राजनैतिकशिक्षा

सत्तर साल चर्चिल सही नहीं मगर अब मोदी राज में है!

-शकील अख़्तर-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

सत्तर साल में क्या किया, सत्तर साल में क्या किया का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रात दिन हल्ला करते रहते हैं। मगर इस देश ने और देश के प्रधानमंत्रियों ने सत्तर साल तकचर्चिल की बात सही साबित नहीं होने दी। प्रेम, भाईचारे, समावेश से देशचलाया। लेकिन पिछले 9 सालों में सिर्फ और सिर्फ नफरत बोई गई। जनता कोविभाजित किया गया। धर्म के नाम पर खानपान के नाम पर, कल्चर के नाम पर औरयहां तक की श्माशान और कब्रिस्तान के नाम पर। सत्तर साल तक सरकारें चर्चिल को गलत साबित करती रहीं मगर नरेन्द्र मोदी सरकार चर्चिल की कही बातों को सहीसाबित करते हुए है।

आग मणिपुर से मिजरोम पहुंच गई है और आंच पूरी दुनिया में। यूरोपियन यूनियन ने मणिपुर पर प्रस्ताव पास किया है और ब्रिटेन की संसद में भी मणिपुर कामामला उठा। अमेरिका के भारत स्थित राजदूत मणिपुर में मदद के लिए बोल रहे हैं।और जो नहीं बोल रहे वह यह है कि आप कुछ नहीं कर पा रहे हैं। विदेशी अख़बार मणिपुर की रोंगटे खड़े कर देने वाली खबरों से भर पड़े हैं।

नग्न महिलाओं के वीडियो को सरकार ने भारत में बैन कर दिया मगर पूरी दुनिया में शर्म के साथलानतें देते हुए देखा जा रहा है। तभी लगता है ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे विंस्टनचर्चिल की वह बात पहले की सत्तर साल रहीं सरकारों ने सही साबित नहीं होनेदिया कि कि भारत आजादी के योग्य नहीं है। यहां के नेता अपने स्वार्थों के लिएलोगों को बुरी तरह विभाजित कर देंगे तथा देश को गृह युद्ध में झौंकदेंगे। यह हमने बहुत संक्षेप में चर्चिल के वाक्य में मैंने सभ्य भाषा में लिखे है जबकि च्रर्चिल नेबहुत विस्तार से और गंदे-अशोभनीय शब्दों का प्रयोग किया था जिससे उस समय हरभारतीय का कलेजा चीर गए थे।

सत्तर साल में क्या किया, सत्तर साल में क्या किया का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रात दिन हल्ला करते रहते हैं। मगर इस देश ने और देश के प्रधानमंत्रियों ने सत्तर साल तकचर्चिल की बात सही साबित नहीं होने दी। प्रेम, भाईचारे, समावेश से देशचलाया। लेकिन पिछले 9 सालों में सिर्फ और सिर्फ नफरत बोई गई। जनता कोविभाजित किया गया। धर्म के नाम पर खानपान के नाम पर, कल्चर के नाम पर औरयहां तक की श्माशान और कब्रिस्तान के नाम पर। सत्तर साल तक सरकारेंचर्चिल को गलत साबित करती रहीं मगर नरेन्द्र मोदी सरकार चर्चिल की कही बातों को सहीसाबित करते हुए है।

प्रधानमंत्री डबल इंजन की सरकार, डबल इंजन की सरकार हर चुनाव में बताते थे। मगर तीन महीने होने वाले हैं और मणिपुर के हालातों का भारत के लोगों को पता ही नहीं चला? अमेरिका को, युरोपियन यूनियनको सबको पता चल गया। इसीलिए तो वीडियो आने से पहले ही वह प्रतिक्रिया करचुके थे। मगर प्रधानमंत्री मोदी ने तीन दिन पहले कहा कि मैं अभी जब संसदआ रहा था तो मुझे मालूम पड़ा।

जनता डबल इंजन के शब्द जाल में उलझी रही। यह बेसिक बात तक भूल गई किगाड़ी इंजन से नहीं ड्राइवर से चलती है। क्या हुआ डबल इंजन का? इतनीशर्मनाक घटना घट गई। महिलाओं को नग्न करके उनके साथ भयानकतम दुर्व्यवहारकरते हुए जुलूस निकाला गया। नफरत और विभाजन के नशे में उन्मत्त भीड़ साथ में, पुलिस की छत्रछाया में।

1947 को हमें विश्वास था कि देश सही हाथों में हैं। नेहरु ने आजादी कीघोषणा करते हुए अपने भाषण नियति से साक्षात्कार में जिस तरह गरीब, मजदूर, किसान की बात की थी। प्रेम और भाइचारे की बात की थी। साइंटिफिकटेम्पर (वैज्ञानिक दृष्टिकोण) की बात की थी और फिर देश में सिंचाई केलिए बड़े बांध, एम्स आईआईटी, दूसरे वैज्ञानिक संस्थान बनाए उसने चर्चिलके शब्दों की जनविरोधी नेतृत्व की भविष्यवाणी की हवा निकाल दी थी। मगर विडंबना है किहमेशा के लिए हम चर्चिल को गलत नहीं कर पाए।

मणिपुर में जो-जो घटना हुई है उसके लिए वाकई शब्द भी साथ छोड़ जाते हैं। एक उस फौजी की अस्सी साला पत्नी थी जो गर्व से सिर उठाकर इसलिए चलती थी क्योंकि उसके पति नेकारगिल में पाकिस्तानी सेना के दांत खट्टे कर दिए थे। वह उस दिन शर्म,पीड़ा से सिर झुकाए हुए थी। आजादी की लड़ाई लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानीकी पत्नी को जिन्दा जला दिया। ऐसी जाने कितनी घटनाएं हुईं हैं। हर घटनादूसरी से जघन्य। नफरत ऐसी ही चीज होती हैं। बदला लेने की ऐसी क्रूरप्रवृति भर देती है कि आदमी को कुछ भी पता नहीं होता कि वह क्या कर रहाहै। वह दोषी है। लेकिन असली दोषी वह हैं जिन्होंने उनमें यह नफरत,विभाजन, सहिष्णुता भरी।

हिन्दू मुसलमान करके वह समझ रहे थे कि यह आग बस वहीं जलेगी। मगर आग क्या सीमित रहती है!

