‘राष्ट्रहित सर्वोपरि’ जन आंदोलनों में भी यह ध्यान रखना बेहद ज़रूरी
-दीपक कुमार त्यागी-
-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-
”जन आंदोलनों का उद्देश्य किसी भी देश के सिस्टम में बैठे हुए चंद ताकतवर लोगों व राजनेताओं के अहंकार को चूर-चूर करते हुए, गहरी नींद में सोये हुए या फिर गूंगे-बहरे हो चुके कर्ताधर्ताओं व पूरे सिस्टम को जगाकर के एक बार फिर से आम जनमानस के हितों के कार्यों को करने के लिए प्रेरित करना होता है। नकि किसी भी आंदोलन के नाम पर राष्ट्र की एकता, अखंडता, संप्रभुता को चोट पहुंचाने का दुस्साहस करना होता है। राष्ट्र गौरव के महत्वपूर्ण दिन घेराव करना हंगामा बरपाना नहीं होता है। देश की अनमोल संपत्ति को तोड़फोड़ करके नुकसान पहुंचाना नहीं होता है। नाही देश में आगजनी करके व जगह-जगह जाम लगा कर हंगामा बरपा कर के नुकसान पहुंचाना या फिर देश के भोले-भाले आम जनमानस को दंगे-फसाद के लिए उकसाना होता है। इसलिए यह हम सभी का दायित्व है कि आंदोलनों के दौरान भी हम हमेशा राष्ट्रहित को सर्वोपरि मान उसका ध्यान रखें।“
देश में पिछले कई वर्षों से विभिन्न मुद्दों को लेकर के कुछ बड़े जन आंदोलनों लंबे समय तक चले हैं। जिसमें अन्ना हजारे के आंदोलन, रामदेव का आंदोलन, राजस्थान में गुर्जर समाज के आरक्षण का मसला, हरियाणा में जाट समाज के आरक्षण का मसला, वर्ष 2019 में अनुच्छेद 370 हटाने का देश के विभिन्न हिस्सों में विरोध, वहीं वर्ष 2019 में सीएए-एनआरसी लागू करने का पूरे देश में जबरदस्त विरोध, केन्द्र सरकार के द्वारा देश में तीन कृषि कानून लागू करने का देश के विभिन्न हिस्सों में विरोध होना, असम व मेघालय सीमा विवाद का मसला, मणिपुर में आरक्षण को लेकर विरोध व पहलवानों के यौन शौषण का मसला आदि सभी आंदोलनों के माध्यम से आम जनमानस के द्वारा अपनी विभिन्न मांगों को समय-समय पर दमदार ढंग से उठाया जाता रहा हैं, जो कि लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनुसार आंदोलनकारियों का हक है। वैसे अगर हम पिछले कुछ वर्षों में हुए आंदोलनों का गहराई से अध्ययन करने कार्य करें, तो स्पष्ट नज़र आता है कि शुरुआत में अधिकांश जन आंदोलनों का मकसद केवल अपनी मांगों तक सीमित होता हुआ नज़र आता है, लेकिन बीतते हुए समय के साथ-साथ कुछ आंदोलनों में जिस तरह से तोड़फोड़, आगजनी व हिंसा हुई उससे लोगों को ऐसे आंदोलनों में बड़े पैमाने पर देश विरोधी ताकतों व कुछ देशद्रोही षड्यंत्रकारी लोगों के शामिल होने की बू आती है, ऐसे चंद लोगों ने ही आंदोलनों की आड़ में देश के विभिन्न भागों में जमकर तोड़-फोड़, आगजनी, हिंसा, दंगा-फसाद करके देश की फिजा को खराब करने का दुस्साहस करते हुए, वास्तविक आंदोलनकारियों की छवि को खराब करके बट्टा लगाने का कार्य किया। हालांकि कुछ आंदोलनों में जो घटनाएं घटित हुई वह कोई मामूली छोटी घटनाएं नज़र नहीं आती हैं, बल्कि लोगों को हंगामें व हिंसा का पूरा घटनाक्रम ही एक सुनियोजित षड्यंत्र नज़र आता है।
