राजनैतिकशिक्षा

भारतीय राजनीति में जातिवाद का निरंतर बढ़ता प्रभाव

-विजय कुमार जैन-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

भारतवर्ष में आजादी के बाद से राजनैतिक दलों ने देश में जातिगत राजनीति प्रारंभ की। संपूर्ण भारत वर्ष में अनेक राजनैतिक दल जाति की पहचान बन गये है। विगत वर्षों इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ का फैसला आया था कि जिसमें आदेश दिया था कि जातियों की राजनैतिक सभायें आयोजित करने पर रोक लगा दी थी। जाति के आधार पर चुनावी लाभ की राजनीति करने बाले नेताओं को उस समय गहरा आघात लगा होगा। यह जनहित याचिका सुप्रसिद्ध अभिभाषक मोतीलाल यादव ने दायर की थी और न्यायमूर्ति उमानाथ सिंह तथा न्यायमूर्ति महेन्द्र दयाल ने यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। उस समय इस फैसले से जाति आधारित रैलियों पर अवश्य रोक लग गई थी। ऐसा लगा था अब जातिगत राजनीति की गाड़ी के पहिये रुक जायेंगे। मगर आज देश में जातिगत राजनीति फल फूल रही है।

देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश में तीन प्रमुख राजनैतिक दलों काँग्रेस, समाज वादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने देश के तीन महापुरुषों जिनकी अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति है, नेताओं ने उनको आगे करके जातिगत राजनीति को आगे बढ़ाया है। काँग्रेस के महापुरुष महात्मा गांधी, समाज वादी पार्टी के महापुरुष डाँ राममनोहर लोहिया बहुजन समाज पार्टी के महापुरुष डाँ बी. आर. अम्बेडकर हैं। यहाँ उल्लेखनीय पक्ष यह है इन तीनों महापुरुषों ने जातिवाद का पुरजोर विरोध किया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने जाति आधारित छुआछूत के विरुद्ध आजादी के आन्दोलन के साथ साथ संघर्ष किया था। छुआछूत को आजादी की लड़ाई का हिस्सा बनाया था। डाँ राममनोहर लोडिया भी देश के उन प्रमुख नेताओं में एक थे जिन्होंने जातिवाद का पुरजोर विरोध किया। डाँ लोहिया की पुस्तक जातिप्रथा में उनके भाषणों, पत्रों और कुछ लेखों का संकलन है। उन्होंने जातिवाद के विनाश की बात अनेक बार कही थी।

उन्होंने कहा था कि जातियों ने हिन्दुस्तान को भयंकर नुकसान पहुचाया है। एक जगह उन्होंने लिखा है कि हिन्दुस्तान बार-बार विदेशी फौजों के सामने घुटने क्यों टेक देता है। इतिहास साक्षी है कि जिस काल में जाति के बंधन ढ़ीले थे, उसने लगभग हमेशा उसी काल में घुटने नहीं टेके है। डाँ लोहिया ने कहा है कि जाति का बंधन ऐसा था कि जब भारत पर हमला होता था तो 90 प्रतिशत लोग युद्ध से बाहर रहते थे, युद्ध लड़ना मात्र 10 प्रतिशत लोगों के जिम्मे रहता था क्योंकि युद्ध का काम केवल क्षत्रियों के नाम लिख दिया गया था। महात्मा गांधी के समकालीन रहे संविधान निर्माता डाँ बी.आर अंबेडकर ने अपने दर्शन का मुख्य आधार जाति प्रथा को समाप्त करना बनाया था। उनका कहना था जब तक जातिप्रथा को समाप्त नहीं किया जायेगा तब तक देश में राजनैतिक सुधार नहीं लाया जा सकता। डाँ बी.आर.अम्बेडकर ने अपने जीवन में कभी कल्पना नहीं की होगी कि उनके जातिवादी दर्शन को आधार बनाकर राजनैतिक दल सत्ता प्राप्त कर लेंगे। उत्तर प्रदेश में स्व कांशीराम एवं मायावती ने अपनी पार्टी के विकास हेतु डाँ बी.आर. अम्बेडकर को आदर्श पुरुष माना है। जातिवाद और छुआछूत की यह कुप्रथा भारत में आजादी से पहले शदियों से चली आ रही है। आजादी के 74 वर्ष बाद भी हम छुआछूत को समाप्त नहीं कर पाये हैं। जातिवाद और छुआछूत का ही परिणाम है आज अतिदलित हिन्दुओं का एक वर्ग छुआछूत से पीड़ित होकर बौद्ध धर्म या इसाई धर्म स्वीकार करने में संकोच नहीं कर रहा है।

विहार की घटना है पिछले वर्षों अतिदलित माने जाने बाले झीतनराम मांझी द्वारा महात्मा गांधी की प्रतिमा को माल्यार्पण करने के बाद एक युवक ने मूर्ति को गंगा जल से धो दिया। इस घटना के बाद युवक को गिरफ्तार कर लिया तथा कानूनी कार्यवाही भी की गई।परन्तु प्रश्न यह है उस युवक ने इस तरह का निंदनीय कार्य क्यों किया। इस ज्वलंत प्रश्न का उत्तर हमारे देश की वर्तमान राजनैतिक व्यवस्था और इस जातिगत राजनीति को दिशा दे रहे राजनीतिज्ञों की सोच में हमे अवश्य मिल जायेगा। भारत में विशेष रूप से देश के दो बड़े प्रदेशों उत्तर प्रदेश और विहार की राजनीतिक परिस्थिति जातिवाद के आगे पीछे वर्षों से घूम रही है। यहाँ बड़े कहे जाने बाले नेता भी प्रमुख जातियों पर अपनी पकड़ बनाकर सत्ता में पहुंच रहे हैं। भारत में शदियों से चली आ रही जाति व्यवस्था ने जातिगत राजनीति का रूप धारण किया है उसे समाप्त करने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ आदि संगठनों के द्वारा भी प्रयास किये जा रहे हैं। उनके प्रयासों को सफलता नहीं मिल रही है। इस तरह का एक भी प्रयास आज तक देश में पिछड़ा वर्ग, दलित, महादलित वर्ग के नेताओं द्वारा नहीं किया है। असली जातिवादी खुद संविधान और सरकार है। जाति के आधार पर आरक्षण, शिक्षा, मुफ्त कापी किताब, होस्टल, छात्रवृत्ति, जाति के आधार पर आवेदन शुल्क, नौकरी में योग्यता, नौकरी में पदोन्नति, जाति के आधार पर कर्मचारी संगठन, राजनैतिक दल, विधायक, सांसद,मंत्री, जिला, जनपद सदस्य, नगर निगम,नगरपालिका अध्यक्ष, पार्षद, सरपंच, पंच, जाति के आधार पर अनुसूचित जाति, जनजाति कानून, जाति के आधार पर कानूनी विधान,जाति के आधार पर जाति आयोग, जाति के आधार पर अनगिनत सुविधाएं उपलब्ध करायी जा रही हैं। जाति और सम्प्रदाय विहीन अर्थात राजनैतिक दलों का ऐसा कोई भी कार्य जो समाज को जाति या धर्म के आधार पर बांटता हो इस पर रोक लगाना आवश्यक है। साथ ही यह भी आवश्यक है राजनैतिक दलों अथवा सामाजिक संगठनों का कोई भी कार्य जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जातीय मानसिकता या व्यवहार का पोषण करता है उसे अपराध की श्रेणी में रखा जाना चाहिए।

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