राजनैतिकशिक्षा

समन्वयक : ‘सत्तापीठ’ के शंकराचार्य सब पर भारी….!

-ओमप्रकाश मेहता-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

वैसे तो भारत में पुरातनकाल से हिन्दु धर्म के अनुयायियों के शंकराचार्यों की चार ही पीठे है, किंतु इन दिनों एक नई ‘सर्वधर्म शंकराचार्य’ की नई पांचवी पीठ कायम की गई है, जिसके अधिपति सर्वधर्म शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्र भाई मोदी जी है, जो राजनीति और धर्म के बीच न सिर्फ समन्वयक बनाकर रखते है, बल्कि सभी धर्मों के कुशल प्रवचनकर्ता भी है, अब ये पांचवें शंकराचार्य जी पुराने चार शंकराचार्यों को दर किनार कर अयोध्या में नवनिर्मित राम मंदिर का लोकापर्ण करने वाले है, करीब एक सौ पैंसठ वर्षों से प्रतीक्षित इस राम मंदिर के लिए कई वर्षों से राजनीतिक व धार्मिक संघर्ष जारी थे, जिसका प्रतिफल अब सामने आ रहा है, इस धार्मिक स्थल के लोकापर्ण समारोह का न सिर्फ चारों शंकराचार्यों बल्कि राजनीति के भी धुरंधर शंकराचार्यों ने बहिष्कार करने का फैसला लिया है, इसलिए इस शुभ अवसर पर पांचवें राजनीतिक शंकराचार्य जी के साथ उनके अनुयायी ही उपस्थित रहेगें।
भारत के इन पांचवें शंकराचार्य जी का सम्बंध किसी धर्म विशेष से नहीं है, बल्कि ये सर्वधर्म सम्मत शंकराचार्य है, जो कभी दक्षिण भारत में ईसाईयों के धर्मस्थलों पर शीश झुकाते है तो कभी बौद्ध मठों या मस्जिदों में, इसलिए अब तक आजादी के बाद के पचहत्तर वर्षों में ये अकेले ऐसे राजनेता है, जिनकी राजनीति व धर्म के प्रति समान आस्था है, जो इनके स्थायित्व का मुख्य आधार ये बनाने का प्रयास कर रहे है। इसीलिए एक शंकराचार्य जी ने इन्हें किसी देवता का अवतार तक कह डाला है, अब ये क्या है? ये तो ये स्वयं जाने, किंतु यह सही है, पिछले पचहत्तर सालों में ये पहले ऐसे राजनीतिक शंकराचार्य प्रकट हुए है जिनके प्रति सभी की गहरी आस्था है।
आज यदि हम मौजूदा धार्मिक व राजनीतिक हालातों की निष्पक्ष समीक्षा करें तो यह तथ्य सामने आता है कि यदि यह 2024 का चुनावी वर्ष न होता तो किसी को भी मौजूदा हालातों से दो-चार नहीं होना पडता, क्योंकि आज ये पांचवें राजनीतिक शंकराचार्य जो भी कर रहे है, वह सिर्फ उनकी ‘वोट बैंक’ विद्या का ही कमाल है, वे अपने कार्यों से भरसक प्रयास करते है कि मतदाता का कोई भी वर्ग उनके कार्यों से निराश या अप्रसन्न न हो, वे हर किसी को प्रसन्न रखने का प्रयास करते है, इसलिए इन पर कभी-कभी अंग्रेजी की एक कहावत ‘‘डोंट ट्राॅय टू प्लीज एवरी वन’’ (हर एक को खुश रखने का प्रयास न करों) लागूे हो जाती है और हर बार कोई न कोई वर्ग अपनी अप्रसन्नता जाहिर कर देता है। किंतु इस सबके बावजूद मौजूदा वक्त में देश का सर्वेसर्वा नेता भाई नरेन्द्र मोदी जी ही है, जिन्हें खुलकर नहीं तो कम से कम दिल से विरोधी भी प्यार करते है और उनके प्रयासों को सार्थक बनाने में योगदान प्रदान करते है।
अब यह बात अलग है कि मोदी जी के अब तक के नौ वर्षिय प्रधानमंत्रित्व काल में कई विसंगतियां भी पैदा हुई है, जिससे कुछ वर्ग उनसे नाराज भी है, किंतु अब स्वयं मोदी ने अपने प्रचार-प्रसार का उत्तरदायित्व वहन कर लिया है, जिसका ताजा उदाहरण पिछले नौ सालों में पच्चीस करोड़ गरीबों को गरीबी रेखा से बाहर लाने का प्रचार स्वयं मोदी द्वारा अपना प्रचार उनके ही कुछ लोगों को खटक जरूर रहा है, किंतु शायद यह स्वयं मोदी जी को ठीक लग रहा है, इसलिए उनके कट्टर अनुयायी मौन धारण किए है। जो भी हो, भारत का चैबीस में भविष्य क्या व कैसा होगा? यह तो समय के गर्भ में है, समय आने पर ही पता चलेगा, किंतु उसके लिए प्रयास अभी से काफी तेजी से जारी है, यह सर्व ज्ञात है।

 

 

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