राजनैतिकशिक्षा

बिजली का संकट

-सिद्धार्थ शंकर-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

हर साल की तरह इस बार भी देश में बिजली का संकट गहराने लगा है। कई राज्य बिजली की भारी कमी से जूझ रहे हैं। रोजाना आठ-दस घंटे की बिजली कटौती हो रही है। सिर्फ घरों को ही नहीं, उद्योगों तक को बिजली नहीं मिल रही। बिजली के बिना किसान भी खेतों में काम नहीं कर पा रहे हैं। कोयले की भारी कमी की बात कह कर बिजलीघरों ने हाथ खड़े कर दिए हैं। भीषण गर्मी के चलते देशभर में बिजली की मांग बढ़ती जा रही है। ऐसे में देश के एक चौथाई पावर प्लांट बंद हैं। नतीजा, 16 राज्यों में 10 घंटे तक के बिजली कटौती शुरू हो गई है। सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक, देशभर में 10 हजार मेगावॉट, यानी 15 करोड़ यूनिट की कटौती हो रही है, लेकिन बिजली की कमी वास्तव में कहीं ज्यादा है। इस बीच रेल मंत्रालय ने बड़ा कदम उठाया है। रेलवे ने पावर प्लांट्स तक कोयले की तेजी से सप्लाई के लिए कुल 42 ट्रेनों को अनिश् िचत काल के लिए कैंसिल कर दिया है, ताकि कोयला ले जा रही मालगाडिय़ां समय पर निर्धारित स्टेशनों पर पहुंच सकें। बिजली कटौती का असर अब राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी होने लगा है। कोयले की कमी के गहराते संकट के बीच दिल्ली सरकार ने मेट्रो और अस्पतालों समेत कई आवश्यक संस्थानों को 24 घंटे बिजली आपूर्ति में असमर्थता जताई है। उधर, अकेले यूपी में ही 3 हजार मेगावॉट से ज्यादा की कमी है। वहां 23 हजार मेगावॉट बिजली की डिमांड है, जबकि सप्लाई 20 हजार मेगावॉट है। बिजली कटौती का मुख्य कारण देश के एक चौथाई बिजली प्लांट्स का बंद होना है। इनमें से 50 फीसदी प्लांट कोयले की कमी के चलते बंद हैं। ऊर्जा मंत्रालय के मुताबिक देश के 18 पिटहेट प्लांट यानी ऐसे बिजलीघर, जो कोयला खदानों के मुहाने पर ही हैं, उनमें तय मानक का 78 फीसदी कोयला है। जबकि दूर दराज के 147 बिजलीघर (नॉन-पिटहेट प्लांट) में मानक का औसतन 25 फीसदी कोयला उपलब्ध है। यदि इन बिजलीघरों के पास कोयला स्टॉक तय मानक के मुताबिक 100 फीसदी होता तो पिटहेट प्लांट 17 दिन और नॉन-पिटहेट प्लांट्स 26 दिन चल सकते हैं। देश के कुल 173 पावर प्लांट्स में से 106 प्लांट्स में कोयला शून्य से लेकर 25 फीसदी के बीच ही है। दरअसल कोयला प्लांट बिजली उत्पादन को कोयले के स्टॉक के मुताबिक शेड्यूल करते हैं। स्टॉक पूरा हो तो उत्पादन भी पूरा होता है। जिन राज्यों में बिजली संकट ज्यादा है, उनमें पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गोवा और महाराष्ट्र प्रमुख हैं। गर्मी के मौसम में बिजली की मांग बढऩा कोई नई बात नहीं है। पिछले कुछ सालों के मुकाबले इस साल बिजली की मांग में भारी बढ़ोतरी की बात कही जा रही है। बताया जा रहा है कि पिछले अड़तीस साल में पहली बार इस वर्ष अप्रैल में बिजली की सबसे ज्यादा मांग बढ़ी। पर संकट की जड़ें बिजली की मांग में नहीं, उसके उत्पादन में हैं। जिस तेजी से शहरी आबादी बढ़ रही है, उसे देखते हुए तो बिजली की मांग बढ़ेगी ही। फिर घरों में एसी से लेकर बिजली से चलने वाली तमाम चीजें उपयोग में होती हैं। हालात बता रहे हैं कि संकट आसानी से खत्म नहीं होने वाला। जैसे ही गर्मी का मौसम शुरू होता है, बिजली की मांग बढऩे लगती है और बिजलीघर कोयले की कमी का रोना रोने लगते हैं। पर हैरानी की बात यह है कि इसका स्थायी समाधान निकालने की दिशा में कुछ होता दिखा नहीं है। सवाल तो इस बात का है कि जब सरकार को पता है कि पिछले कई सालों से यह समस्या बनी हुई है, तो फिर इससे निपटने के लिए अब तक ठोस कदम क्यों नहीं उठाए गए? क्या बिजली संकट का मुद्दा प्राथमिकता में नहीं होना चाहिए? जब अंधेरे में डूबने की नौबत आने लगती है, तभी हमारी आंखें क्यों खुलती हैं?

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