इन आंदोलनों के दौरान जिस तरह से सड़कों को जाम करके सीएए-एनआरसी लागू होने से रोकने के लिए तोड़फोड़ हिंसा का सहारा लिया गया था, उसको पूरी दुनिया ने देखा। अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर से लेकर देश के अन्य भागों में जिस तरह से बेवजह का हंगामा बरपाया गया, उसको भी पूरी दुनिया ने देखा। तीनों कृषि कानूनों के विरोध में जिस तरह से 26 जनवरी 2021 के दिन दिल्ली की सड़कों से लेकर के लालकिले की प्राचीर तक पर जबरदस्त ढंग से हंगामा बरपाया गया, उसको पूरी दुनिया ने देखा। जाट समाज व गुर्जर समाज के आरक्षण के मुद्दे पर हरियाणा व राजस्थान में हुए हुड़दंग को पूरी दुनिया ने देखा। आंदोलन की आड़ में असम व मेघालय के सीमा विवाद में लोगों की जान तक जाना बेहद दुर्भाग्य पूर्ण घटनाक्रम था, उसको भी दुनिया ने देखा। अब मणिपुर में आरक्षण के पक्ष-विपक्ष में चल रहे आंदोलन में एक दूसरे की जान लेने के लिए उतावले लोगों के हिंसात्मक आंदोलन को भी पूरी दुनिया देख रही है। ब्रजभूषण शरण सिंह के खिलाफ चल रहे पहलवानों के आंदोलन में 28 मई 2023 को जब नव निर्मित संसद भवन का उद्घाटन होना था, उस राष्ट्र गौरव के दिन संसद भवन के बाहर पहलवानों के द्वारा महिला महापंचायत आयोजन करने के प्रयास को भी दुनिया ने देखा, जो कि राष्ट्र गौरव के दिन पहलवान व उनके समर्थक आंदोलनकारियों की सरकार पर दबाव बनाने की एक बचकाना रणनीति थी।
हालांकि आंदोलनों की आड़ में इस तरह के घटनाक्रम बार-बार घटित होने के बाद अब देश के एक बड़े वर्ग को लगने लगा है कि देश में होने वाले आंदोलनों में पिछले कुछ वर्षों से अपने छुपे हुए भारत विरोधी एजेंडे की पूर्ति के लिए कुछ लोग बड़े पैमाने पर शामिल होने लगें हैं, देश में पिछले कुछ वर्षों से मौकापरस्त देशद्रोही लोगों ने बहुत सारे आंदोलनों को हाई जैक करके, अपना भारत विरोधी एजेंडे को साधने का एक बहुत बड़ा अक्षम्य अपराध किया है, आंदोलनों की आड़ में बार-बार घटित हो रहे दुस्साहसी घटनाक्रमों को पूरी दुनिया निरंतर देख रही है। लेकिन हाल ही में जब 28 मई 2023 को नव निर्मित संसद भवन का उद्घाटन होना था, तो उस समय राष्ट्र गौरव के प्रतीक नव निर्मित संसद भवन पर पहलवानों के द्वारा महिलाओं की महा पंचायत बुलाना समझ से परे का घटनाक्रम था, आज भी लोग आत्ममंथन कर रहे हैं कि लोकतंत्र के नव निर्मित मंदिर के उद्घाटन के ऐतिहासिक अवसर पर पहलवानों का यह कृत्य कितना उचित था, हालांकि राष्ट्र गौरव के अहम दिन यह विरोध प्रदर्शन करके हंगामा बरपाने की घटना सामान्य थी या नहीं, यह देश की जांच एजेंसियों का विषय है, लेकिन फिर भी जो कुछ घटित हुआ वह देश देशवासियों व खुद पहलवानों की छवि के हित में बिल्कुल भी ठीक नहीं है।
वैसे देखा जाए तो देशहित व जनहित की सरकार की नीतियों का समर्थन जितना आवश्यक है, वहीं सरकार की जन विरोधी नीतियों का विरोध भी उतना ही आवश्यक है, लेकिन विरोध के नाम पर चलने वाले आंदोलनों को देश विरोध का माध्यम बनने से आंदोलन का नेतृत्व करने वाले लोगों को रोकना होगा, वरना विरोध प्रभावहीन हो जाता है और आंदोलन दिशाहीन हो जाता है। आज देश व जन मानस के हित में यह आवश्यक है कि सत्ता पक्ष मुद्दों पर सर्वसम्मति बनाकर चलें और विपक्ष दलों को भी राजनीति चमकाने के लिए बेवजह तथ्यहीन विरोध नहीं करना चाहिए और मुद्दों का विरोध देश विरोध में किसी भी परिस्थिति में कभी भी तब्दील नहीं होना चाहिए, यही स्थिति देश व समाज के लिए श्रेष्ठ है।