चिंता का सबब बनते बार-बार लगते भूकम्प के झटके
-योगेश कुमार गोयल-
-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-
देश की राजधानी दिल्ली में अप्रैल माह के बाद से बार-बार भूकम्प के झटके महसूस किए जा रहे हैं। 17 दिसम्बर को देर रात इस क्षेत्र में 4.2 तीव्रता का भूकम्प आया था, हालांकि उससे जान-माल का कोई नुकसान नहीं हुआ। अब एक सप्ताह के भीतर 25 दिसम्बर की सुबह करीब पांच बजे दिल्ली में रिक्टर पैमाने पर 2.3 तीव्रता के भूकम्प से दिल्ली फिर कांपी। दिसम्बर की शुरूआत में भी 2 दिसम्बर की सुबह दिल्ली-एनसीआर में 2.7 तीव्रता के भूकम्प के झटके महसूस किए गए थे। पिछले छह महीनों में ही उत्तर भारत में कई हल्के भूकम्प आए हैं, जो हिमालय क्षेत्र में किसी बड़े भूकम्प की आशंका को बढ़ा रहे हैं। दरअसल वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसे कई छोटे भूकम्प बड़ी तबाही का संकेत होते हैं। यही कारण है कि अप्रैल के बाद से दिल्ली-एनसीआर में भूकम्प के बार-बार लग रहे झटके चिंता का सबब बने हैं। इस अंतराल में इस क्षेत्र में भूकम्प के करीब डेढ़ दर्जन झटके लग चुके हैं। बार-बार लग रहे भूकम्प के झटकों के मद्देनजर दिल्ली-एनसीआर इलाके में आने वाले दिनों में किसी बड़े भूकम्प का अनुमान लगाया जा रहा है। पिछले कुछ दशकों में दिल्ली-एनसीआर की आबादी काफी बढ़ी है और ऐसे में 6 तीव्रता का भूकम्प भी यहां भारी तबाही मचा सकता है।
कुछ समय पहले भी वैज्ञानिक हिमालय में बड़े भूकम्प की आशंका जताते हुए कह चुके हैं कि हिमालय पर्वत श्रृंखला में सिलसिलेवार भूकम्पों के साथ कभी भी बड़ा भूकम्प आ सकता है, जिसकी तीव्रता रिक्टर पैमाने पर आठ या उससे भी अधिक हो सकती है। इससे हिमालय के आसपास घनी आबादी वाले क्षेत्रों में भारी तबाही मच सकती है और दिल्ली भी इसकी जद में होगी। नेशनल सेंटर ऑफ सिस्मोलॉजी (एनसीएस) के पूर्व प्रमुख डा. ए के शुक्ला के अनुसार दिल्ली को हिमालयी बेल्ट से काफी खतरा है, जहां 8 की तीव्रता वाले भूकम्प आने की भी क्षमता है। दिल्ली से करीब दो सौ किलोमीटर दूर हिमालय क्षेत्र में अगर सात या इससे अधिक तीव्रता का भूकम्प आता है तो दिल्ली के लिए बड़ा खतरा है। हालांकि ऐसा भीषण भूकम्प कब आएगा, इस बारे में वैज्ञानिकों का कहना है कि इसका कोई सटीक अनुमान लगाना संभव नहीं है। दरअसल भूकम्प के पूर्वानुमान का न तो कोई उपकरण है और न ही कोई मैकेनिज्म। दिल्ली में बड़े भूकम्प के खतरे को देखते हुए भारतीय मौसम विभाग के भूकम्प रिस्क असेसमेंट सेंटर द्वारा कुछ माह पूर्व ही दिल्ली-एनसीआर में इमारतों के मानक में शीघ्रातिशीघ्र बदलाव किए जाने का परामर्श दिया जा चुका है। राष्ट्रीय भू-भौतिकीय अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई) के वैज्ञानिकों के मुताबिक दिल्ली-एनसीआर में आ रहे भूकम्पों को लेकर अध्ययन चल रहा है। उनका कहना है कि इसके कारणों में भू-जल का गिरता स्तर भी एक प्रमुख वजह सामने आ रही है, इसके अलावा अन्य कारण भी तलाशे जा रहे हैं। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या दिल्ली की ऊंची-ऊंची आलीशान इमारतें और अपार्टमेंट किसी बड़े भूकम्प को झेलने की स्थिति में हैं?
