विश्व स्तरीय बने उच्च शिक्षा
-डा. वरिंदर भाटिया-
-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-
हाल ही में एक संसदीय समिति ने उच्च शिक्षण संस्थानों में अनुदान को टैक्स से छूट की सिफारिश की है। समिति ने कहा है कि देश के निजी शिक्षण संस्थानों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। देश में प्राइवेट संस्थानों में सुधारों के साथ-साथ इनकी संख्या बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। संसदीय समिति की ताजा सिफारिश भी इन संस्थानों को आत्मनिर्भर बनाने में एक बहुत बड़ा कदम होगा। इसके अलावा संसदीय समिति ने इसके साथ ही शिक्षण संस्थानों के साथ कोचिंग संस्थानों की मिलीभगत, प्रश्न पत्र लीक, छात्र-परीक्षक गठजोड़ जैसे मुद्दों को लेकर भी चिंता जताई है। समिति ने शिक्षा मंत्रालय से सिफारिश की है कि उच्च शिक्षा को विश्वस्तरीय बनाना है तो इन विषयों से निपटना ही होगा। इसके साथ ही समिति ने कई और अहम सिफारिशें की हैं। जैसे, डीम्ड विश्वविद्यालय की जगह सिर्फ विश्वविद्यालय शब्द का प्रयोग, नियामक के कामकाज व अधिकारों में किसी तरह का टकराव न पैदा हो, उच्च शिक्षा संस्थानों को उद्योगों के साथ अपने जुड़ाव और वर्तमान स्थिति की समीक्षा करनी चाहिए और उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों की कमी को दूर करने और पर्याप्त और योग्य शिक्षकों की तैनाती के लिए शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में सुधार करना चाहिए। इस समय देश में उच्च शिक्षा को विश्वस्तरीय बनाया जाना जरूरी है। मेरे तजुर्बे के बस्ते में कुछ सुझाव हैं। राज्यों में उच्च शिक्षा के लिए आउटपुट आधारित फंडिंग को बढ़ावा दिया जाए। केंद्र की ओर से दी जाने वाली धनराशि में राज्य में संस्थानों की संख्या, काम का बोझ और मानकों के अनुरूप परिणाम को देखकर फंडिंग तय की जाए। संस्थानों में मानकों के अनुरूप शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए प्रदर्शन आधारित फंडिंग को भी बढ़ावा दिया जाए। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत प्रस्तावित सुधारों, संस्थानों की ओर से संबद्धता, शैक्षणिक और परीक्षा संबंधी सुधारों के प्रयास को अहमियत दी जाए। गुणवत्तापूर्ण संकाय और हर स्तर पर क्षमता निर्माण के प्रयासों को तरजीह दी जाए। समानता और सभी तक शिक्षा की पहुंच के प्रयासों को अहमियत दी जाए। रिसर्च और अध्यापन को अलग करने के लिए अनेक प्रयासों की जरूरत है। बदलते समय के साथ लचीले पाठ्यक्रम की भी आवश्यकता है।
पाठ्यक्रम तय करने और कौशल विकास में नियोक्ता की भागीदारी बढ़ानी चाहिए। इसके अलावा अंतर-विषयी शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराए जाने चाहिए। गुणवत्तायुक्त अध्यापन की कमी, पुराने पड़ चुके पाठ्यक्रम और पुरानी शिक्षण विधि ने प्रशिक्षित फैकल्टी की कमी की समस्या को और बढ़ाया ही है। छात्रों को विभिन्न तरह की स्किल विकसित करने के पर्याप्त अवसर मिलने चाहिए। इनमें एनालिटिकल रीजनिंग, क्रिटिकल थिंकिंग, प्रॉब्लम सॉल्विंग और कोलैबोरेटिव वर्किंग जैसी स्किल शामिल हैं। इनकी पढ़ाई और इनका मूल्यांकन इस तरह हो कि छात्रों को रटना न पड़े। बहु-विषयी रिसर्च के अवसर न होने के कारण विज्ञान और समाजशास्त्र, दोनों में क्वालिटी रिसर्च की कमी है। इससे उद्योगों के साथ जुड़ाव प्रभावित हुआ है। कोविड-19 के समय में जब शारीरिक दूरी एक नई जरूरत बन गई है, ऑनलाइन संसाधनों और रिमोट लर्निंग टूल का इस्तेमाल ज्यादा प्रासंगिक हो गया है। फैकल्टी को इस तरह प्रशिक्षित किया जाना चाहिए कि वे उत्साही, इनोवेटिव और प्रयोगधर्मी रहें तथा पढ़ाने में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करने में सक्षम हों। गवर्नेंस के मौजूदा मॉडल से उच्च शिक्षा संस्थानों की स्वायत्तता प्रभावित होती है। इसका एक कारण तो यह है कि सरकार और नियामक विश्वविद्यालयों के छोटे-छोटे कामों में भी हस्तक्षेप करना चाहते हैं। इसके अलावा क्वालिटी सुनिश्चित करने की कमजोर व्यवस्था, संस्थानों के प्रदर्शन से उनकी फंडिंग को न जोडऩे और पारदर्शी व्यवस्था न होने से भी समस्याएं बढ़ी हैं। उच्च शिक्षा में पेशेवर मैनेजमेंट के जरिए उत्कृष्टता हासिल करने के लिए नए गवर्नेंस मॉडल की आवश्यकता है जिसमें पारदर्शिता, समानता, जवाबदेही और समावेशिता जैसी विशेषताओं को शामिल किया जाना चाहिए। उच्च शिक्षा संस्थानों के कुलपति, डायरेक्टर, रजिस्ट्रार और अन्य सचिवालय कर्मी शैक्षणिक प्रशासकों में शुमार किए जाते हैं, जिनके लिए अभी पेशेवर और प्रशासनिक प्रशिक्षण की व्यवस्था उपलब्ध नहीं है।
