राजनैतिकशिक्षा

आठ फीसदी विकास दर

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के अर्थशास्त्रियों का आकलन है कि मौजूदा वित्त वर्ष 2023-24 में जीडीपी की विकास दर 8 फीसदी हो सकती है। यह वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) के आंकड़ों से ही स्पष्ट है। हालांकि देश पर कुल कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है, क्योंकि राज्यों का यह बोझ 76 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। करीब 60 फीसदी कर्ज बढ़ा है। खुदरा महंगाई दर 8 फीसदी से कम दिखाई दे रही है, लेकिन सब्जियों, दालों, दूध, चावल, आटा आदि की कीमतें बढऩे के कारण महंगाई का सूचकांक 38 फीसदी तक उछला था। अब तो प्रधानमंत्री मोदी ने भी चिंता और सरोकार जताए हैं और महंगाई को लगातार कम करने की कोशिशों के प्रति देश को आश्वस्त किया है। जब ‘राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय’ जीडीपी और आर्थिक विकास दर के आंकड़े जारी करेगा, तब अर्थव्यवस्था के विकास का यथार्थ और भी स्पष्ट होगा, लेकिन जिस तरह कोर सेक्टर की गतिविधियां दिख रही हैं, उनकी मांग और खपत में बढ़ोतरी जारी है और खासकर बुनियादी ढांचे के क्षेत्रों में निवेश के संकेत मिल रहे हैं, उनसे साफ है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर विश्व में सर्वाधिक हो सकती है। आरबीआई का अध्ययन स्पष्ट करता है कि भारत की आर्थिक गति स्थिर और निरंतर बनी रहेगी, जबकि वैश्विक अर्थव्यवस्था की गति धीमी है। भारत की विकास दर अमरीका, चीन और यूरोपीय देशों से भी अधिक होगी।

ये वाकई सुखद संकेत हैं, लेकिन देश में अमीर व्यक्ति ज्यादा अमीर हो रहा है, गरीब मध्य श्रेणी में परिणत हो रहा है, लेकिन गरीब की आय नहीं बढ़ पा रही है। क्या अर्थव्यवस्था की विकास दर अमीरों की आर्थिक बढ़ोतरी की ही संकेतक है? बेशक निर्यात का कारोबार जुलाई में करीब 16 फीसदी कम हुआ है और इस सिकुडऩ के आसार लगातार बने रहे हैं, उसके बावजूद निजी मांग, निजी खपत और निजी निवेश में बढ़ोतरी जारी रही है। ये अर्थव्यवस्था के उत्साहवर्धक संकेत हैं, लेकिन बेरोजगारी लगातार बढ़ी है, तो मांग, खपत और निवेश के आंकड़े सवालिया लगते हैं। यदि निजी निवेश में भी उद्योगपति वर्ग शामिल है, तो यह विकास दर ‘राष्ट्रीय’ नहीं कही जा सकती। गिनवाया जा रहा है कि बंदरगाहों पर कार्गो और रेलवे मालभाड़ा आदि के आंकड़े जुलाई में बढ़े हैं। बेशक इस्पात, सीमेंट सरीखे कोर क्षेत्रों की खपत में स्वस्थ बढ़ोतरी दिखाई दे रही है, लेकिन ऑटोमोबाइल्स की बिक्री, तिपहिया के अपवाद के बावजूद, कमजोर रही है। गैर-तेल का आयात भी बीते साल की तुलना में कम किया गया है। ये संकेतक साफ करते हैं कि अर्थव्यवस्था में कमियां भी व्याप्त हैं। क्या इन कमजोरियों और आम आदमी की भूमिका के बिना विकास दर 8 फीसदी की बुलंदी को छू सकती है?

भारत में औसतन प्रति व्यक्ति आय करीब 1.75 लाख रुपए सालाना है। यह भी देश की स्थिति है कि करोड़ों लोग आज भी 375 रुपए रोजाना कमाने में असमर्थ हैं, तो सकल विकास दर 8 फीसदी तक कैसे पहुंच सकती है? यह भी आरबीआई की रपट में सामने आया है कि मनरेगा के तहत काम की मांग पिछले साल की तुलना में ज्यादा सामने आई है, लिहाजा स्पष्ट है कि भारतीय आबादी में आज भी ऐसे लोग मौजूद हैं, जिनके पास मनरेगा सरीखा भी रोजगार नहीं है, लिहाजा वे मनरेगा में मजदूरी की मांग कर रहे हैं। बहरहाल एक तस्वीर यह भी है कि जिन 982 परियोजनाओं में निवेश की योजनाएं तैयार की गई थीं, उनमें करीब 60 फीसदी ऐसी हैं, जो बुनियादी ढांचे के क्षेत्रों की हैं। इन परियोजनाओं को ज्यादातर बैंक और वित्तीय संस्थान ही पूंजी मुहैया कराते हैं। क्या इसी को निजी निवेश कहा जा रहा है? इस क्षेत्र में ऊर्जा, सडक़ें, पुल, विशेष आर्थिक क्षेत्र, औद्योगिक बॉयोटेक और सूचना प्रौद्योगिकी पार्क आदि की परियोजनाएं ही आती हैं। उप्र, गुजरात, ओडिशा, महाराष्ट्र और कर्नाटक ऐसे पांच राज्य हैं, जहां 50 फीसदी से अधिक का निवेश किया जा रहा है। बहरहाल ये आर्थिक गतिविधियां और निवेश बेहतर संकेत हो सकते हैं, लेकिन मंजिल अभी दूर है।

 

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