कर्नाटक विधानसभा चुनाव ना भूतो ना भविष्यति
-सनत जैन-
-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 9125 सभाएं आयोजित की। भाजपा नेताओं द्वारा 1377 रोड शो किए गए। 9077 सभाएं और नुक्कड़ सभाएं की गई। इसके साथ ही समूह स्तर पर हजारों बैठकें आयोजित की गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 6 दिनों में 19 चुनावी जनसभाओं को संबोधित किया। उन्होंने 6 रोड शो किए। गृह मंत्री अमित शाह ने 16 जनसभाएं और 15 रोड शो किए। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने 10 आम सभाएं और 16 रोड शो किए। स्टार प्रचारक हिंदू हृदय सम्राट उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ऊपर भी इस चुनाव की बड़ी जिम्मेदारी थी। उन्होंने नौ सभायें और 3 रोड शो किए। फायर ब्रांड महिला नेत्री और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने 17 आम सभा और 2 रोड शो किए। असम के मुख्यमंत्री हेमंत विश्वा शर्मा ने भी 15 जनसभाएं और एक रोड शो किया। महाराष्ट्र के मुख्य उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी 13 जनसभाओं को संबोधित किया। इसके अतिरिक्त पिछले महीनों से लगातार केंद्रीय मंत्री कर्नाटक में जाकर चुनाव प्रचार कर रहे थे। एक दर्जन केंद्रीय मंत्री और 4 दर्जन से अधिक सांसद पिछले कई महीनों से कर्नाटक में चुनावी संरचना में जुटे थे। भाजपा ने 128 राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को कर्नाटक के चुनाव प्रचार में उतारा था। कर्नाटक के 311 मठ और मंदिरों में जाकर भाजपा ने अपनी हाजिरी देकर दस्तक लगाई।
भारतीय जनता पार्टी ने अपने सारे संसाधन कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में झोंक दिए। हजारों करोड़ रुपयें चुनाव में खर्च किये। ईडी-सीबीआई भी सक्रिय रही। इसके पहले किसी भी राज्य का ऐसा कोई चुनाव भाजपा द्वारा नहीं लड़ा गया। जहां पर इतनी ताकत और इतना पैसा लगाया गया हो। नेशनल मीडिया भी लगातार कर्नाटक चुनाव का कवरेज करता रहा। नेशनल मीडिया का झुकाव निश्चित रूप से भाजपा के पक्ष में होता हुआ दिखा। कर्नाटक के मतदाताओं को पहली बार इस तरह के चुनाव प्रचार पर आश्चर्य हुआ। कांग्रेस ने भी इस चुनाव में अपनी सारी ताकत लगा दी। पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी, वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष मलिकार्जुन खरगे, पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी तथा उनकी बहन प्रियंका गांधी कर्नाटक के चुनाव प्रचार में लगातार सक्रिय रहीं। कर्नाटक के प्रादेशिक कांग्रेस नेता एकजुट होकर चुनाव लड़े। मलिकार्जुन खरगे प्रियंका गांधी और राहुल गांधी ने बिना किसी डर और भय के आक्रमक रूप से चुनाव प्रचार किया। कांग्रेस नेता इस बार भाजपा नेताओं के किसी दबाव में नहीं आए। निडरता के साथ चुनाव प्रचार करते हुए देखे गए। कांग्रेसी नेताओं के इस आक्रमक स्वरूप का असर मतदाताओं में भी देखने को मिला। विधानसभा के चुनाव में कन्नड़ मतदाता भी मुखर होकर, अपनी राय व्यक्त कर रहा था। जो राजनेताओं को आश्चर्यचकित कर रहा था।
कर्नाटक विधानसभा चुनाव को जीतने के लिए भाजपा और कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत लगा दी। कर्नाटक के मतदाताओं के लिए लोकलुभावन वायदों की झड़ी लग गई। पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गारंटी के साथ वायदे किए। उन्होंने कर्नाटक की जनता को भरोसा दिलाया, कि इस बार जो वायदे कर रहे हैं, वह गारंटी के साथ पूरे होंगे। कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में जिस तरीके से बजरंगबली का प्रवेश हुआ। वह कर्नाटक के मतदाताओं को आश्चर्यचकित कर रहा है। बजरंग दल की तुलना बजरंगबली के साथ करने से आम जनता के बीच में इसका दोहरा असर पड़ा है। एक पक्ष के ऊपर बजरंगबली का सकारात्मक प्रभाव पड़ा। वहीं एक एक बड़ा पक्ष चुनाव में बजरंगबली को जिस तरह से बजरंग दल के साथ जोड़ा गया। उससे जनता में नाराजगी भी देखने को मिली। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की एक गलती इस चुनाव में भाजपा पर सबसे भारी पड़ती हुई दिख रही है। शाह ने कहा था कि अमूल कंपनी में नंदिनी मिल्क फेडरेशन का विलय कर दिया जाएगा। इसकी बड़ी तीव्र प्रतिक्रिया कर्नाटक के मतदाताओं में हुई है। जिसके कारण कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कन्नड़ अस्मिता और गुजराती मॉडल को लेकर मतदाताओं के बीच में गहरा असर पड़ा है।
कर्नाटक विधानसभा चुनाव परिणाम देश को एक नई दशा और दिशा देंगे। भारतीय जनता पार्टी यहां पर इतनी ताकत लगाने के बाद स्पष्ट बहुमत पा लेती है, तो विपक्ष की निराशा बढ़ेगी। कर्नाटक विधानसभा का चुनाव यदि कांग्रेस स्पष्ट बहुमत के साथ जीत गई तो, इसका असर आने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में पड़ना तय माना जा रहा है। बहरहाल कर्नाटक चुनाव को देखते हुए, यही कहा जा सकता है कि भूतो ना भविष्यति की तर्ज पर कर्नाटक का विधानसभा चुनाव लड़ा गया है। एक ओर भाजपा संसाधनों के साथ पूरी ताकत से लगी हुई थी। वहीं अल्प संसाधनों के साथ पूरी ताकत के साथ कांग्रेस भी चुनाव लड़ रही थी। चुनाव परिणाम को लेकर सभी के मन मे बड़ी जिज्ञासा है।