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मठ मंदिरों के दान से चलेंगी अब गौशालायें

-सनत जैन-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

मध्य प्रदेश सरकार, गौशालाओं के लिए पर्याप्त धन उपलब्ध नहीं करा पा रही है। कई गौशालाओं को तीन-तीन महीने तक अनुदान नहीं मिलता है। कई गौशालाओं को 3 साल में एक बार, कई गौशालाओं को साल में 1 बार ही आर्थिक सहायता दी जा रही हैं। जिसके कारण मध्यप्रदेश के गौशालाओं की आर्थिक स्थिति बड़ी खराब है। गायों को ना तो पर्याप्त चारा मिल पाता है। नाही बीमार होने पर उनका कोई उपचार किया जा सकता है। जिसके कारण समय-समय पर बड़ी मात्रा में गायों के मरने की भी सूचना प्राप्त होती है। जुलाई माह में मंदिरों को लेकर दो बड़े संवाद हो रहे हैं। दोनों में सरकार की नजर मंदिर मठों मैं होने वाली आय पर लगी हुई है। बनारस में सभी हिंदू मंदिरों के व्यवस्थापकों को बुलाया गया है। इस कार्यक्रम का नेतृत्व संघ प्रमुख मोहन भागवत कर रहे हैं। वहीं मध्य प्रदेश गौ संवर्धन बोर्ड के प्रबंध संचालक ने मध्य प्रदेश के सभी जिलों के कलेक्टर को पत्र लिखकर प्रारूप में जानकारी मांगी है। कलेक्टरों से जो जानकारी मांगी गई है। उसमें संबंधित मठ और मंदिर की संस्था का नाम, व्यवस्थापक का नाम, कौन संचालन कर रहा है। ट्रस्ट और समिति सदस्यों की जानकारी, संस्था के पास उपलब्ध जमीन, अथवा भवन, मठ और मंदिर की वार्षिक आय का ब्यौरा कलेक्टर के माध्यम से माँगा गया है।
प्राप्त सूचना के अनुसार मुख्यमंत्री गौ-सेवा योजना से प्रदेश भर में गौशालाओं का संचालन किया जायगा। प्रत्येक गौशाला को प्रति गोवंश के अनुसार तय राशि दिए जाने की व्यवस्था वर्तमान में है। गौशालाओं को उनकी गायों की क्षमता के अनुसार प्रतिमाह राशि नहीं दी जा रही है। जिससे आर्थिक संकट के कारण गौशालाओं की स्थिति बहुत खराब है। यह अकेले मध्यप्रदेश की स्थिति नहीं है। लगभग सभी राज्यों में गौशालाओं को लेकर यही स्थिति देखने को मिलती है। गौशालाओं को अब मंदिर और मठों से जोड़कर, उनके संचालन में होने वाले खर्च के लिए,मंदिर और मठों को जिम्मेदारी देने पर सरकार सोच रही है। बनारस में भी मंदिर प्रमुखों का महाकुंभ चल रहा है। उसके पीछे भी मंदिरों और मठ में जो आय होती है। उनकी जो संपत्ति है। उस को किस तरह से सरकार उपयोग में ला सकती है। सरकार के पास अभी तक जो जानकारी एकत्रित हुई है। उसके अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर मंदिरों में 3। 28 लाख करोड़ रूपए की वार्षिक आय होती है। सरकार इस आय के माध्यम से गरीबों को निशुल्क या रियायती दर पर खाना, गौशालाओं के संचालन, शिक्षा संस्थानों और स्वास्थ्य के क्षेत्र में मंदिरों की आय का सामान रूपी बटवारा हो। धार्मिक पर्यटन की संभावनाओं को बढ़ाकर मंदिरों की आय में वृद्धि करने जैसी कई योजनाएं केंद्र सरकार बना रही है।
भारत के सभी तीर्थ क्षेत्र और महत्वपूर्ण मंदिरों को अंतरराष्ट्रीय स्तर के मानदंडों पर तैयार करके, धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने की योजना केंद्र सरकार की है। राज्य सरकारों, विशेष रुप से भाजपा शासित राज्य सरकारों में धार्मिक स्थलों को लेकर सक्रियता बढ़ गई है। भाजपा हिंदुत्व की पार्टी है। ऐसी स्थिति में भाजपा मंदिरों के सहारे राजनीति के क्षेत्र में और आम जनता से जुड़ने के लिए मठ और मंदिरों का उपयोग करने की रणनीति पर काम करती हुई नजर आ रही है। साधु संतों द्वारा पूर्व में कई बार इसका विरोध भी किया गया है। मठ और मंदिरों में सरकारी हस्तक्षेप लगातार बढ़ता जा रहा है। मंदिरों की जमीनों पर अवैध कब्जे हो रहे हैं। मंदिरों के ट्रस्ट में राजनेता और सरकारी अधिकारियों को सर्वो-सर्वा बनाया जा रहा है। इसका विरोध लगातार पंडे पुजारी और मंदिरों के व्यवस्थापक कर रहे हैं। केंद्र एवं राज्य सरकारें इस समय बड़े कर्ज संकट से जूझ रही हैं। पिछले एक दशक में टैक्स राज्य और केंद्र सरकार द्वारा काफी बढ़ा दिए गए हैं। टैक्स बढ़ाने की गुंजाइश अब लगभग लगभग खत्म हो चली है। ऐसी स्थिति में सरकार का ध्यान अब मंदिरों की संपत्ति और उनकी आय पर चला गया है। इसकी परिणति किस रूप मे सामने आएगी। इसको लेकर हिंदू धर्म के आचार्यों तथा साधु-संतों के बीच अटकलों का दौर चल पड़ा है। बहरहाल, मध्यप्रदेश में गौशाला संचालन की जिम्मेदारी जल्द ही मंदिरों के अधीन की जाएगी। इस बात के स्पष्ट संकेत मिलना शुरू हो गए हैं।

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