राजनैतिकशिक्षा

प्रेम की दुकान की पहली सीढ़ी है माफी

-डा. भरत मिश्र प्राची-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

राहुल गांधी जो कांग्रेस का भविष्य है, कांग्रेस की शक्ति है, जिनके इर्द गिर्द आज भी देश के तमाम कांग्रेसियों की एक बड़ी जमात खड़ी है उनपर प्रहार होना स्वाभाविक है। उनके कमजोर होने से कांग्रेस कमजोर होती है, इसमें कहीं से भी शक की कोई गुंजाइश नहीं। इसी कारण आज देश की सबसे बड़ी रही राजनीतिक पार्टी कांग्रेस को समाप्त करने की दिशा में राहुल गांधी पर सर्वाधिक रूप से प्रहार होता नजर आ रहा है। उनकी सांसद सदस्यता जाने से लेकर सरकारी आवास खाली कराने की तीव्रता के बीच कांग्रेस को और कमजोर करने की सशक्त कड़ी जुड़ी हुई है। इस तरह के परिवेश को पनाह देने में राहुल गांधी की अड़ियल भूमिका जरूर शामिल है। ललित मोदी प्रसंग पर मोदी सरनेम को लपेटना उनके लिये महंगा पड़ गया। इस तरह के परिवेश पर जहां सरनेम समूह की भावनाओं को ठेस पहुंचा है, माफी मांग लेना कमजोरी नहीं बल्कि कुशल नेतृत्व का परिचायक है, जो विपक्ष को मात दे सकता था। पर ऐसा नहीं हुआ और आज इस सरनेम का मामला राजनीतिक तूल पकड़ता जा रहा है। आगे के कोर्ट का निर्णय क्या होगा, इस मामले पर कांग्रेस को और कमजोर करने की रणनीति शुरू हो गई है। अभी यह मामला निपटा हीं नहीं कि सावरकर का मामला नया राजनीतिक तूल पकड़ता नजर आ रहा है।

राहुल गांधी जब भारत जोड़ों पैदल पद यात्रा पर निकले तो इस यात्रा में नफरत के बाजार में प्रेम की दुकान खोलने की बात सबसे प्रमुख रही जब कि प्रेम की दुकान खोलने के पहली सीढ़ी है माफी। माफी मांग लेना या माफ कर देना प्रेम की दुकान का पहला सोपान है। फिर इस मामले में राहुल गांधी इतने अड़ियल क्यो हो गये। कहीं न कहीं इस तरह के हालात के पीछे कांग्रेस को और कमजोर करने की भीतरी साजिस तो नहीं, कांग्रेस के हित में इस बात को समझना एवं गांधी के मूलभूत धारणा को धारण करना राहुल गांधी के लिये बहुत जरूरी है। एक – एक कर के कांग्रेस के पुराने नेता कांग्रेस से अलग होते जा रहे है। इस तथ्य को समझना एवं इस भगदड़ को रोकने का प्रयास करना राहुल गांधी के लिये बहुत जरूरी कदम हो गया है जहां राहुल के माध्यम से कांग्रेस को कमजोर करने की एक बड़ी जमात खड़ी है।

आज भी देश की दूसरी सबसे बड़ी नेशनल पार्टी कांग्रेस है। जिसकी देश के कई राज्यों में सरकार सत्ता में है। इसी वर्ष कर्नाटक, राजसथान, छत्तीसगढ़, मघ्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले है, जिसमें कर्नाटक में चुनाव होने की घोषणा भी हो चुकी है। इस चुनाव में भी सरनेम का मामला चुनावी हथकंडा बना हुआ है। आप इसका विकल्प बनने का प्रयास कर रही है। जो राजस्थान, मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को कमजोर करने की कड़ी बन सकती है। इस तथ्य को राहुल गांधी को समझना होगा। मल्लिकार्जून खड़गे कांग्रेस के नेशनल अध्यक्ष अवश्य है पर कांग्रेस की धूरी राहुल गांधी के इर्द गिर्द अभी भी टिकी है। इस तथ्य को राहुल गांधी को समझना कांग्रेस हित में बहुत जरूरी है। कांग्रेस का हित नहीं चाहने वाले कांग्रेस का शुभचिंतक बन राहुल गांधी को भटका सकते है, इस परिवेश को समझना होगा। 2024 में लोकसभा के चुनाव भी होने वाले है। आज के परिवेश में अकेले अपने दम पर मजबूत सत्ता पक्ष का सामना करना कांग्रेस के बलबूते की बात नहीं है। सत्ता पक्ष के विपक्ष को एक मंच पर लाने एवं कांग्रेस छोडकर जाने वाले को रोकने की प्रक्रिया अपनाने का दायित्व भी राहुल गांधी के कंधे पर है। जिस दायित्व से वे कभी भी अपने को वे अलग नहीं कर सकते। इस दिशा में सफलता हेतु जरूरी है अपनी वर्तमान अड़ियल सोच में बदलाव लाना एवं प्रेम की दुकान के पहले सोपान माफी शब्द पर अमल करना।

 

 

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