राजनैतिकशिक्षा

मोदी का मिशन यूरोप

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

रूस-यूक्रेन युद्ध में विजेता कोई नहीं होगा। दुनिया में हर परिवार को इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है। इस मसले पर भारत शांति के साथ है। रूस के राष्ट्रपति पुतिन युद्ध को तुरंत रोकें। प्रधानमंत्री मोदी ने ये शब्द जर्मनी की राजधानी बर्लिन में कहे। जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्ज और उनकी टीम के साथ भारत सरकार के समकक्षों की बातचीत हो चुकी थी। साझा घोषणा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी और चांसलर शॉल्ज ने रूसी राष्ट्रपति पुतिन से युद्ध समाप्त करने का आग्रह किया। स्पष्ट हो जाता है कि 2022 में प्रधानमंत्री के प्रथम यूरोपीय प्रवास के दौरान युद्ध कितना गंभीर और प्रासंगिक मुद्दा रहा है। जर्मनी के बाद प्रधानमंत्री मोदी डेनमार्क जाएंगे। वहां नॉर्वे, स्वीडन, फिनलैंड आदि देशों के प्रधानमंत्रियों से मुलाकात करेंगे और द्विपक्षीय संवाद भी होगा।

भारत लौटते हुए फ्रांस में राष्ट्रपति मैक्रों को दोबारा चुनाव जीतने की बधाई देते हुए विभिन्न मुद्दों और समझौतों पर बातचीत करेंगे। फ्रेंच नेता भी पुतिन को युद्ध रोकने की अपील करते रहे हैं। यूरोप प्रत्यक्ष तौर पर युद्ध के दंश झेल रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध पूरे यूरोप महाद्वीप के लिए चिंता का बुनियादी सरोकार है। यूक्रेन से 50 लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हुए हैं। वे लोग यूरोपीय देशों में ही ‘शरणार्थी बने हैं। यूरोप ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अपने घर के पड़ोस में ही खौफनाक और विध्वंसक युद्ध को महसूस किया है। यूरोप की मौजूदा पीढ़ी ने ऐसे युद्ध की कल्पना तक नहीं की होगी, लिहाजा जर्मनी के बाद डेनमार्क के शिखर सम्मेलन और फिर फ्रांस में जितने भी संवादों में प्रधानमंत्री मोदी शामिल होंगे, युद्ध का प्रसंग फोकस में ही रहेगा। बेशक जर्मनी भारत का 70 साल पुराना दोस्त, रणनीतिक साझेदार और कारोबारी भागीदार रहा है। जर्मनी में 2 लाख से ज्यादा भारतीय पासपोर्ट धारक हैं। कई तो दशकों से वहां रहते हैं और व्यापार करते हैं। जर्मनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग की सेवा भारत ही मुहैया करा रहा है। राजधानी बर्लिन में ही 500 से ज्यादा भारतीय रेस्टॉरेंट हैं, जिनकी बहुत मांग है। वहां जर्मनी में एक ‘लघु भारत बसा हुआ लगता है। बहरहाल दोनों देशों के बीच 21 अरब डॉलर से अधिक का कारोबार होता रहा है। यह यूरोप में सर्वाधिक है। वैसे भी जर्मनी यूरोप का ‘आर्थिक पॉवरहाउस कहलाया जाता है। चांसलर शॉल्ज के साथ प्रधानमंत्री मोदी का प्रथम द्विपक्षीय संवाद हुआ है।

खुद शॉल्ज युद्ध-विरोधी सोशल डेमोक्रेट नेता हैं, जाहिर है कि सुरक्षा संबंधी मुद्दों पर भी दोनों नेताओं में सहमति बनी होगी! जर्मनी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में, भारत के साथ, अपनी नई भूमिका निभाना चाहता है। यह नीति भी जर्मनी ने अभी तय की है। इनके अलावा, हरित और स्वच्छ ऊर्जा, टिकाऊ विकास, इनसे संबंधित तकनीकों, अन्य प्रौद्योगिकी का भारत को हस्तांतरण करना और कारोबार में मुक्त व्यापार के मद्देनजर दोनों देशों ने जो समझौते किए हैं, उनसे स्पष्ट है कि अब भारत यूरोप में भी अवसरों और रिश्तों के नए आयाम खोलेगा। रणनीतिक साझेदारी अमरीका तक ही सीमित नहीं रहेगी, बल्कि जर्मनी-फ्रांस तक भी उसका विस्तार होगा। भारत अमरीका के साथ सैन्य करार करता है, तो अब फ्रांस और जर्मनी के साथ भी रक्षा कारोबार के साथ-साथ आर्थिक संबंध भी मजबूत करेगा। फ्रांस से हमने राफेल लड़ाकू विमान खरीदे हैं, यह हमारे सैन्य संबंधों का विशेष उदाहरण है। यह भी गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी जिस देश में भी जाते हैं, वहां का भारतीय समुदाय गदगद हो जाता है। ‘मोदी, मोदी के अलावा ‘वंदे मातरम् के भी नारे बुलंद सुनाई देते हैं। यह व्यवहार साबित करता है कि भारत विश्व स्तर पर कितना महत्त्वपूर्ण देश बनता जा रहा है। हालांकि युद्ध को लेकर अमरीका और यूरोप के लगातार दबाव रहे हैं कि भारत का रुख भी रूस-विरोधी होना चाहिए। भारत भी रूस पर कुछ पाबंदियां लगाए, लेकिन हमने साफ कर दिया कि हमारी विदेश नीति स्वतंत्र है। भारत की प्रतिष्ठा यह है कि जर्मनी चांसलर ने प्रधानमंत्री मोदी को इसी साल की जी-7 देशों की शिखर बैठक में मेहमान के तौर पर आमंत्रित किया है।

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