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ईरान-पाक टकराव : विश्व शांति को नया खतरा

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

एक ओर रूस-यूक्रेन तथा इज़रायल-फिलीस्तीन संघर्ष थमने का नाम नहीं ले रहे हैं, दूसरी तरफ़ भारत के पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान और ईरान के बीच टकराव शुरू हो गया है, जो विश्व शांति के लिये बड़ा खतरा बन सकता है। वैसे ईरान ने इसी के साथ अपने दो और मुल्कों पर हमले किये हैं। ये देश हैं सीरिया व इराक। इन हमलों की गम्भीरता को देखते हुए सुलह के प्रयासों की तत्काल ज़रूरत आन पड़ी है। पहले उल्लेखित संघर्षरत मुल्कों के बीच युद्धों के अपने-अपने कारण हैं, परन्तु ताज़ा लड़ाई (ईरान-पाक) की वजह एक दूसरे पर आतंकवाद को बढ़ावा देना है। दोनों देशों के बीच तल्ख़ी इस कदर बढ़ गई कि दोनों ने एक दूसरे के उच्चायुक्तों को अपदस्थ कर दिया है। वैसे युद्ध जिस भी कारण से हो रहा हो, आवश्यक है कि दोनों देश परस्पर संवाद से समस्या का निदान ढूंढ़े।

मंगलवार को ईरान ने उससे लगे पाकिस्तान के बलूचिस्तान क्षेत्र में आतंकी समूह जैश-अल-अदल के दो ठिकानों पर मिसाइलों और ड्रोन से आक्रमण कर दिया। हमले के जवाब में ईरान पर एयर स्ट्राईक कर दी गई। खुद ईरान ने स्वीकारा है कि पाकिस्तानी हमले से उसके सिस्तान-बलूचिस्तान क्षेत्र में 7 लोग मारे गये हैं, जिनमें तीन महिलाएं और चार बच्चे हैं। इसके पहले भी 2016 में ईरान ने पाक सीमा में घुसकर मोर्टार हमले किये थे। इन दोनों देशों के बीच तकरीबन 900 किलोमीटर की सीमा लगती है। 2017 में पाक संरक्षित आतंकवादियों ने ईरान के 10 सुरक्षाकर्मियों को मार डाला था, तभी से दोनों देशों के बीच कई बार सम्बन्ध बिगड़ते भी रहे। ईरान एक शिया और पाकिस्तान सुन्नी मुसलमान देश है, जो उभय पक्षों के बीच खट्टे-मीठे सम्बन्धों का एक और कारण है। पाकिस्तान की सऊदी अरब से बढ़ती नज़दीकियां भी ईरान को रास नहीं आ रही हैं, जबकि 1965 में भारत-पाक युद्ध में ईरान ने पाकिस्तान का साथ दिया था।

पाकिस्तान पर ईरान का तो आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप है ही, खुद पाकिस्तान का कहना है कि ईरान में सक्रिय बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) और बलूचिस्तान लिबरेशन फोर्स (बीएलएफ) को उस देश के द्वारा बढ़ावा दिया जा रहा है जो पाकिस्तान में सरकार विरोधी कार्रवाइयां कर रहे हैं। पाकिस्तान ने कथित रूप से इन्हीं संगठनों के ठिकानों पर हमले किये हैं। पाकिस्तान की उत्तर में बलूचिस्तान स्थित है जिसकी सीमा अफगानिस्तान से लगती है और पश्चिम में ईरान से सटी हुई है। प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध बलूचिस्तान को उसके इस संसाधन का लाभ नहीं मिल पाता और वहां से निकलने वाले खनिजों का फायदा पाकिस्तान के पंजाब इलाकों को ज्यादा मिलता है। इसलिये बलूचिस्तान के लोग सरकार से नाराज़ हैं और वे अलग होने की मांग तक करते आये हैं। जबसे पाकिस्तान ने इन खनिजों को चीन के लिये भी खोल दिया है, बलूचियों की नाराज़गी और ज्यादा बढ़ गई है। बीएलए और बीएलएफ जैसे संगठन पाकिस्तानी व चीनी सेना के जवानों को निशाना बना रहे हैं। ईरान का मानना है कि पाकिस्तान, सीरिया एवं इराक तीनों ही आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा दे रहे हैं इसलिये उसने अपने हितों की रक्षा के लिये तीनों मुल्कों पर हल्ला बोला है।

