सत्ता का रुतबा दिखाने में हमारे नेताओं ने अंग्रेजों को पछाड़ा
-सनत जैन-
-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-
18वीं शताब्दी में लार्ड वैलेस्ली ने लंदन की ईस्ट इंडिया से कहा था कि स्थानीय लोगों पर शासन करने के लिये बड़े महल बनाना जरूरी होता है। स्थानीय लोग बड़े-बड़े महल, ठाट-बाट, ऐश्वर्य और अधिकारों को देखकर प्रभावित होते हैं। जनता सत्ता के ऐश्वर्य से प्रभावित होकर नतमस्तक होती है। भारत में ईस्ट इंिडया कम्पनी ने इसी सीख का उपयोग कर भारत की जनता और राजा-महाराजाओं पर 258 साल से अधिक शासन किया था। उसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी से शासन व्यवस्था ब्रिटिश क्राउन के पास चली गई। 1600 में ईस्ट इंडिया कंपनी आई 1947 तक अंग्रेजाओं का शासन रहा। उनने भी वह रुतबा नहीं दिखाया जो वर्तमान शासक दिखा रहे हैं। भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी 1600 में भारत आई थी। तब व्यापार करने के लिए आई थी। राजा महाराजाओं के हाथ जोड़े व्यापार की अनुमति ली। उस समय के भारतीय राजा-महाराजा अभी ऐशो-आराम में रहते थे, अय्याशी करते थे। राजाओं की कमजोरी जानकर, ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों ने उन्हें कर्ज दिया। बाद में उन्हीं राजा महाराजाओं के ऊपर शासन करने लगे। इसके बाद 1858 में ब्रिटेन की राजशाही के अधीन होकर हम अंग्रेजों के गुलाम हो गए।
अंग्रेज भारत में अल्पसंख्यक थे। सत्ता की ताकत उनके पास थी। सत्ता का रुतबा दिखाकर वह लोगों को नियंत्रण में रखते थे। अंग्रेजों का जलवा देखकर मोहनदास करमचंद गांधी बैरिस्टर बनने के लिए विदेश गए। बैरिस्टर बन भी गए। लेकिन भारतीय होने के कारण अंग्रेजों वाला रुतबा नहीं मिला। अंग्रेजों ने उन्हें ट्रेन के फर्स्ट क्लास के डब्बे से बाहर फेंक दिया। अपमान के बाद उन्होंने आजादी की लड़ाई लड़ी। थर्ड क्लास में सफर किया। एक धोती के दो टुकड़े किए। एक पहना औरा एक ओढ़ा। पैर में रबर की चप्पल पहनी। एक सन्यासी की तरह आजादी की लड़ाई लड़ने की यात्रा शुरू कर दी।
अंग्रेजों के सत्ता का रुतबा हमारे पूर्वजों ने नहीं देखा था। अब हमारे नेता सत्ता का रुतबा दिखाने का कोई मौका नहीं चूक रहे हैं। नेताओं और अधिकारियों ने अंग्रेजों को भी पीछे छोड़ दिया है। लाल-नीली बत्ती, लगी कारें, नेताओं के आने जाने पर सड़कों को बंद कर देना। बड़े-बड़े आलीशान बंगलों में रहना, निशुल्क मकान, निशुल्क हवाई सफर, निशुल्क पानी, निशुल्क बिजली, भारी सुरक्षा व्यवस्था के साथ सत्ता के अधिकार तले आम आदमियों को भेड़ बकरियों की तरह समझने लगे है। खुद कानून बन गए हैं। जो बोल देते हैं वह कानून बन जाता है। विकसित राष्ट्रों के नेताओं और भारत के नेताओं और अधिकारियों के रुतबे में जमीन आसमान का अंतर है। भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सहित लगभग सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और मंत्रियों द्वारा जिस तरह जनता के कर से एकत्रित राजस्व का दुरुपयोग, अपने ऐशो आराम के लिए किया जा रहा है। पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है। हवाई जहाज और लग्जरी कारों का उपयोग कम दुरुपयोग ज्यादा हो रहा है। भारत के राजनेता और अधिकारी सत्ता के रुतबे में हवा में उड़ रहे हैं। भारत की जनता के ऊपर पिछले 10 वर्षों में अनाप-शनाप टैक्स लादे गए हैं। आम आदमी महंगाई और आर्थिक संकट से कराह रहा है। इसके बाद भी सरकार के खर्चे पूरे नहीं हो रहे हैं। सरकारों के ऊपर कर्ज बढ़ता ही जा रहा है। आम आदमी अपना जीवन यापन भी नहीं कर पा रहा है। जिन लोगों ने अंग्रेजों का शासन देखा है, वह कहने लगे हैं कि ऐसा रुतबा तो हमें अंग्रेजों ने कभी नहीं दिखाया। ऐसी फिजूलखर्ची अंग्रेजों ने भी नहीं की जैसे हमारे नेता और अधिकारी कर रहे हैं। सत्ता में बैठे लोगों के रुतबे को देखकर अब माफिया भी सत्ता में पहुंचने की होड़ में शामिल हो गया है। आम जनता कराह रही है।