राजनैतिकशिक्षा

सिख भाइयों के देश प्रेम, त्याग का मुकाबला मोदीजी के जुमलेबाजी से…!

-नईम कुरेशी-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

1947 में आजादी की लड़ाई में सरदार भगत सिंह के साथ पूरे देश भर में सबसे ज्यादा पंजाब, हरियाणा के लोगों ने ही बलिदान किया था कोई दो हजार लोगों को अकेले उस दौर में फांसी पर चढ़ाया गया था। उसमें से 1805 लोग अकेले पंजाब से थे जिनकी प्रेरणा भगत सिंह व उनकी विचारधारा के लोग थे। सरदार भगत सिंह समाजवादी दर्शन से प्रभावित थे। वो शोषण व पूंजीवादी व्यवस्था के कड़ाई से खिलाफ थे जो उन्हें विरासत में मिला था। पंजाब में 10 सिख गुरुओं ने अपने अनुयाइयों को जो सबसे बड़ी दौलत दी है वो उनका पक्का व सच्चा ईमान जो 99 फीसद तक सिख व पंजाबी मित्रों में सहजता से देखा जा सकता है। काश गांधी नेहरू ने भगतसिंह के विचार पर भी कुछ गौर किया होता तो देश में बेरोजगारी, महंगाई व किसानों के लिए बनाये गयेकाले कानूनों के चलते आज जब पंजाब, हरियाणा, यू.पी., राजस्थान, महाराष्ट्र के किसानों को 40 दिन से अपने घरों को छोड़कर दिल्ली के दरवाजों पर धरना आंदोलन न करना पड़ता। जैसे 1975 में इन्द्रा गांधी ने देश में आपातकाल लगाकर आम देशवासियों को जेलों में ठूँस दिया था और कांग्रेस को राजा रानियों के हाथ बेच दिया था। वही हाल बल्कि इससे भी ज्यादा आज की मोदी सरकार व उसकी सूबाई सरकारें किसानों के साथ कर रही हैं पर ये किसान सरदार भगत सिंह की तरह अटल व मजबूत इरादे वाले मेहनतकश व ईमानदार किसान हैं जो डरते नहीं हैं बिकते नहीं हैं।
मोदी सरकार एन.आर.सी., एसी.ए.ए. जैसे काले कानूनों के माध्यम से देश में मनुवादी कानून लादने की भूमिका बनाने जा रही है। जिसे देश के छात्रों ने नौजवानों, दलितों, पिछड़ों ने कमजोर तब्के वालों ने नकार दिया। देश के आई.आई.टी. संस्थानों के छात्रों से लेकर 100 से भी ज्यादा विश्वविद्यालयों टेक्नीकल संस्थानों मेडिकल संस्थानों के छात्रों ने इन काले कानूनों का डटकर विरोध किया। अकेले उत्तर प्रदेश में ही योगी सरकार की पुलिस ने 28 युवाओं की जान ले ली थी व डॉ. कफील की तरह हजारों जवानों को जेलों में डाल दिया था। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी के बिरादरी वालों ने तमाम दलित व पिछड़ी जाति की युवतियों को अपनी हवस का शिकार बनाया। इसमें उसके तमाम सेंगर सिंह जैसे विधायक भी शामिल रहे थे। जिन्हें योगी व उनकी पुलिस आखिरी दौर तक बचाते रहे थे। चन्द मीडिया वालों व सर्वोच्च न्यायालय से उन्हें कुछ राहत मिल सकी।