दावोस में जारी वर्ल्ड इकानॉमिक फोरम में हिस्सा ले रहे ईरान के विदेश मंत्री ने कहा कि जैश-अल-अदल पाकिस्तान की धरती से ईरान के खिलाफ सक्रिय आतंकी संगठन है। ईरान लम्बे समय से कहता आया है कि पाकिस्तान उनके देश के खिलाफ काम कर रहे आतंकी समूहों को पनाह और प्रोत्साहन देता है। कई कार्रवाइयों की उसने जिम्मेदारी भी ली है। इसने ईरान में 2013 में बड़ा हमला किया था। ईरान के अलावा अमेरिका, जापान, न्यूजीलैंड आदि कई देशों ने इसे आतंकवादी संगठनों की सूची में डाल रखा है। वैसे दोनों देशों (ईरान-पाकिस्तान) के बीच कभी नरम तो कभी गरम वाले सम्बन्ध होते हैं। कुछ अरसा पहले दोनों देशों ने संयुक्त युद्धाभ्यास भी किया था लेकिन आतंकवाद, नशीले पदार्थों की तस्करी जैसे मामलों को लेकर खटास भी हो जाती है। हाल के वर्षों में रिश्ते इस कदर बिगड़ जाने की मुख्य वजह बलूचिस्तान के सीमावर्ती शहर पंजगुर में जैश-अल-अदल को शरण मिलना है।

चीन से दोनों के अच्छे ताल्लुक हैं जो इस तनातनी से अपने व्यवसायिक हितों के चलते चिंतित है। दोनों चीन प्रवर्तित शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन (एससीओ) के सदस्य हैं, इसलिये बुधवार को चीन के विदेश मंत्रालय के ओर से बयान जारी कर मसले को बातचीत से हल करने की सलाह दी गई है। इस बीच खाड़ी देशों के बीच स्थितियां और अंतरराष्ट्रीय सम्बन्ध काफी बदले हैं। भारत के साथ ईरान के सम्बन्ध कच्चे तेल के व्यवसाय पर निर्भर हैं। भारत ईरान का बड़ा आयातक देश है, इसलिये इस सशस्त्र संघर्ष का उसके शेयर बाजार पर पड़ना लाजिमी है। इस क्षेत्र में लड़ाई के आगाज़ की आशंका से सेंसेक्स व निफ्टी में बड़ी गिरावट दर्ज हुई जिसके कारण निवेशकों ने लगभग 4.50 लाख करोड़ रुपये गंवा दिये।

व्यवसायिक हितों से बढ़कर मानवीयता के दृष्टिकोण से भी यह संघर्ष थमना ज़रूरी है। कोरोना के कारण अनेकानेक तरह की दुश्वारियों से घिरती हुई दुनिया में इतना दम नहीं रह गया है कि वह किसी भी क्षेत्र में और किसी भी कारण से ऐसी लड़ाइयों को झेल सके। हर युद्ध त्रासदियों को जन्म देता है, जो हाल के रूस-यूक्रेन और इज़रायल-फिलीस्तीन के बीच चल रही लड़ाइयों में देखने को मिल रही है। युद्ध में मासूम लोग बलि चढ़ते हैं और एक हद के बाद सारी लड़ाइयां थम जाती हैं परन्तु मानवता को होने वाले नुकसान की भरपाई कभी पूरी नहीं हो पाती।

 

 

 

 

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