राजनैतिकशिक्षा

मोदी मैजिक पर उठते सवाल आगामी चुनाव में भाजपा हुई बेहाल

-विनोद तकियावाला-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

बैश्विक राजनीति के मानचित्र की क्षितिज पर भारत राजनीति की चर्चा व चमक हमेशा ही होती है।हो भी क्यूं नही, भारत विश्व का सबसे बड़े लोकतंत्र ही नहीं बल्कि विश्व के सबसे अधिक आबादी देश बन गया है खैर! इस वर्ष 5 राज्यों के विधान सभा व अगले वर्ष 2024 में होने वाले लोक सभा के चुनाव होने वाली है। इन चुनावों के अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए राजनीतिक दलों ने अपनी रणनीति बनाने लगी है। चाहे केन्द्र की सता में भाजपा हो या विपक्ष में कांग्रेस हो। शाथ अन्य राजनीति दलो व क्षेत्रीय राजनीतिक दल भी अपनी अपनी किस्मत आजमा रही है। इसी क्रम में आज हम केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा को ले कर है। आगामी वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में मोदी मैजिक की चमक फीका पड़ने लगा है।

मोदी मैजिक पर उठते सवाल आगामी चुनाव में भाजपा हुई बेहाल यह हम या कोई विपक्षी राजनीतिक दल द्वारा नहीं कह रहा है बल्कि इस संदर्भ में विगत दिनों आर एस एस के मुखपत्र ऑर्गनाइजर के संपादकीय पेज में छपे लेख सें भारतीय राजनीति की दिशा दशा में परिवर्तन के संकेत दिए है। इस लेख के माध्यम से मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र की भाजपा सरकार के लिए दिशा निर्देश जारी कर दी है। इस वर्ष में होने वाले राज्यस्थान, मध्यप्रदेश, छतीसगढ, तेलंगाना व मिजोरम 5 राज्यों व अगले वर्ष 24 में लोक सभा के चुनाव होने वाले है। आप को बता दे कि अभी इन पाँच राज्यों से राज्यस्थान, छतीसगढ़ में कांगेस, तेलंगाना में वीआरएस व मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट की सरकार व मध्यप्रदेश में राजनीति हॉर्स ट्रेड़िग में महारत हासिल करने वाली भाजपा की सरकार है।

भारतीय राजनीति की विशेषज्ञ व राजनीति ज्योतिषियों की कुण्डली गणना के अनुसार भाजपा व उनके नेताओं की ग्रह स्थिति व महादशा ठीक नहीं चल रहा है। हिमाचल में हार बिहार में पार्टी सता गठबंधन से बाहर होना,दिल्ली में 15 वर्षो से एमस डी एक छत्र राज्य करने वाली भाजपा बाहर का रास्ता दिखाया गया इतना ही कनार्टक के नाटक में कांग्रेस की करिशमाई जीत व भाजपा की करारी हार मिलने सें पार्टी के संगठन व शीर्ष नेतृत्व पर सबाल उठने लगी है। ऐसे में नागपुर के केद्र में गहन चिन्तन मनन व मंथन का दौर चलना लाजिम है। दिल्ली दरबार में आनन फानन पार्टी के जमीनी हकीकत व सच्चाई को जानने व समझने की पार्टी के अन्दर व बाहर गहन विचार मंथन का मैराथन होना स्वाभाविक है।

इस श्रंखला में आरएसएस के मुख्यपत्र ऑर्गनाइजर के संपादकीय लेख के माध्यम से भाजपा को बड़ी नसीहत दे है। आगामी वर्ष 2024 के लोक सभा चुनाव व इस वर्ष राज्यों के विधान सभा चुनाव से पहले इसके कई सियासी मायने लगाये जा रहे है। इस प्रकरण से सता के सियासी गलियारे में खलबली मच गयी है।पार्टी के अन्दर बाहर दबी जुबान से कई सवाल उठ रहे हैं कि आखिर संघ ने भाजपा को आखिर क्यों ऐसी कडी नसीहत दी? संघ के पास कोई चारा नहीं था क्या।संघ को कांग्रेस की बढ़ती लोकप्रियता व विपक्षी राजनीतिक दलों का 2024 चुनाव से पहले गहन-चिन्तन व गठवन्धन के रणनीति से संघ को भाजपा की हार सताने लगीहै। आदि आदि।

आइए हम इसे समझने की कोशिश करते है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुखपत्र ऑर्गनाइजर के जरिए भारतीय जनता पार्टी को बड़ी नसीहत दी है। ऑर्गनाइजर ने अपने संपादीय लेख में भाजपा को सचेत करते हुए कहा है कि अगर पार्टी को चुनाव जीतते रहना है तो सिर्फ अब मोदी मैजिक और हिंदुत्व का चेहरा काफी नहीं होगा। इस लेख के माध्यम से संघ ने कर्नाटक में भाजपा की हार का कारण भी बताया है। चुनावी वर्ष में संध के मुखपत्र में छपे इस लेख ने सता के सियासी गलियारे में खलबली मचा दी है। विगत दिनों कर्नाटक के विधान सभा चुनाव में भाजपा को मिली करारी हार का विश्लेषण करते हुए ऑर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने कर्नाटक चुनाव का जिक्र करते हुए लिखते है कि कर्नाटक विधान सभा चुनाव में भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा था।