इन संस्थानों में पेशेवर मैनेजमेंट की कमी होती है, जिसे बदला जाना चाहिए। कुलपति को लीडरशिप प्रोग्राम में और अन्य प्रशासनिक कर्मचारियों को औपचारिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों में शिरकत करना चाहिए। अभी उच्च शिक्षा संस्थानों में गवर्नेंस के जो मॉडल अपनाए जाते हैं, उनसे भर्ती, प्रशिक्षण और अच्छे प्रशासकों तथा शिक्षकों को जोड़े रखने की प्रक्रिया प्रभावित होती है। इन संस्थानों को अकादमिक और प्रशासनिक दोनों क्षेत्रों में मानव संसाधन प्रबंधन के लिए अलग विभाग खोलने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। अकादमिक प्लानिंग, भर्ती की बेहतर व्यवस्था, अच्छे कर्मचारियों को जोड़े रखने की रणनीति, कर्मचारियों का विकास और उनका प्रशिक्षण, व्यक्तिगत और प्रोफेशनल काउंसिलिंग जैसे कदम उठाए जाने चाहिए। गुणवत्तापूर्ण पठन-पाठन और रिसर्च पर फोकस करने के लिए एक प्रभावी शिकायत निवारण व्यवस्था होनी चाहिए जो छात्रों और कर्मचारियों की सुरक्षा और सुविधाओं तथा अन्य मामलों में शिकायतों का समाधान कर सके। गूगल और व्हाट्सऐप जैसे सोशल मीडिया तथा इंटरनेट का इस्तेमाल अध्ययन-अध्यापन में नियमित रूप से किया जाना चाहिए। इससे छात्रों और शिक्षकों दोनों को फायदा होगा। सामान्य और ऑनलाइन क्लास के मिश्रित रूप पर फोकस होना चाहिए। यह रणनीति अपनाने पर शिक्षकों का प्रशिक्षण तथा क्षमता विकास आवश्यक होगा। ऊंची सोच, नतीजा आधारित अध्ययन और मिश्रित अध्ययन जैसे नए तरीके अपनाने से अध्यापन ज्यादा प्रभावी होगा। अध्ययन का अनुभव बेहतर बनाने और दूसरी भाषा के छात्रों की समस्याओं का उनकी शैली तथा भाषा के अनुरूप समाधान करने के लिए पठन-पाठन व्यवस्था को छात्र केंद्रित बनाया जाना चाहिए।
इसे बेहतर बनाने के लिए वीडियो, फिल्म क्लिप, टीवी क्लिप, एनिमेशन, एलएमएस, मूडल, ऑनलाइन अटेंडेंस व्यवस्था तथा अन्य तरीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है। प्रौद्योगिकी और शिक्षा को जोडऩे के लिए ओपन सोर्स टूलकिट का प्रयोग हो सकता है। सरकार को विश्वविद्यालयों में अध्यापन से जुड़ी समस्याओं के समाधान तथा शिक्षकों के लिए प्रौद्योगिकी आधारित सॉल्यूशन विकसित करने के मकसद से उच्च शिक्षा अनुसंधान एवं विकास केंद्र स्थापित करने चाहिए। ये केंद्र विश्वविद्यालय तथा उनसे संबद्ध कॉलेजों के अध्यापकों को समय-समय पर प्रशिक्षण देते रहेंगे ताकि वे दुनिया भर में हो रहे विकास से अपने आपको वाकिफ रख सकें। यह महत्त्वपूर्ण है कि सभी उच्च शिक्षा संस्थानों में अत्याधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर हो। शिक्षकों और छात्रों, दोनों के कौशल और अध्ययन प्रक्रिया को बेहतर बनाने के लिए प्रौद्योगिकी (वीडियो, आइसीटी ओपन रिसोर्स, सेल्फ लर्निंग माड्यूल आदि) के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। फैकल्टी को प्रौद्योगिकी विकास की पूरी जानकारी होनी चाहिए ताकि वे अपनी अध्यापन क्षमता में भी सुधार कर सकें। भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली दुनिया की सबसे बड़ी होने के बावजूद इसे अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। ये चुनौतियां पठन-पाठन की गुणवत्ता, सरकारी-निजी भागीदारी, विदेशी संस्थानों का प्रवेश, रिसर्च क्षमता में वृद्धि और फंडिंग, इनोवेशन, अंतरराष्ट्रीयकरण, वैश्विक अर्थव्यवस्था की बदलती मांग जैसे क्षेत्रों में हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए उच्च शिक्षा को विश्वस्तरीय बनाना आवश्यक है।