लोकसभा चुनाव में सत्ता पक्ष से मुकाबला आसान नहीं!
-डा. भरत मिश्र प्राची-
-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-
अभी हाल हीं में संपन्न हुये कर्नाटक विधानसभा चुनाव में सत्ता पक्ष भाजपा की करारी हार एवं विपक्ष कांग्रेस की भारी जीत से देश भर में एक बार समस्त विपक्ष का मनोबल अवश्य बढ़ा है जो इस जीत को केवल कांग्रेस की हीं नहीं समस्त विपक्ष की जीत मानकर आगामी लोकसभा चुनाव में वर्तमान सत्ता पक्ष को सत्ता से बाहर कर सत्ता पर आसीन होने की नई रणनीति की ओर अग्रसर होता नजर आ रहा है। पर आगामी लोकसभा चुनाव में वर्तमान विपक्ष के बिखरे स्वरूप जहां आज भी कुछ विपक्षी दलों की कांग्रेस से दूरी बनाकर चलने, एक दूसरे पर प्रहार करने एवं अपने ही बलबुत्ते पर चुनाव लड़ने जैसी सामने आ रही विवेचना से सत्ता पक्ष से मुकाबला कर पाना आसान नहीं।
जहां आज भी सत्ता पक्ष का पलड़ा देश भर में आम जनमानस में नरेन्द्र मोदी के चलते भारी नजर आ रहा है जिसे नकारा नहीं जा सकता। कर्नाटक का चुनाव प्रदेश का चुनाव है जहां स्थानीय राजनीति ज्यादा प्रभावी करती है। पूर्व हुये प्रदेश चुनाव एवं तत्काल लोकसभा चुनाव पर एक नजर डाले जहां स्थानीय राजनीति के चलते प्रदेश की सत्ता बदल तो गई पर कई जगहों पर लोकसभा परिदृश्य में जनमानस का मत प्रदेश चुनाव में आये जनादेश के विपरीत रहा। जिाके चलते केन्द्र की सत्ता में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। इस तरह के परिवेश को विपक्षा को समझना बहुत जरूरी है। कर्नाटक चुनाव में जीत हार का मापदंड लोकसभा चुनाव का स्वरूप उजागर नहीं कर सकता।
लोकसभा चुनाव से पूर्व देश में इसी वर्ष राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलगाना, मिजोरम, में विधानसभा चुनाव होने वाले है। आगमी वर्ष के प्रारम्भ में लोकसभा से पूर्व या लोकसभा के साथ आंध्र प्रदेश, अरूणाचल, सिक्किम और ओड़िसा के भी विधानसभा चुनाव होने वाले है। इन सभी नौ राज्यों की अपनी अलग-अलग राजनीति है जहां स्थानीय मुद्दों के साथ-साथ स्थानीय राजनीति भी चुनाव को प्रभावित करेंगी। जहां सत्ता बदल भी सकती है, नहीं भी बदल सकती पर ये प्रदेश के चुनाव परिणाम लोकसभा चुनाव के लिये मापदंड नहीं बन सकते। अपनी आगामी रणनीति के परिप्रेक्ष्य में विपक्ष को इस तथ्य को समझना होगा। आज यह सत्य है कि लोकसभा चुनाव में सत्ता पक्ष का पलड़ा फिलहाल भारी है। पर केन्द्र की सत्ता पक्ष राजनीतिक दल भाजपा में भी आंतरिक विरोध उभर कर सामने नजर आने लगा है। कुछ तो सत्ता के कारण दबा हुआ है तो कुछ मुखर होने लगा है। भाजपा पर कांग्रेस की तरह परिवारवाद की राजनीति हावी तो नजर नहीं आती पर व्यक्तिवाद हावी जरूर है।
आज भाजपा सत्ता में भले ही है पर इसकी पहचान नरेन्द्र मोदी से है जहां नरेन्द्र मोदी पार्टी से भी आगे बढ़कर नजर आने लगे है। हर-हर मोदी घर -घर मोदी इस तथ्य को चरितार्थ करता है। दूसरे नम्बर पर वर्तमान केन्द्र सरकार के गृहमंत्री अमित शाह है। जो चर्चा में है। भाजपा के वरिष्ठ नेता गौड़ है। लोकसभा चुनाव में भाजपा की यह आंतरिक स्थिति कौन सा रंग बिखेरेगी जहां आंतरिक विरोध मुखर होने लगा है। भाजपा के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा पहले से ही नरेन्द्र मोदी एवं अमित शाह की कार्यशैली के खिलाफ है। शत्रुधन सिन्हा भी विरोध में बोलने लगे है। भाजपा के ही वरिष्ठ नेता जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्य प्रकाश मलिक के स्वर सत्ता पक्ष के विरोध में मुखर होने लगे है। आगामी लोकसभा चुनाव में एक के सामने एक उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारने की सलाह देने लगे है। यदि विपक्ष सत्य प्रकाश मलिक की इस सलाह को लोकसभा चुनाव में अपनाता है तो लोकसभा चुनाव के परिदृश्य बदल सकते है। यदि ऐसा होता है तो सत्य प्रकाश मलिक देश के दूसरे जयप्रकाश नारायण बन सकते है।