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गीता प्रेस: एक सदी लंबी विरासत, विज्ञापन न छापने का संकल्प और दान लेने की मनाही

-कुमार अतुल-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

पुस्तकों की प्रकाशित प्रतियों और बिक्री के लिए गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में स्थान बना चुका गीता प्रेस अब गांधी शांति पुरस्कार मिलने के कारण चर्चा में है। कांग्रेस समेत कई दल और कुछ लोग इस पर आपत्ति जता रहे हैं। गांधी के नाम पर स्थापित यह पुरस्कार इस संस्थान को दिया जाना चाहिए या नहीं, इस पर भिन्न राय हो सकती है। लेकिन गीता प्रेस के महत्व को खारिज नहीं किया जा सकता।

अपनी स्थापना के सौ वर्ष पूरे कर चुके गीता प्रेस की ख्याति रामायण, रामचरितमानस, श्रीमद्भागवत गीता, हनुमान चालीसा, पुराण और बच्चों व महिलाओं को नैतिक-धार्मिक शिक्षा देने वाली पुस्तकों के प्रकाशन की वजह से रही है। इस प्रकाशन संस्थान का आग्रह धर्मग्रंथों के प्रकाशन में शुद्धता लाना रहा है। कोलकाता के सेठ जयदयाल गोयन्दका ने गोरखपुर में गीता प्रेस खोला था। वह गीता के अनन्य प्रेमी थे और इस ग्रंथ को मानवता के समस्त दुखों और विषमताओं के निवारण का यंत्र मानते थे। 10 रुपये प्रति माह किराये के कमरे से शुरू हुआ गीता प्रेस आज दो लाख वर्गफीट में बना विशाल प्रेस है। गीता प्रेस के मुख्य द्वार और लीला चित्र मंदिर का उद्घाटन पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने किया था। इस प्रेस के शताब्दी वर्ष की शुरुआत के अवसर पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद गोरखपुर आए थे।

धर्मग्रंथों के अलावा गीता प्रेस ने आध्यात्मिक पत्रिका कल्याण का भी प्रकाशन शुरू किया। भाई जी के नाम से विख्यात कल्याण के प्रथम संपादक हनुमान प्रसाद पोद्दार ने गीता प्रेस को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। मौजूदा समय में इस पत्रिका की प्रसार संख्या लगभग ढाई लाख है, जो अन्य पत्रिकाओं के लिए ईर्ष्या का विषय बन सकता है। यहां देश के कोने-कोने से लाई गई गीता की करीब साढ़े तीन हजार पांडुलिपियां और 100 टीकाएं हैं। गीता प्रेस की सबसे बड़ी विशेषता यहां से प्रकाशित पुस्तकों का सस्ता होना है। देश में इससे सस्ता धार्मिक साहित्य प्रकाशित करने वाला कोई अन्य संस्थान नहीं है।

गोरखपुर में अगर किसी की रिश्तेदारी हुआ करती थी, तो वह अपने मेहमानों को घुमाने के लिए जिन दो स्थानों पर ले जाता था, वे गोरखनाथ मंदिर और गीता प्रेस थे। किसी जमाने में गीता प्रेस की दीवार से सटा माया चित्र मंदिर हुआ करता था। गीता प्रेस जहां सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार में जुटा रहता, वहीं माया चित्र मंदिर शहर का एकमात्र सिनेमा हाल था, जहां हॉलीवुड की फिल्में लगा करती थीं। अब माया चित्र मंदिर अतीत बन चुका है। वहां अब शॉपिंग कॉम्प्लेक्स बन गया है। गीता प्रेस में एक बड़ा सभागार भी है। यहां कभी चोटी के प्रवचनकर्ता आया करते थे, जो गोरखपुर की श्रद्धालु जनता के लिए बड़े आकर्षण का केंद्र बने रहते थे।

कभी गीता प्रेस से सैकड़ों गरीब परिवारों को रोटी नसीब होती थी। बीती सदी के 80 के दशक तक यह व्यवस्था थी कि गीता प्रेस से पुस्तकें तो छाप ली जाती थीं, पर उनकी सिलाई के लिए मशीन की व्यवस्था नहीं थी। तब पुस्तकों की जुजबंदी और सिलाई के लिए सैकड़ों परिवार प्रकाशित सामग्री को घर ले जाते। लकड़ी की तानी पर मोटी सुई और सद्दी (पतंग उड़ाने वाले धागे) से पुस्तकों की सिलाई होती। पैसे मामूली मिलते, लेकिन ज्यादा काम करने वाले की ठीक-ठाक कमाई हो जाती थी। उसी दौरान गीता वस्त्र भंडार की भी स्थापना की गई थी, जहां महिला, पुरुषों के कपड़े, साड़ियां, पर्दे और चादर बाजार की अपेक्षा बेहद सस्ते दामों पर बेचे जाते थे।

कुछ साल पहले गीता प्रेस के कर्मचारियों के वेतन-भत्तों को लेकर चला आंदोलन चर्चा में आया था। इस प्रकाशन की आर्थिक बदहाली भी चर्चा में रही थी। लेकिन योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनते ही गीता प्रेस दोबारा पूरी गति और उत्साह के साथ काम करने लगा। अब इसके संचालक ट्रस्टी इसकी आर्थिक बदहाली से इन्कार करते हैं। गीता प्रेस ट्रस्ट के संविधान में कोई विज्ञापन न छापने के संकल्प के साथ ही किसी तरह का दान-अनुग्रह लेने की भी मनाही है। यही वजह है कि गांधी शांति पुरस्कार के साथ मिलने वाली एक करोड़ रुपये की बड़ी राशि लेने से गीता प्रेस ने इन्कार कर दिया है।

 

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