राजनैतिकशिक्षा

कोरोना नियमों के उल्लंघनकर्ताओं के प्रेरणास्रोत

-तनवीर जाफरी-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

अन्य देशों की तरह भारत भी कोरोना की दूसरी और खतरनाक लहर का सामना कर रहा है। आए दिन कोरोना के मरीजों की संख्या में भी तेजी से वृद्धि होती जा रही है, साथ ही इस मर्ज के प्रहार से मरने वालों की संख्या में भी तेजी से इजाफा होने लगा है। जैसी नकारात्मक खबरें कोरोना की प्रथम लहर के दौरान सुनाई दे रही थी उसी तरह के समाचार पुनः सुनाई देने लगे हैं। कहीं अस्पताल में मरीजों के लिए बिस्तर की कमी,अस्पताल में डॉक्टर्स के बड़ी संख्या में कोरोना पॉजिटिव होने के समाचार,कहीं मुख्य चिकित्सा अधिकारी संक्रमित तो कहीं जिलाधिकारी,कहीं शमशान घाट में अंतिम संस्कार के लिए प्रतीक्षा सूची,कहीं कर्फ्यू कहीं स्कूल-कॉलेज बंद,कहीं धारा 144,कहीं रात्रि कर्फ्यू कहीं सप्ताहांत में लॉक डाउन ,कहीं कुछ तो कहीं कुछ। गोया सरकार व प्रशासन किसी भी सूरत में कोरोना की दूसरी लहर के विस्तार को यथाशीघ्र नियंत्रित करने के लिए फिक्रमंद नजर आना चाह रहे हैं। लोगों के एक जगह पर इकठ्ठा होने से रोकने की कोशिश के तहत स्कूल,बाजार व सार्वजनिक समारोहों व स्थलों आदि पर नजरें रखी जा रही हैं। कोरोना का सामुदायिक स्तर पर विस्तार न होने पाए इसके लिए मास्क लगाने के सख्त निर्देश दिए जा रहे हैं। राजधानी दिल्ली में तो अकेले कार चलाने पर भी मास्क लगाना अनिवार्य कर दिया गया है। और भी नियम व कायदे कानून कोरोना के मद्देनजर बनाए गए हैं और जरूरत के अनुसार आए दिन बनाए जा रहे हैं।

देश के विभिन्न हिस्सों से कोरोना नियमों को बड़ी सख्ती से लागू करने की खबरें भी सुनाई दे रही हैं। कहीं मास्क न लगाने वालों पर पुलिस डंडे बरसा रही है। उत्तर प्रदेश से एक ऐसा समाचार भी आया कि एक स्वर्ण आभूषण दुकानदार को पुलिस खींचकर दुकान के बाहर ले आई और उसकी जमकर पिटाई कर थाने ले गयी। इस घटना के विरुद्ध दुकानदारों ने बाजार बंद करा दी और प्रशासन के विरुद्ध नारेबाजी की। इसी तरह कहीं बिना मास्क वालों को पुलिस सार्वजनिक रूप से मुर्गा बना रही है। कहीं मास्क न लगाने वालों से जुर्माने वसूल किये जा रहे हैं। उनकी पिटाई की जा रही है व गालियां दी जा रही हैं। परन्तु इन सभी शासकीय प्रयासों के बावजूद कोरोना संबंधी गाइडलाइन की अवहेलना का सिलसिला भी जारी है। और इस अवहेलना का ही नतीजा है कि कई राज्यों में निर्धारित अवधि के लिए लॉक डाउन लगाए गए हैं और कई जगह लॉक डाउन की चेतावनी भी दी जाने लगी है। गत वर्ष अचानक हुए लॉक डाउन का दंश झेल चुकी जनता इन दिनों फिर विचलित दिखाई देने लगी है और लॉक डाउन के भय से अपने घरों व गांव की वापसी के लिए देश के प्रमुख महानगरों व शहरों के रेलवे स्टेशन्स पर भीड़ की शक्ल में इकठ्ठा हो रही है।

