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इसरो के लिए चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग चंद्रयान-2 मिशन की सबसे बड़ी परीक्षा

बेंगलुरु, 20 अगस्त (सक्षम भारत)। चंद्रयान-2 को चांद की कक्षा में मंगलवार को प्रवेश कराना भारत के चंद्र मिशन के लिए एक बड़ी परीक्षा थी, लेकिन सबसे बड़ी परीक्षा सात सितंबर को तब होगी जब इसरो कुछ ऐसा करेगा जो उसने पहले कभी नहीं किया है। भारत के अत्यधिक महत्वाकांक्षी उपक्रम का सबसे चुनौतीपूर्ण चरण सात सितंबर को आएगा जब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) चांद की सतह पर चंद्रयान-2 की सॉफ्ट लैंडिंग कराएगा। अंतरिक्ष एजेंसी ने अब से पहले इस तरह के काम को कभी अंजाम नहीं दिया है। इसरो के वैज्ञानिक चांद के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में आगामी सात सितंबर को होने वाली सॉफ्ट लैंडिंग को मिशन की सर्वाधिक जटिल चुनौती मानते हैं, लेकिन उनका जोश हाई है। लैंडर विक्रम ऑर्बिटर से अलग होकर सात सितंबर को चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग की कोशिश करेगा। लैंडर के चांद पर उतरने के बाद इसके भीतर से रोवर प्रज्ञान बाहर निकलेगा और अपने छह पहियों पर चलकर विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोग शुरू करेगा। वह एक चंद्र दिन (पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर) तक अपना कार्य करेगा। वहीं, ऑर्बिटर चांद की कक्षा में चक्कर लगाकर अपना अध्ययन कार्य करेगा। ऑर्बिटर और रोवर अपने अध्ययन और प्रयोग कार्य की जानकारी धरती पर बैठे इसरो वैज्ञानिकों को भेजेंगे। ऑर्बिटर एक साल तक अपने मिशन को अंजाम देता रहेगा। सॉफ्ट लैंडिंग यदि सफल हो जाती है तो रूस, अमेरिका और चीन के बाद भारत ऐसी उपलब्धि हासिल करने वाला दुनिया का चैथा देश बन जाएगा। वहीं, सॉफ्ट लैंडिंग के बाद भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में पहुंचने वाले प्रथम देश का दर्जा हासिल कर लेगा। इसरो के अध्यक्ष के. सिवन ने मंगलवार को चंद्रयान-2 के चांद की कक्षा में प्रवेश करने के बाद कहा कि सॉफ्ट लैंडिंग का क्षण बेहद डराने वाला होगा क्योंकि भारत ऐसा कार्य पहली बार करने जा रहा है। सॉफ्ट लैंडिंग की तैयारियों के बारे में सिवन ने कहा, मानव होने के नाते जो संभव था, वह हमने किया है। लैंडर के चांद पर उतरने से पहले यह देखने के लिए तस्वीरें ली जाएंगी कि जहां सॉफ्ट लैंडिंग कराई जानी है, उस स्थान पर कोई खतरा तो नहीं है।

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