पूंजीवाद के खिलाफ किसान आंदोलन

आज भी मोदी सरकार अपने किसानों के लिए बनाये गये काले कानूनों को लागू कराने व अपने पूंजीपति दोस्तों अम्बानी, अडानी, रामदेव को फायदा पहुंचाने के लिए इन कानूनों को वापस न लेने पर अड़ी हुई है। लाखों किसान 4 महीनों से आंदोलनरत इतनी सर्दी में मजबूत इरादों से दिल्ली में जमें हैं कि मोदी सरकार व उसके वजीरों सांसदों को सर्दी में भी सरेआम पसीना आ रहा है। विपक्षी दल जरूर अभी भी इस आंदोलन में मजबूती से नहीं जुड़ पाये हैं पर अब उन्हें शर्म से इस सच्चे आम आदमी के आंदोलन से जुड़ना पड़ेगा। ये देश दुनिया का महान किसान आंदोलन बन पड़ा है। पूरे देशभर के 28
राज्यों में से लगभग 20 राज्यों के किसान इससे जुड़ चुके हैं क्योंकि ये आंदोलन आम जनता के लिए जीने मरने का आंदोलन बनता दिखाई दे रहा है। आंदोलन के चलते एन.डी.ए. के कई घटक दल मोदी का साथ छोड़ चुके हैं और कई अन्य सियासी दल उनका साथ छोड़ने का मन बनाते दिखाई दे रहे हैं। इस आंदोलन की जांच बंगाल चुनावों में भी देखी जा रही है। सियासी पंडितों का मानना है कि ‘गोदी मीडिया’ की दम पर भा.ज.पा. बंगाल में चुनाव जीतना चाह रही है पर बंगाल रविन्द्रनाथ टैगोर व ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, काजी नजरूलइस्लाम जैसे महान संत व समाजवादी विचारकों का इलाका है। ये कोई बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश जैसा बीमारू इलाका नहीं है। बंगाल के दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक, मुसलमान ममता बनर्जी के साथ बताये जा रहे हैं जो 60 फीसद से भी ज्यादा हैं।

मोदी का वाटरलू किसान आंदोलन

भारत का 2020 का किसान आंदोलन आजादी के दौर का स्वतंत्रता आंदोलन से कुछ कम नहीं है। जिसमें बूढ़े, बच्चे, नौजवानों व महिलायें सब शामिल थे। इन किसानों के साथ सभी देशवासियों की सहानुभूति बढ़ती जा रही है। अब ये आंदोलन सिर्फ पंजाब, हरियाणा, यू.पी. राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात भर का नहीं रह गया। इसकी चिंगारी दक्षिण में तमिलनाडु व केरला तक फैल चुकी है। देश को हिन्दू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद में बांटने की चालों में फंसाकर सत्ता पर काबिज होने वाली भारतीय जनता पार्टी व संघ परिवार की अब सब चालें उलटी पड़ती देखी जा रही हैं। भीमाकोरेगांव, नक्सली आंदोलनों, लव जिहाद, गौमाता के संरक्षण की आड़ में मोदी-शाह कम्पनी वालों की पोलें अब उनके गुजरात में ही खुलने लगी हैं। जब गुजरात के किसान व मजूर भी दिल्ली आकर किसान आंदोलन से जुड़ चुके हैं। बेरोजगारी, महंगाई, महिला व दलित अत्याचारों की तरफ से आम जनता का ध्यान बांटने हेतु ही लव जिहाद का मामला भा.ज.पा. सरकारें चला रही हैं। उनकी पुलिस पहले से ही आम गरीबों दलितों पर अत्याचार करती आ रही है। अब इस लव जिहाद की आड़ में कुछ कट्टरवादी तथाकथित हिन्दूवादी नौजवानों को हरियाणा, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश की तरह भा.ज.पा. प्रमाण पत्र बांटकर समाज में नफरत व हिंसा फैलाने का मंसूबा बना रही हैं। पिछड़ी व दलित जातियों को सैकड़ों गुटों में बांटने का उन्हें गुमराह करने का षड्यंत्र देश में किया जा रहा है। जबकि याद रखना होगा कि भारत देश गौतम बुध, महावीर, डॉ. अम्बेडकर, कबीर, नानक की विचारधारा का देश है। ये ओछी राजनीति करने वालों के विचार महज बुलबुलों जैसे हैं जो पानी में उड़ाये जाते हैं। चन्द छड़ों व महज कुछ मिनटों में वो गायब हो जाते हैं। भारत का किसान आंदोलन आस्ट्रेलिया, इंग्लैण्ड, अमेरिका, कनाडा, योरोप तक पहुंच गया है। ये मोदी सरकार के लिए नेपोलियन के वाटरलू जैसा माना जा सकता है। जैसे विश्वविजेता बनने का सपना देखने वाले नेपोलियन बानापाट के सामने एकाएक वाटरलू युद्ध मैदान आ जाता है जहां वो चारों खाने चित होकर बुरी तरह हार जाने को मजबूर हो जाता है।

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