“लगेगी आग तो आएंगे घर कई जद में

यहां पे सिर्फ हमारा हमारा मकान थोड़ी है!“

राहत इन्दौरी जब मुशायरों में यह शेर पढ़ते थे तो लगता था कि यह बस शायरीतक ही है। किसे मालूम था कि जिन्दगी में देश में यह शेर ऐसे उतर जाएगा।

जैसा ऊपर लिखा, प्रारम्भ किया जहां से कि मणिपुर की आग मिजरोम तक पहुंचगई है। वहां से उस समुदाय का पलायन शुरु हो गया है जो कूकी महिलाओं परअत्याचारों के लिए आरोपित है। मैतेई समुदाय। उसके पढ़े लिखे डाक्टर, इंजीनियर लोगों को मिजरोम छोड़ कर भागना पड़ रहा है। देश में पहले से यह विभाजनका माहौल तेजी से बढ़ता जा रहा है। विभाजन सिर्फ हिन्दू मुसलमान में नहींहै। दलित के साथ, पिछड़े के साथ, आदिवासी के साथ तो अभी मध्य प्रदेश मेंदेखा ही कि किस तरह सिर पर पेशाब किया गया और फिर पूछा गया कि सिर परपेशाब करना कौन सा अपराध है?

और यह सिर्फ समाज में कमजोर समझे जाने वाले तबकों के साथ ही नहीं है।सवर्णों में उच्च समझी जाने वाली जातियों के लोग भी इसका शिकार बन रहेहैं। नौ वर्षों में भक्तों की एक फौज तैयार हुई है, ट्रोल आर्मी इसेकिसी से मतलब नहीं है। यह एक लिंच माब है। इसे केवल लिंचिंग से मतलब है। कौनहै कौन नहीं, इसे मतलब नहीं। नफरत, बेरोजगारी, झूठे वादे ऐसी फौज तैयारकरते हैं। जो अन्तत: पूरी तरह अराजक हो जाती है। भस्मासुर बन जाती है।जिसने वर दिया था एक दिन उसको भी भस्म करने दौड़ पड़ती है।

वैसा दिन आएइससे पहले इसे पैदा करने वालों को सचेत हो जाना चाहिए। और खुद को और देशको बचा लेना चाहिए। पता नहीं करेंगे या नहीं? अभी तो जिस तरह मणिपुर कीघटना की तुलना में दूसरे राज्यों की घटनाएं पेश कर रहे हैं उससे तो लगतानहीं कि वे कुछ समझने को तैयार हैं। संसद में इस पर चर्चा कराने के बदलेविपक्ष के सांसदों को बेशरम नामर्द कहा जा रहा है। अरे चर्चा शार्टड्यूरेशन क्यों होना चाहिए? क्या यह छोटी घटना है? फूल डिस्कशन क्योंनहीं होना चाहिए? जैसा विपक्ष राज्यसभा में मांग कर रही है। नियम 267 मेंदिन भर चर्चा हो सकती है। वोटिंग भी हो सकती है। मगर सरकार 176 में छोटीचर्चा की बात कर रही है।

अरे छोटी घटना होती तो देश सब्र कर लेता। घटना तो पुलिस की मौजूदगीमें इतनी बड़ी हुई कि दुनिया थू थू कर रही है। मगर सरकार और भाजपा वीडियोके टाइमिंग और चर्चा के नियम पर सारा ज्ञान दे रहे हैं। मीडिया भी पहलेएक दिन वीडियो के आने के बाद घबरा गया था। मगर फिर सरकार के साथ आ गयाहै। और विपक्ष पर सवाल उठाने लगा है। खुद प्रधानमंत्री विपक्ष के इंडिया नाम पर ही हमला करने लगे।

मुद्दा विपक्षी गठबंधन का नाम (इंडिया) नहीं है। वीडियो नहीं, चर्चा का नियमनहीं। वह वीभत्स घटना है जिसे ढाई महीने तक छुपा कर रखा गया। अभी जानेऐसी कितनी घटनाएं और हुईं होगी। इन्टरनेट पर वहां बैन लगा रखा है। मगरउससे घटनाएं सामने आने में देर हो सकती है। घटनाएं रुक थोड़ी सकती हैं।वह तो मेल मिलाप करने से रुकेंगी। नफरत का प्रसार रोकना पड़ेगा।

देश बहुत बड़ा है। बहुत विविधता वाला। यहां आप कपड़ों से पहचानने की बातकरते हैं? और लोग कपड़े ही उतार देते हैं। महिलाओं को नग्न करके जुलूसनिकालते हैं।

चलिए राज्यसभा में तो नियम पर अड़ गए आप। लेकिन लोकसभा में तो बयान दे हीसकते हैं। विपक्ष यही मांग कर रहा है कि प्रधानमंत्री आएं सच्चाई बताएं।इसमें क्या प्राब्लम है? वे कहते हैं कि 2014 से पहले भारत में पैदा होनाशर्म की बात थी। और कहां कहा था विदेश में कहा था। तो अब दुनिया भी सवालपूछ रही है।

और जवाब गृह मंत्री से नहीं प्रधानमंत्री से चाहते हैं। दुनिया भी और देश भी।

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