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बैंकों का फंसा कर्ज दशक के निचले स्तर पर, आगे और सुधार की उम्मीदः आरबीआई

मुंबई, 28 जून (ऐजेंसी/सक्षम भारत)। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बुधवार को कहा कि देश के बैंकों की गैर-निष्पादित परिसंपत्ति यानी फंसे कर्ज का अनुपात इस साल मार्च में 3.9 प्रतिशत पर आ गया जो एक दशक का सबसे कम स्तर है।

आरबीआई ने अपनी छमाही वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में कहा कि अधिसूचित वाणिज्यिक बैंकों का सकल एनपीए (गैर-निष्पादित परिसंपत्ति) मार्च 2024 तक और कम होकर 3.6 प्रतिशत हो जाने का अनुमान है। दास ने कहा, ‘भारत में वित्तीय क्षेत्र स्थिर और मजबूत रहा है और यह बैंकों के कर्ज में निरंतर वृद्धि, एनपीए के निचले स्तर और पर्याप्त पूंजी एवं तरलता भंडार के रूप में प्रदर्शित भी होता है।’

केंद्रीय बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने इस रिपोर्ट की भूमिका में लिखा है कि बैंक और कंपनियों दोनों के बही-खाते मजबूत हुए हैं। इससे कुल मिलाकर वृद्धि को गति मिलने की उम्मीद है क्योंकि बही-खातों के मजबूत होने का दोहरा लाभ है। एक तरफ जहां कंपनियों का कर्ज कम होगा, वहीं बैंकों का एनपीए भी नीचे आएगा।

बीते दशक के दूसरे हिस्से में बैंकिंग प्रणाली के भीतर एनपीए का बोझ काफी बढ़ गया था। हालात पर काबू पाने के लिए आरबीआई ने परिसंपत्ति गुणवत्ता समीक्षा शुरू करने के साथ ही बैंकों के लिए फंसी हुई संपत्तियों को अंकित करना अनिवार्य बना दिया था।

इस कवायद का असर बुधवार को जारी स्थिरता रिपोर्ट में भी नजर आया। बैंकों का शुद्ध एनपीए मार्च के अंत में एक प्रतिशत हो गया। इसके पहले जुलाई, 2011 में यह स्तर रहा था।

मानक कर्जों के एनपीए बनने यानी फिसलन का तिमाही अनुपात और कम होकर 0.3 प्रतिशत हो गया, लेकिन वित्त वर्ष 2022-23 के अंत में जीएनपीए अनुपात में बट्टे खातों का अनुपात बढ़कर 28.5 प्रतिशत हो गया।

इस रिपोर्ट के मुताबिक, क्रेडिट जोखिम के लिए किए गए तनाव परीक्षणों से पता चला है कि सभी बैंक गंभीर तनाव की स्थिति में भी न्यूनतम पूंजी जरूरतों का अनुपालन करेंगे।

इसके मुताबिक, खुदरा कर्ज पर बैंकों का ध्यान बढ़ने से कॉरपोरेट कर्ज की हिस्सेदारी मार्च 2023 में गिरकर 46.4 प्रतिशत हो गई जबकि मार्च 2020 में यह 51.1 प्रतिशत पर थी।

इसके अलावा कुल सकल एनपीए में बड़े कर्जों की हिस्सेदारी भी तीन साल पहले के 75.7 प्रतिशत से घटकर मार्च 2023 में 53.9 प्रतिशत हो गई।

आरबीआई ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का मुनाफा निजी क्षेत्र के बैंकों की तुलना में तेजी से बढ़ा है।

 

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