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29 अप्रैल सीता जयंती पर विशेष : सभी के लिए अनुकरणीय है माता सीता का चरित्र

-रमेश सर्राफ धमोरा-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

पौराणिक कथाओं के अनुसार माता सीता का जन्म वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था। इसलिए हर साल माता सीता की जयंती सीता नवमी, सीता जयंती या जानकी नवमी के रूप में बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाई जाती हैं। इस साल सीता नवमी 29 अप्रैल शनिवार को मनाई जा रही है। इस दिन स्वयं सिद्ध अबूझ मुहूर्त है। इस दुर्लभ संयोग पर माता सीता के साथ भगवान राम का पूजन करना श्रेष्ठ रहता है। सीता नवमी के दिन विवाहित महिलाएं व्रत रखती हैं और अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं। सीता नवमी व्रत करने से व्यक्ति में शील, मातृत्व, त्याग और समर्पण जैसे गुण आते हैं। सीता और भगवान राम की एक साथ पूजा करने से वैवाहिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।
ऐसा माना जाता है कि पुष्य नक्षत्र में माता सीता का जन्म हुआ था। देवी सीता का विवाह भगवान राम से हुआ था। भगवान राम का जन्म भी चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था। हिंदू कैलेंडर में सीता जन्मदिवस रामनवमी के एक महीने के बाद आती है। देवी सीता मिथिला के राजा जनक की पुत्री थीं। इसलिए इस दिन को जानकी नवमी के नाम से भी जाना जाता है।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार जब राजा जनक यज्ञ करने के लिए भूमि की जुताई कर रहे थे तो उन्हें सोने के ताबूत में एक बच्ची मिली। जुताई वाली भूमि को सीता कहा जाता था। इसलिए राजा जनक ने बच्ची का नाम सीता रखा। राजा जनक की पुत्री होने के कारण इन्हे जानकी, जनकात्मजा अथवा जनकसुता भी कहते थे। मिथिला की राजकुमारी होने के कारण यें मैथिली नाम से भी प्रसिद्ध है। भूमि में पाये जाने के कारण इन्हे भूमिपुत्री या भूसुता भी कहा जाता है।
सीता नवमी के दिन पूरे देश में भगवान राम और जानकी मंदिरों में विशेष पूजा व अनुष्ठान किया जाता है। मंदिरों को सजाया जाता है। रामायण पाठ के बाद भजन कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। कुछ मंदिर द्वारा राम रथ यात्रा निकालते हैं और जय सिया राम का जाप करते हैं और पूरे रास्ते भक्ति गीत गाते हैं।
मिथिला परिक्षेत्र में धार्मिक अनुष्ठान संग परिक्रमा, पदयात्रओं का व्यापक चलन है। वहां वर्ष में तीन बार परिक्रमा यात्रओं का विशेष महत्व है। बैशाख, अगहन और फाल्गुन महीने में लोग राम-सीता की स्मृतियों को संजोकर भक्तिभाव से पदयात्र पर निकलते हैं। राम-सीता विवाह में आए श्रद्धालु अगहन महीने में जनकपुर नगर परिक्रमा करते हैं। फाल्गुन की मिथिला परिक्रमा राम के मिथिला आगमन, राम-सीता प्रथम भेंट और इनके होली उत्सव से जुड़ी परंपरा है। बैशाख परिक्रमा सीता जन्म प्रसंग से जुड़ा आयोजन है। इस अवसर पर जानकी जन्मभूमि सीतामढ़ी से यात्र निकलती है।
वहां इससे पृथक तीन अन्य यात्रओं की भी परंपरा है। पहली यात्र जानकी नवमी के बीस दिन पूर्व निकाली जाती है। इसके माध्यम से कई पौराणिक मंदिर और राम-सीता से जुड़े पावन स्थलों की यात्र संपन्न की जाती है। इनमें वागमती पुरातन धारा किनारे का परशुराम तीर्थ और पंथपाकड़ भी हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी बालकांड के प्रारंभ में आदिशक्ति सीता जी की वंदना करते हुए कहते हैं:-

उद्भवस्थिति संहारकारिणी क्लेशहारिणीम।
सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम।

माता जानकी ही जगत की उत्पत्ति, पालन और संहार करने वाली तथा समस्त संकटों तथा क्लेशों को हरने वाली हैं। मां भगवती सीता सभी प्रकार का कल्याण करने वाली रामवल्लभा हैं। उन भगवती सीता जी के चरणों में प्रणाम है। मां सीता जी ने ही हनुमान जी को उनकी असीम सेवा भक्ति से प्रसन्न होकर अष्ट सिद्धियों तथा नव-निधियों का स्वामी बनाया।

अष्टसिद्धि नव-निधि के दाता। अस वर दीन जानकी माता।।
सीता-राम वस्तुतः एक ही हैं।
सियाराम मय सब जग जानी। करहुं प्रणाम् जोरि जुग पानी।।

यह सर्वजगत सीताराम मय है। जिन्हें तुलसीदास जी दोनों हाथ जोड़ कर प्रणाम करते हैं। भगवती सीता जी की पति-परायणता, त्याग सेवा, संयम, सहिष्णुता, लज्जा, विनयशीलता भारतीय संस्कृति में नारी भावना का चरमोत्कृष्ट उदाहरण तथा समस्त नारी जाति के लिए अनुकरणीय है।

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