नए साल की उम्मीदें
-सिद्धार्थ शंकर-
-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-
नए साल 2021 में सरकार के सामने देश की अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने के साथ ही लोगों की सेहत दुरुस्त रखने की चुनौती होगी। बैंकों के सामने फंसे कर्ज की समस्या से निपटना मुख्य चुनौती होगी। कई कंपनियों खासतौर से सूक्ष्म, लघु एवं मझौली (एमएसएमई) इकाइयों के समक्ष कोरोना वायरस महामारी से लगे झटके के कारण मजबूती से खड़े रहना संभव नहीं होगा, जिसकी वजह से चालू वित्त वर्ष की शुरुआती तिमाहियों के दौरान अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट देखी गई। बैंकों को आने वाले महीनों में कमजोर कर्ज वृद्धि की चुनौती से भी निपटना होगा। निजी क्षेत्र का निवेश इस दौरान कम रहने से कंपनी क्षेत्र में कर्ज वृद्धि पर असर पड़ा है। बैंकिंग तंत्र में नकदी की कमी नहीं है, लेकिन इसके बावजूद कंपनी क्षेत्र से कर्ज की मांग धीमी बनी हुई है। बैंकों को उम्मीद है कि अर्थव्यवस्था में उम्मीद से बेहतर सुधार के चलते जल्द ही कर्ज मांग ढर्रेे पर आएगी। देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में पहली तिमाही के दौरान जहां 23.9 प्रतिशत की गिरावट आई थी वहीं दूसरी तिमाही में यह काफी तेजी से कम होकर 7.5 प्रतिशत रह गई, लेकिन उद्योग जगत के विश्वास और धारणा में अभी वह मजबूती नहीं दिखाई देती हैं जो सामान्य तौर पर होती है। पिछले कुछ सालों के दौरान निजी क्षेत्र का निवेश काफी कम बना हुआ है और अर्थव्यवस्था को उठाने का काम सार्वजनिक व्यय के दारोमदार पर टिका है।
बैंकिंग क्षेत्र का जहां तक सवाल है वर्ष के शुरुआती महीनों में ही कोरोना वायरस के प्रसार से उसके कामकाज पर भी असर पड़ा। गैर-निष्पादित राशि (एनपीए) यानी फंसे कर्ज से उसका पीछा छूटता हुआ नहीं दिखा। हालांकि, वर्ष के दौरान सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विलय की प्रक्रिया को नहीं रुकने दिया। सार्वजनिक क्षेत्र के छह बैंकों को अन्य चार बैंकों के साथ मिला दिया गया। देश में बड़े वित्तीय संस्थानों को खड़ा करने के उद्देश्य से यह कदम उठाया गया।
अर्थव्यवस्था से हटकर बात करें तो नया साल स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए भी चुनौती बनकर आया है। नए साल में सभी तक वैक्सीन पहुंचाना बड़ा काम होगा। साथ ही ब्रिटेन में कोरोना का जो नया रूप आया है उससे सभी को बचाकर रखना होगा। हालांकि, तमाम कवायदों और प्रावधानों के बाद भी नया रूप भारत में आ चुका है। अब इसके फैलाव को रोकने की दिशा में युद्धस्तर पर काम करना होगा। साथ ही नागरिकों की भी इसमें भूमिका कम नहीं होगी। कोरोना पर आज जितनी भी जीत मिली है, उसमें सरकार के साथ लोगों की भी भूमिका है। हमने लापरवाही की आदत छोड़ी और गाइडलाइन का पालन किया, जिसका असर दिख रहा है। यह दौर कोरोना पर जीत पाने का है और जीत ज्यादा दूर नहीं हैै। कुछ दिन की और मशक्कत हमें पूरे साल आनंद के साथ जीने का अवसर दे सकती है।
वहीं आईएएनएस-सीवोटर के मत सर्वेक्षण में खुलासा हुआ है कि देश में लोगों को लगता है कि हाल के दिनों में रोजगार के अवसरों में कमी के बावजूद साल 2020 में स्थिति रोजगार के मामले में बेहतर होगी। आईएएनएस-सीवोटर के स्टेट आफ द नेशन पोल 2020 के मुताबिक, 44.5 फीसदी प्रतिभागियों ने उम्मीद जताई कि नए साल में रोजगार के अवसर बेहतर होंगे जबकि सर्वे में शामिल एक तिहाई प्रतिभागियों को लगता है कि इस मामले में स्थिति और खराब होगी। सर्वे में शामिल 24 फीसदी से कुछ अधिक लोगों ने कहा कि वह मौजूदा हालात में कोई बेहतरी होते नहीं देख रहे हैं। हालांकि, अधिकांश प्रतिभागियों ने भविष्य को लेकर आशा जताई लेकिन फिर भी उनके आशावाद का स्तर छह साल के निम्न स्तर पर रहा। बीते दो सालों में नरेंद्र मोदी सरकार नए रोजगार का सृजन करने में जबरदस्त चुनौती का सामना कर रही है। अर्थव्यवस्था में लगातार सुस्ती बनी हुई है। जीडीपी जुलाई-सितंबर तिमाही में घटकर छह साल में सबसे कम 4.5 फीसदी के स्तर पर आ गई। उम्मीद है कि नया साल नई उम्मीदें लेकर आएगा।