह कंपा देने वाली तस्वीर है, जिसे देखकर दुनिया आहत हुई होगी! क्या इसीलिए युद्ध किए जाते हैं? यदि रूस युद्ध जीत भी जाता है, यूक्रेन पर भी कब्जा हो जाता है, तो रूसी राष्ट्रपति पुतिन मलबे और विध्वंस के मालिक बनकर क्या हासिल करेंगे? यूक्रेन के लगभग सभी बड़े शहर और उनसे सटे गांव बर्बाद हो चुके हैं। करीब 10 अरब डॉलर का नुकसान आंका जा रहा है। पुतिन भी देख और महसूस कर रहे होंगे कि रूसी टैंक, विमान, हेलीकॉप्टर भी तबाह हो रहे हैं और सैनिक भी हताहत हुए हैं। रूसी सेना के दो बड़े कमांडर युद्ध के शिकार हो चुके हैं। वे भी युद्ध की रणनीति तय करने में शामिल थे। कुछ बड़े कारोबारी और कंपनियां रूस छोड़ कर जा चुके हैं। अमरीका ने तेल, गैस और ऊर्जा पर भी कड़ी पाबंदियां थोप दी हैं। अन्य देश भी रूसी आयात के विकल्पों पर विचार कर रहे होंगे। अमरीकी राष्ट्रपति बाइडेन रूस की अर्थव्यवस्था को इतना लचर कर देने पर आमादा हैं कि रूस भविष्य में युद्ध की कल्पना भी न कर सके। आखिर पुतिन का हासिल क्या है? उनके अपने देश में उनका विरोध उग्र होता जा रहा है। डंडों, लाठियों और हिरासत से जन-विरोध कुचले नहीं जा सकते। इसी परिदृश्य में यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की का निराशाजनक बयान सामने आया है-‘यदि दुनिया दूर खड़ी देखती रही, तो हम हार जाएंगे। हम खुद को ही खो देंगे। हम आज़ादी और जीने के अधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं। हमें बचाना भी दुनिया का दायित्व है।
‘हमारी मदद करें।’ यह हतोत्साहित राजनेता का बयान है। आखिर जेलेंस्की कब तक लड़ सकेंगे? उन्होंने देश को ही दांव पर लगा रखा है। आम नागरिक भी युद्ध में शामिल होने को तैयार हैं। उनकी देशभक्ति और जज़्बा कमाल का है। आश्चर्यजनक तो यह है कि प्रधानमंत्री मोदी समेत अमरीका, फ्रांस, टर्की के राष्ट्रपति, जर्मनी के चांसलर और इज़रायल के प्रधानमंत्री आदि राष्ट्रपति पुतिन और जेलेंस्की से बातचीत कर चुके हैं। युद्ध को तुरंत रोकने की सलाह दे चुके हैं। युद्ध के फलितार्थ भी समझा चुके हैं। आपसी संवाद का परामर्श भी दे चुके हैं, लेकिन हालात यथावत हैं। मंगलवार रात्रि को एक तस्वीर सामने आई। पुतिन से बात करने के बाद फ्रेंच राष्ट्रपति मैक्रों माथा पकड़ कर, सिर झुकाए, गहरे तनाव की मुद्रा में दिखाई दिए। क्या यह युद्ध के भीषण होने और विध्वंस के विस्तार की हताशा, चिंता थी? मैक्रों ने जर्मन चांसलर ओलाफ स्कॉल्ज और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से भी फोन पर बात की। फिलहाल पुतिन नहीं पिघल रहे हैं और न ही कोई साझा समाधान सामने है। सीमा-क्षेत्रों में अमरीका, ब्रिटेन और नाटो के लड़ाकू विमान मंडरा रहे हैं। कुछ युद्धाभ्यास सरीखे दृश्य हैं। यूक्रेन बॉर्डर पर 2 लाख से ज्यादा की फौज तैनात है। क्या विश्व-युद्ध की तैयारियां भी की जा रही हैं? पूरी दुनिया के लिए बेहतर तो यह होगा कि यह युद्ध जल्द से जल्द खत्म हो जाए। युद्ध से सभी पक्षों को हानि ही होती है, लाभ किसी को नहीं होता। अतः सभी को इसके लिए काम करना चाहिए।

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