राजनैतिकशिक्षा

पंजाब की भूमि नानक और भगत सिंह की है यहाँ कोई डरता नहीं…!

-नईम कुरेशी-

 -: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

भारत में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, म.प्र. के किसानों के आंदोलन को 55 से भी ज्यादा दिन हो गये हैं फिर भी केन्द्र सरकार व उनकी पार्टी किसानों को सिर्फ और सिर्फ बदनाम करने पर तुली है और इस आंदोलन को सिर्फ पंजाब के किसानों का आंदोलन बताकर इसके प्रभाव व क्षेत्र को सीमित करने पर लगी हुई है। भारत के संवेदनशील और समझदार लोग पंजाब के लोगों की कुर्बानी जानते हैं। जब देश में आजादी के दौर में सरदार भगत सिंह को फांसी पर चढ़ाया गया था उस दौर में अकेले के पंजाब, हरियाणा, हिमाचल भी पंजाब का ही हिस्सा थे। 4 हजार लोगों को अंग्रेजों ने फांसी पर चढ़ाया था। उसमें 3 हजार से भी ज्यादा अकेले पंजाब के सिख, पंजाबी लोग ही थे।

भारत की आजादी में पंजाब ने 80 फीसद से भी ज्यादा कुर्बानियां दी हैं जिन्हें भारतीय जनता पार्टी भुलाना चाहती है। पंजाब के आम लोगों को भा.ज.पा. वहां बाँट नहीं पायी हिन्दू-मुसलमानों व मंदिर-मस्जिदों में जिससे अकाली दल को साथ लेकर महज 3 विधायकों को पंजाब में ला पायी थी। उसके खास व बड़े नेता दिल्ली से सर्वोच्च न्यायालय के बड़े वकील तक पंजाब में चुनाव हार गये थे जेटली जी क्योंकि पंजाब की आम जनता अच्छी खासी जागरुक है। भगत सिंह की सच्चाई उनकी समाजवादी विचारधारा से लेकर सिख गुरुओं की भूमि से लेकर नानक के प्यार भरी शिक्षाएँ पंजाब की अनमोल सम्पत्तियाँ हैं जिन्हें भारतीय जनता पार्टी के लोग बाँटने में शायद ही सफल हो पायेंगे। गुरु नानक जी के दर्शन को चप्पे चप्पे पर पंजाब में व देश दुनिया के सभी गुरुद्वारों में देखा जा सकता है जहां दुनिया के हर मानव को प्रसादी के रूप में भोजन परोसा जाता है। वो भी इतनी इज्जत व नम्रता से कि दुनिया में और कहीं भी इसे देख पाना शायद संभव ही नहीं है। मुझे भी गुलजार साहब व उस्ताद अमजद अलि साहब के साथ दाताबंदी छोड़ गुरुद्वारे में जाने का मौका ग्वालियर फोर्ट में मिला है।

भारत का दिसम्बर जनवरी की कड़ी सर्दियों में होने वाला किसानों का आंदोलन एक तरफ बहादुर न्यायप्रिय किसानों का संगठित आंदोलन है वहीं केन्द्र की अड़ानी, अम्बानी, रामदेव जैसे पूँजीपतियों की समर्थक सरकार है जो उनकी जमीनों से उन्हें उखाड़ कर मालिकों से नौकर बनाना चाहती है। देश में मंदिर-मस्जिद के नाम पर तनाव खड़ा करके दलितों, मजूरों के हकों पर डांका डालती आ रही है। भारत में विपक्ष के कमजोर होने से मीडिया का सत्ता का दलाल बना देने से आम जनता की हक की लड़ाई कमजोर होती जा रही है। सर्वोच्च न्यायालय में भी गरीब की कहां सुनवाई होती देखी जा रही है। वहां भी ऊँची जाति के लोग ही हावी हैं। छुट्टी के दिन भी सर्वोच्च न्यायालय मुम्बई के एक मीडिया चैनल वाले के जमानती आवेदन को बारी से हटकर सुन लेता है पर 80-80 साल के प्रोफेसर्स व एन.जी.ओ. वाले छात्रों के आवेदन सालों से सुनने को उसके पास समय नहीं है। किसान आंदोलन से हमारे देश में एक जागरुकता आई है जो 1980 के जे.पी. आंदोलनों के बाद पहली बार उत्तर भारत में आई है क्योंकि जब पंजाब के किसानों, हरियाणा के किसानों, यू.पी., मध्य प्रदेश के किसानों को कानूनों की आड़ में खत्म कर दिया जायेगा तब ही तो 20 रुपये किलो का आटा अड़ानी-अम्बानी 50 रुपये से लेकर 80 रुपये तक बेचने में सफल होंगे और उसका सीधा सीधा फायदा मोदी एण्ड कम्पनी को मिल सकेगा।

आप किसके साथ लुटेरों या मजदूरों के एक तरफ पंजाब व हरियाणा के किसान भारत के मजदूरों का दर्द हैं दूसरे तरफ पूँजीपतियों के दलालों और ऊँची जाति वालों की सरकार है जो 60 फीसद आम लोगों से उनके मुँह का निवाला छीन रही है। इस अभियान में उसे अम्बानी-अड़ानी के खरीदे गये मीडिया संस्थानों का भरपूर इशारा और लाभ मिल रहा है पर याद करना होगा ये देश गौतम, नानक, अम्बेडकर वादियों का भी है जो लगातार संगठित होता दिखाई दे रहा है। किसान भाई अपने हकों के साथ-साथ मानवता का भी प्रदर्शन दिल्ली में सफलतापूर्वक करके झूठों के बादशाह के घमंड को चूर-चूर करके रहेंगे। देश भर के तमाम अमन पसन्द व सद्भावना परस्त लोग किसान आंदोलन के साथ हैं। ये आंदोलन भगत सिंह, राजगुरु, अशफाक उल्ला बिस्मिल की विचारधारा से गोडसेवादी विचार धारा के बीच का आंदोलन कहा जा रहा है। एक तरफ गौतम बुद्ध, गांधी, लोहिया के विचार हैं दूसरी तरफ हेगड़ेवार के विचार हैं। अब इनमें से आप किसके साथ हैं ये आपको चुनना है। पंजाब के क्रांतिकारी किसान आपके आदर्श हैं या गुजराती मुनाफाखोर बैंक लुटेरे उद्योगपति?

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