केंद्र में सत्ता संभालने के बाद पहली बार प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी व भाजपा को विधानसभा चुनाव मं भ्रष्टाचार के आरोपों का बचाव करना पड़ा है। परिणाम इस चुनाव में भाजपा के 14 मंत्री चुनाव हार गए। जो पार्टी के लिए चिंता व चिन्तन का विषय है। उन्होने अपने लेख में उल्लेख किया है कि जब राष्ट्रीय स्तर के नेतृत्व की भूमिका न्यूनतम होती है और कनार्टक विधान सभा चुनावीअभियान में स्थानीय स्तर पर रखा जाता है, जिसका कांग्रेस को फायदा होता है। परिवार द्वारा संचालित पार्टी ने राज्य स्तर पर एक एकीकृत चेहरा पेश करने की कोशिश की और 2018 के चुनावों की तुलना में पांच प्रतिशत अतिरिक्त वोट हासिल किए। केवल पीएम मोदी के चेहरे और हिंदुत्व के बल पर भाजपा चुनाव नहीं जीत सकती है। पार्टी को चुनाव जीतने के लिए स्थानीय स्तर पर नए नेताओं को आगे लाना होगा। केंद्र से तालमेल बिठाकर काम करना होगा,तभी विधानसभा चुनावों में पार्टी को जीत मिल सकती है।

प्रफुल्ल केतकर ने पीएम मोदी की सत्ता के नौ वर्षों की उपलब्धियों की प्रशंसा की है। उनका मानना है कि 2014 में भारत में अधिकांश लोगों ने लोकतंत्र में विश्वास खो दिया था। प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार ने महत्वाकांक्षी लक्ष्यों के साथ उन आकांक्षाओं के लिए सकारात्मक प्रतिक्रिया दी और कई मोर्चों पर काम किया है। उन्होने लिखा है कि बीजेपी नेतृत्व ने चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दों को लाने का प्रयास किया,वही कांग्रेस ने स्थानीय मुद्दे को जनता के बीच में गये। जो कांग्रेस की जीत का सबसे बड़ा कारण यह ही है। भाजपा कर्नाटक चुनाव में जातीय मुद्दों के जरिए वोट को जुटाने का प्रयास हुआ,पार्टी ये भुल गए कि राज्य टेक्नोलॉजी का हब है। ऐसे में ये चिंता का विषय है।

आरएसएस के मुखपत्र के संपादकीय लेख पर कांग्रेस पार्टी का कहाँ पीछे रहने वाली थी। भाजपा को लेकर संघ द्वारा दी गई नसीहत पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस नेता और कर्नाटक के प्रभारी रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि बीजेपी और आरएसएस ने स्वीकार किया कि कर्नाटक के लोगों ने पीएम नरेंद्र मोदी को नकार दिया है। वो लोग जो पीएम मोदी का महिमा मंडित करते थकते नहीं हैं, उन्हें भी इससे सबक लेना चाहिए। इस सम्बन्ध में राजनीतिक विश्लेषक की राय में संघ ने यह उदाहरण भाजपा को भले ही कर्नाटक चुनाव का दिया हो, लेकिन संघ का इशारा हाल के दिनों में हुए सभी राज्यों के चुनाव पर है। संघ इसके जरिए 2024 लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा को अगाह करने की कोशिश कर रहा है। ताकि जो चूक कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश के विधान सभा के चुनाव में भाजपा से हुई है वो आगे के चुनाव में न हो। संघ ने अपने इस संपादकीय से भाजपा को तीन बड़े संदेश दिए हैं।

(1) पार्टी को नए नेतृत्व को तैयार करना होगा। आरएसएस ने स्पष्ट संकेत दिया है कि मोदी का नाम हर चुनाव में इस्तेमाल करना ठीक नहीं है। मोदी के नाम पर भाजपा आखिर कब तक चुनाव लड़ती रहेगी? इसलिए पार्टी को स्थानीय चेहरों की तलाश करनी चाहिए। स्थानीय स्तर पर नए चेहरों को मजबूत कर उन्हें जिम्मेदारियां दी जानी चाहिए। नए चेहरों के आने से पार्टी में नेतृत्व की नई पीढी तैयार होगी, जिससे आने वाले दिनों में पार्टी को लाभ होगा।

(2) वर्ष के अंत में आगामी 5 राज्यों के विधान सभा चुनावों में राष्ट्रीय की जगह क्षेत्रीय मुद्दों को अहमियत दी जा। भाजपा हर चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दों को आगे करती है। जिसका कई जगह इसका लाभ मिलता है, कई बार नुकसान भी उठाना पड़ा है।

(3) भाजपा को भ्रष्टाचार पर सतर्क होना पड़ेगा। सन् 2014 में पीएम मोदी ने पूरा चुनाव ही भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लड़ा था। तब पार्टी को बड़ी जीत मिली थी। आज भी ये मुद्दा भाजपा के कोर एजेंडे में रहता है। वहीं दूसरी ओर कर्नाटक में सत्ता में रहते हुए भाजपा सरकार पर कई तरह के भ्रष्टाचार के आरोप लगे। कांग्रेस अब इसे राष्ट्रीय स्तर पर उठाने की कोशिश करेगी। ऐसे में भाजपा शासित सभी राज्यों में विशेष तौर पर इसका ख्याल रखना होगा। भ्रष्टाचार का दाग जिन नेताओं पर लगा है, उनसे दूरी बनानी होगी। संपादक ने अपनी संपादकीय कलम से लिखे लेख में भाजपा व शीर्ष नेताओं को ईशारे ईशारे में कई सलाह, सवाल, सुझाव दे दिया है। पार्टी व संगठन के शीर्ष नेतृत्व इस पर कितना चिन्तन-मनन व यथार्थ में कितना असली जामा पहनाया पायेगा यह तो अभी अतीत के गर्भ गृह में है। असली तस्वीर क्या होगा यह तो आने वाले समय ही बताएगा।

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