ऐसे में सवाल यह उठता है कि कोरोना नियमों की अवहेलना करने वालों या इन्हें गंभीरता से न लेने वालों को आखिर प्रेरणा कहाँ से मिल रही है। यह सवाल और भी जरूरी है कि कोरोना गाइडलाइन व कोरोना नियमों का पालन करने का जिम्मा क्या केवल आम जनता का है, और इस जनता को भी वर्गीकृत किया गया है ? मिसाल के तौर पर चुनाव में व्यस्त नेताओं के लिए,रैली,रोड शो में भाग लेने वाले नेताओं के लिए कोई कोरोना का भय नहीं या कोई कोरोना गाइडलाइन नहीं ? इसी तरह रैली,रोड शो व जनसभा में भाग लेने वाली जनता के लिए भी कोरोना के कोई नियम कायदे नहीं ? और तो और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे नेताओं को जनसभा में शामिल भीड़ को देखकर गदगद होते तो सुना गया परन्तु क्या कभी किसी नेता के मुंह से किसी भी रैली,जनसभा या रोड शो में जनता के लिए यह शब्द निकला कि -’आप सभी मास्क जरूर लगाएं या कृपया सामाजिक दूरी बनाकर रखें और फासला बनाकर खड़े हों’ ? परन्तु यही प्रधानमंत्री जब देश के मुख्यमंत्रियों से कोरोना संकट पर चर्चा करते हैं तो सीधे तौर पर जनता को ही दोषी ठहराते हुए साफ कहते हैं कि -’कोरोना की मौजूदा दूसरी लहर के समय लोग पहले से ज्यादा लापरवाह हो गए हैं और प्रशासन भी अब लापरवाह हो गया है,ये चिंता की बात है’। जनता को टिप्स और मंत्र देने में महारत रखने वाले प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले दिनों मुख्यमंत्रियों से संबोधन के समय भी कोरोना से लड़ने के लिए तीन ‘टी’ का मन्त्र दिया। तीन ‘टी ‘ अर्थात टेस्ट, ट्रैक और ट्रीटमेंट। प्रधानमंत्री ने इस तीन ‘टी ‘ मंत्र को संकट से लड़ने का मूलमंत्र बताया है। उन्होंने स्वयं यह भी स्वीकार किया कि-देश में कोरोना की दूसरी लहर पहली लहर से भी ज्यादा तेज है। उन्होंने यह भी कहा कि कई राज्यों में संक्रमितों की संख्या लगातार बढ़ रही है जो हम सबके लिए चिंता का विषय है। साथ ही प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी स्वीकार किया कि कोरोना के मामलों में आई अचानक बढ़ोतरी ने लोगों के सामने मुश्किलें पैदा की हैं।

तो क्या प्रधानमंत्री के भाषण व मार्गदर्शन के यह ‘अमूल्य मन्त्र’ व उनकी उपरोक्त चिंताएं बिहार से लेकर पिछले दिनों बंगाल व असम सहित पांच राज्यों के चुनाव में लागू नहीं होतीं ? हरिद्वार में हो रहे कुंभ और अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट प्रतियोगिता आई पी एल आदि के आयोजन क्या कोरोना नियमों के अंतर्गत कराया जाना संभव हो सकेगा ? जिस जनता को पुलिस इसलिए पीटती है कि उसने मास्क नहीं लगाया क्या वह जनता यह नहीं पूछ सकती कि मोदी व अमित शाह सहित अनेकानेक नेता सार्वजनिक स्थानों पर मास्क क्यों नहीं लगाते ? यदि जनता इन नेताओं को अपना मार्गदर्शक व प्रेरक मानती है तो निश्चित रूप से कोरोना संबंधी नियमों व गाईड लाइन की धज्जियाँ उड़ाने की प्रेरणा भी तो आखिर इन्हीं नेताओं से ही मिल रही है ? इतना ही नहीं बल्कि जब प्रशासन इस स्तर के नेताओं के विरुद्ध किसी तरह की कार्रवाई न कर पाने का साहस नहीं जुटा पाता तब भी जनता में यही सन्देश जाता है कि सत्ताधारी नेता या शक्तिशाली लोगों के लिए कोरोना के कायदे कानून अलग हैं और आम जनता के लिए अलग ? दरअसल कोरोना नियमों के उल्लंघनकर्ताओं के प्रेरणास्रोत भी वही नेतागण हैं जो स्वयं इन नियमों का पालन नहीं करते।

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