विशेषज्ञों के अनुसार दिल्ली में बार-बार आ रहे भूकम्प के झटकों से पता चलता है कि दिल्ली-एनसीआर के फॉल्ट इस समय सक्रिय हैं और इन फॉल्ट में बड़े भूकम्प की तीव्रता 6.5 तक रह सकती है। इसीलिए विशेषज्ञ कह रहे हैं कि बार-बार लग रहे भूकम्प इन झटकों को बड़े खतरे की आहट मानते हुए दिल्ली को नुकसान से बचने की तैयारियां कर लेनी चाहिएं। दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में निरन्तर लग रहे झटकों को देखते हुए दिल्ली हाईकोर्ट भी कड़ा रूख अपना चुका है। हाईकोर्ट ने कुछ माह पूर्व दिल्ली सरकार, डीडीए, एमसीडी, दिल्ली छावनी परिषद, नई दिल्ली नगरपालिका परिषद को नोटिस जारी करते हुए पूछा था कि तेज भूकम्प आने पर लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं? अदालत द्वारा चिंता जताते हुए कहा गया था कि सरकार और अन्य निकाय हमेशा की भांति भूकम्प के झटकों को हल्के में ले रहे हैं जबकि उन्हें इस दिशा में गंभीरता दिखाने की जरूरत है। अदालत का कहना था कि भूकम्प जैसी विपदा से निपटने के लिए ठोस योजना बनाने की जरूरत है क्योंकि भूकम्प से लाखों लोगों की जान जा सकती है।
कुछ दिनों बाद मुख्य न्यायमूर्ति डीएन पटेल तथा न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की पीठ ने भी दिल्ली में भूकम्प के झटकों से इमारतों को सुरक्षित रखने के संबंध में बनाई गई योजना को लागू करने में असफल होने पर दिल्ली सरकार को लताड़ लगाई थी। दिल्ली सरकार तथा एमसीडी द्वारा दाखिल किए गए जवाब पर सख्त टिप्पणी करते हुए अदालत ने कहा था कि भूकम्प से शहर को सुरक्षित रखने को लेकर उठाए गए कदम या प्रस्ताव केवल कागजी शेर हैं और ऐसा नहीं दिख रहा कि एजेंसियों ने भूकम्प के संबंध में अदालत द्वारा पूर्व में दिए गए आदेश का अनुपालन किया हो। अदालत को ऐसी टिप्पणियां करने को इसलिए विवश होना पड़ रहा है क्योंकि दिल्ली-एनसीआर भूकम्प के लिहाज से काफी संवेदनशील है, जो दूसरे नंबर के सबसे खतरनाक सिस्मिक जोन-4 में आता है। इसीलिए अदालत को कहना पड़ा है कि केवल कागजी कार्रवाई से काम नहीं चलेगा बल्कि सरकार द्वारा जमीनी स्तर पर ठोस काम करने की जरूरत है। दरअसल वास्तविकता यही है कि पिछले कई वर्षों में भूकम्प से निपटने की तैयारियों के नाम पर केवल खानापूर्ति ही हुई है।
उल्लेखनीय है कि याचिकाकर्ता ने वर्ष 2015 में मुख्य याचिका दायर करते हुए कहा था कि भूकम्प के लिहाज से दिल्ली की इमारतें ठीक नहीं हैं और तीव्र गति वाला भूकम्प आने पर दिल्ली में बड़ी संख्या में लोगों की जान जा सकती है। हाईकोर्ट में यह याचिका अभी तक लंबित है और अदालत समय-समय पर दिल्ली सरकार और नगर निकायों को कार्ययोजना तैयार करने के निर्देश देती रही है। याचिकाकर्ता का कहना है कि कागजों पर निश्चित तौर पर बेहतर दिशा-निर्देश और अधिसूचना बनाई गई है लेकिन जमीन पर ये लागू होती दिखाई नहीं देती। हाईकोर्ट की पीठ ने प्राधिकारियों को निर्देश दिया है कि यदि दिल्ली सरकार तथा नगर निगम की कोई कार्ययोजना है तो वह इसके संबंध में आम जनमानस को बताएं ताकि वे इस गंभीर समस्या के लिए खुद को तैयार कर सकें।
दिल्ली-एनसीआर में पिछले कुछ महीनों में आए भूकम्प के झटके भले ही रिक्टर पैमाने पर कम तीव्रता वाले रहे हों किन्तु भूकम्प पर शोध करने वाले इन झटकों को बड़े खतरे की आहट मान रहे हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक संभव है कि दिल्ली एनसीआर में आ रहे हल्के भूकम्प किसी दूरस्थ इलाके में आने वाले बड़े भूकम्प का संकेत दे रहे हों। राष्ट्रीय भूकम्प विज्ञान केन्द्र के निदेशक (ऑपरेशन) जे एल गौतम के अनुसार दिल्ली-एनसीआर में जमीन के नीचे दिल्ली-मुरादाबाद फाल्ट लाइन, मथुरा फाल्ट लाइन तथा सोहना फाल्ट लाइन मौजूद है और जहां फाल्ट लाइन होती है, भूकम्प का अधिकेन्द्र वहीं पर बनता है। उनका कहना है कि बड़े भूकम्प फाल्ट लाइन के किनारे ही आते हैं और केवल दिल्ली ही नहीं, पूरी हिमालयन बेल्ट को भूकम्प से ज्यादा खतरा है।
अधिकांश भूकम्प विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली एनसीआर की इमारतों को भूकम्प के लिए तैयार करना शुरू कर देना चाहिए ताकि बड़े भूकम्प के नुकसान को कम किया जा सके। एक अध्ययन के मुताबिक दिल्ली में करीब नब्बे फीसदी मकान क्रंकीट और सरिये से बने हैं, जिनमें से 90 फीसदी इमारतें रिक्टर स्केल पर छह तीव्रता से तेज भूकम्प को झेलने में समर्थ नहीं हैं। एनसीएस के अध्ययन के अनुसार दिल्ली का करीब तीस फीसदी हिस्सा जोन-5 में आता है, जो भूकम्प की दृष्टि से सर्वाधिक संवेदनशील है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की एक रिपोर्ट में भी कहा गया है कि दिल्ली में बनी नई इमारतें 6 से 6.6 तीव्रता के भूकम्प को झेल सकती हैं जबकि पुरानी इमारतें 5 से 5.5 तीव्रता का भूकम्प ही सह सकती हैं। विशेषज्ञ बड़ा भूकम्प आने पर दिल्ली में जान-माल का ज्यादा नुकसान होने का अनुमान इसलिए भी लगा रहे हैं क्योंकि करीब 1.9 करोड़ आबादी वाली दिल्ली में प्रतिवर्ग किलोमीटर दस हजार लोग रहते हैं। कोई बड़ा भूकम्प 300-400 किलोमीटर की रेंज तक असर दिखाता है।