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महिला आरक्षण बिल चुनावी ढोल, बजेगा-शोर करेगा, शांत हो जाएगा

-सनत जैन-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

महिला आरक्षण बिल लोक सभा और राज्यसभा से सर्वसम्मति से पारित हो गया है। राज्यसभा में महिला आरक्षण बिल को लेकर अधिकांश सदस्यों ने चर्चा में भाग लिया। सरकार ने इस बिल को नारी शक्ति वंदन अधिनियम का नाम दिया है। यह एक अच्छी शुरुआत है, पक्ष और विपक्ष ने आगामी चुनाव को ध्यान में रखते हुए महिला आरक्षण बिल को पक्ष भी मान रहा है, और विपक्ष भी मान रहा है। यह संयोग महिलाओं की किस्मत से बना है। विपक्षी गठबंधन इंडिया के सहयोगी दलों ने लोकसभा और राज्यसभा में महिला आरक्षण बिल्कुल तुरंत लागू करने की मांग की है। इंडिया गठबंधन एवं कांग्रेस नेताओं ने महिलाओं के आरक्षण में एसटी/एससी, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक महिलाओं को आरक्षण का लाभ दिए जाने की मांग संसद में की। इस मांग को सरकार ने नहीं माना संसद में कहा कि कानूनी प्रावधानों को पूरा के बाद ही कानून लागू करने की बात कही है। लोकसभा और राज्यसभा में सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि यह विधेयक 2029 के लोकसभा चुनाव से ही लागू होगा, उसके पहले नहीं हो सकता है। सरकार ने विशेष सत्र बुलाया था और महिला आरक्षण बिल को चुनाव के लिए एक मास्टर स्ट्रोक बताया था। लोकसभा और राज्यसभा में पक्ष और विपक्ष ने पक्ष रखा है, उससे इतना तय है, महिला आरक्षण विधेयक का ऊँट किसी भी करवट बैठ सकता है। इससे सत्ता पक्ष को फायदा भी हो सकता है और सत्ता पक्ष को बड़ा नुकसान भी हो सकता है, विपक्षी गठबंधन इंडिया जिस तरह से पिछड़ा वर्ग को महिला आरक्षण में शामिल करने की मांग कर रहा है। बिल पास होने के बाद सभी वर्गों की महिलाओं को आरक्षण देने की बात कर रहा है। उसका विपक्ष को फायदा मिल सकता है। लोकसभा चुनाव को दृष्टिगत रखते हुए महिला आरक्षण बिल और सनातन धर्म को भाजपा मास्टर स्ट्रोक मान रही है। सनातन धर्म को लेकर एक बड़ा विवाद तमिलनाडु से शुरू हुआ था। यह विवाद महिला आरक्षण बिल से भी जुड़ गया है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने कहा सनातन धर्म महिला विरोधी है। नई संसद भवन के शिलान्यास और उद्धाटन के अवसर पर राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को आमंत्रित नहीं किया गया। जबकि वह दोनों सदन के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित करती हैं। राष्ट्रपति संवैधानिक प्रमुख है। इसके बाद भी महिला आदिवासी राष्ट्रपति को इसलिये नहीं बुलाया गया कि सनातन धर्म की परंपरा के अनुसार विधवा होने के कारण शुभ काम और धार्मिक कार्यों से दूर रखा जाता है। महिला आरक्षण बिल में चल रही बहस को सनातन धर्म से भी जोड़ दिया गया है। इसके पहले भी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी हिंदू मंदिरों में प्रवेश एवं पूजा पाठ से रोकने का प्रयास किया जाता था। कभी उन्हें विधवा के रूप में और कभी पारसी के रूप में और कभी मुस्लिम कहकर उनका समय-समय पर अपमान सनातन धर्म में हुआ है। बहरहाल नारी शक्ति बंधन अधिनियम लोकसभा और राज्यसभा से पास हो गया है। पिछड़े और एससी एसटी वर्ग को शामिल करने की मांग को लेकर पक्ष और विपक्ष के बीच में संसद के अंदर तलख बहस भी हुई है। इंडिया गठबंधन और कांग्रेस ने पूरा दबाव बनाया है कि पिछड़ा वर्ग को भी इसमें शामिल किया जाए। राहुल गांधी ने लोकसभा में सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि केन्द्र सरकार के 90 सचिव है। इसमें मात्र 3 पिछड़ा वर्ग के है। सरकार 50 फीसदी पिछड़ों की उपेक्षा कर रही है। इससे स्पष्ट है कि कांग्रेस और इंडिया गठबंधन महिला आरंक्ष को तुरन्त लागू करने तथा महिलाओं को वर्गवार आरक्षण देने का चुनावी मुद्दा बनायेगा। महिला आरक्षण बिल तुरंत लागू किया जाए। इसके समर्थन में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि जैसे तीन किसान कानून, नोटबंदी, एनआरसी धारा 370 इत्यादि के कानून लागू किए गए हैं। वैसे ही महिला आरक्षण बिल को तुरंत लागू किया जाए। महिला आरक्षण बिल चुनावी मुद्दा बन गया है। पक्ष एवं विपक्ष चुनाव मैदान में इसी अस्त्र का उपयोग करेगा। सत्ता पक्ष सनातन और हिन्दू धुव्रीकरण के बल में चुनाव मैदान में उतरेगा। वहीं विपक्ष 50 फीसदी महिलाओं के वोट बैंक और मंडल की राजनीति में गैर सनातनियों जिसमें हरिजन, दलित, पिछड़े, आदिवासी जिनकी आबादी 50 फीसदी है। उनके सहारें चुनाव मैदान में सत्ता पक्ष से भिड़ेगा। महिला आरक्षण चुनावी मुद्दा बन चुका है। सत्ता पक्ष एवं विपक्ष अपने तरकश से घोषणाओं के तीर छोड़कर चुनाव जीतने की रणनीति तैयार करेंगे। महिला आरक्षण बिल चुनावी ढोल होगा। जब तक थाप पड़ेगी, शोर करेगा। चुनाव बाद थाप बंद हो जाएगी और महिला आरक्षण का मुद्दा भी ठंडा पड़ जाएगा। यह कहा जा रहा है।

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